लेखक की कलम

सिंधु जल समझौते पर विवादों का साया

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

सिंधु नदी के पानी को लेकर फिर भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि वार्ता की मेज पर बैठे। दरअसल भारत का बंटवारा करते हुए धूर्त ब्रिटिशजनों ने कई समस्याएं खड़ी की थीं। इन्हीं मंे सिंधु नदी के पानी को लेकर हिस्सेदारी का मामला भी शामिल है। सिंधु जल संधि पर 19 सितम्बर 1960 को करांची मंे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। समझौते के अनुसार तीन प्रमुख पूर्वी नदियों- व्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को तथा तीन पश्चिमी नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया था। समस्या यह है कि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह भारत के क्षेत्र मंे है। संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए करने की अनुमति है। यह समझौता तबका है जब दोनों देशों के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ। सन् 1965, 1971 और कश्मीर के मामले ने भारत की पाक के प्रति सहानुभूति खत्म कर दी है। पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का सहारा ले रहा है। इस समझौते पर विवादों का साया पड़ता रहा है। सन् 2008 मंे मुंबई हमले और 2019 मंे जब कश्मीर से धारा 370 हटायी गयी, तब पाकिस्तान की हरकतों के चलते इस समझौते को तोड़ने की मांग भारत की जनता ने की थी। इस समय भी पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब पर भाजपा प्रवक्ता के बयान से कटुता बढ़ी है। ऐसे हालात मंे भारत सिंधु जल समझौते से कब तक बंधा रहेगा।
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर 31 मई को 118वीं द्विपक्षीय बैठक हुई। इसके लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की ओर से नियुक्त पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली पहुंचा। बाढ़ की अग्रिम सूचना और सिंधु जल के स्थायी आयोग की सालाना रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई। भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते के तहत 1,000 मेगावाट पकाल दुल, भारत द्वारा बनाई जा रही 48 मेगावाट लोअर कालनाई और 624 मेगावाट किरुहाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर भी चर्चा हुई।
पकाल दुल सिंधु जल संधि के आर्टिकल 9 के तहत आता है। कालनाई और किरु परियोजनाएं भारत द्वारा बनाई गई हैं। पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त सैयद मेहर अली शाह ने वार्ता को सफल बताया। इससे पहले, दोनों देशों ने 2-4 मार्च, 2022 को इस्लामाबाद में तीन दिवसीय वार्ता की थी।
सिंधु नदी जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। इस समझौते को दुनिया में अक्सर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की संभावनाओं के उदाहरण के रूप में पेश किया जाता है। हालांकि, यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि सिंधु जल समझौते को लेकर भारत और पाकिस्तान के संबंध कई बार खराब भी हुए हैं।
दरअसल 1947 में आजादी मिलने के बाद से ही दोनों देशों में पानी को लेकर विवाद शुरू हो गया। दरअसल, सिंधु जल प्रणाली जिसमें सिंधु, झेलम, चिनाब,रावी, ब्यास और सतलज नदियां शामिल हैं। ये भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बहती हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि भारत इन नदियों पर बांध बनाकर पानी का दोहन करता है और उसके इलाके में पानी कम आने के कारण सूखे के हालात रहते हैं। पानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद जब ज्यादा बढ़ गया, तब 1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ और टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने इसे तकनीकी रूप से हल करने का सुझाव दिया। उनके राय देने के बाद इस विवाद को हल करने के लिए सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करने की बात स्वीकार कर ली जिसके बाद 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ।
इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे। 12 जनवरी 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गईं थीं। संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं। समझौते में स्पष्ट किया गया है कि पूर्वी क्षेत्र की तीनों नदियां- रावी, ब्यास और सतलज पर भारत का एकछत्र अधिकार है। वहीं, पश्चिमी क्षेत्र की नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम का कुछ पानी पाकिस्तान को भी देने का समझौता हुआ। तीन नदियों के कुल 16.80 करोड़ एकड़ फीट पानी में से भारत के हिस्से 3.30 एकड़ पानी दिया गया है, जो कुल पानी की मात्रा का करीब-करीब 20 प्रतिशत है। हालांकि, भारत अपने हिस्से का 93-94 प्रतिशत पानी ही इस्तेमाल करता रहा है।
सैयद मेहर अली शाह के अनुसार पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने झेलम और चिनाब नदियों जैसी पाकिस्तान की नदियों पर बन रही किसी भी जलविद्युत परियोजना का दौरा नहीं किया।
समझौते के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों- ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन पश्चिमी नदियों-सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जिनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।
सन् 1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान में कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव बना हुआ है। हर प्रकार के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है। इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20 फीसद का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है। जिस समय यह संधि हुई थी उस समय पाकिस्तान के साथ भारत का कोई भी युद्ध नही हुआ था उस समय परिस्थिति बिल्कुल सामान्य थी पर 1965 से पाकिस्तान लगातार भारत के साथ हिंसा के विकल्प तलाशने लगा जिस में 1965 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा फिर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध लड़ा जिस में उस को अपना एक हिस्सा खोना पड़ा जो बंगला देश के नाम से जाना जाता है तब से अब तक पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का इस्तेमाल कर रहा है। भारत के विरुद्ध, पाक की हरकत से किसी भी समय यह सिंधु जल समझौता खत्म हो सकता है और जिस प्रकार यह नदियाँ भारत का हिस्सा हैं तो स्वाभाविक रूप से भारत इस समझौते को तोड़ कर पूरे पानी का इस्तेमाल सिंचाई विद्युत बनाने में जल संचय करने में कर सकता है। (हिफी)

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