लेखक की कलम

दिल्ली में इस बार त्रिकोणात्मक जंग

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश की राजधानी की विधानसभा दिल्ली मंे लगातार तीन बार सरकार बना चुके अरविन्द केजरीवाल के लिए चौथी बार सरकार बनाना आसान नहीं दिख रहा है। इस बार भाजपा के साथ कांग्रेस भी जोरदार मोर्चा खोले हुए है। तीनों ही मुख्य प्रतिद्वन्द्वी मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणा कर चुके हैं। चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है। दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 फरवरी को नतीजे घोषित किये जाएंगे। दिल्ली के लोगों को मुफ्त बिजली और पानी जैसी सुविधाएं आम आदमी पार्टी की सरकार दे रही है। अब महिला सम्मान योजना और संजीवनी योजना का वादा किया गया है। उधर, भाजपा और कांग्रेस ने भी वादों की झड़ी लगा रखी है। भाजपा ने शराबी नीति विवाद और केजरीवाल के मुख्यमंत्री आवास की भव्यता पर सवाल खड़े किये हैं। उधर, भाजपा की सबसे बड़ी ताकत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। एमसीडी के चुनाव मंे भाजपा का वोट बैंक पता चला था और 2024 के लोकसभा चुनाव मंे भी दिल्ली में भाजपा का दबदबा कायम रहा। हालंाकि दिल्ली में भाजपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो केजरीवाल की बराबरी कर सके लेकिन कांग्रेस अगर अच्छा प्रदर्शन करती है तो इससे केजरीवाल के वोट ही कम होंगे और भाजपा को लाभ मिलेगा। कांग्रेस को दिल्ली मंे खोने का कोई डर नहीं है, उसे सिर्फ पाना ही पाना है।
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। दिल्ली में 5 फरवरी को वोटिंग होगी जबकि 8 फरवरी को नतीजे आएंगे। चुनाव आयोग ने चुनाव तारीखों का ऐलान किया। इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी लगातार चौथी बार सत्ता में लौटने की कोशिश में जुटी है। वहीं, बीजेपी और कांग्रेस इस बार सत्ता में वापसी के लिए जोर लगा रही हैं। अरविंद केजरीवाल ने सितंबर 2024 में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, जिसका मुख्य कारण उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोप थे, विशेष रूप से शराब नीति से जुड़े मामले में। इसी आरोप में वह पांच महीने तक जेल में बंद रहे थे और जिसके बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया गया था। उनका इस्तीफा आगामी चुनावों से पहले अपनी नैतिक छवि को पुनः स्थापित करने और अपनी पार्टी, आम आदमी पार्टी की साख को बचाने के प्रयास के रूप में देखा गया। इस निर्णय का एक और कारण भाजपा के साथ चल रही राजनीतिक खींचतान को भी माना गया। भाजपा ने उनकी सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी और केजरीवाल ने इस्तीफा देकर इस कदम को विफल कर दिया। इसके अलावा, जमानत की शर्तों के तहत वे मुख्यमंत्री पद पर प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकते थे, इसलिए इस्तीफा देना उनके लिए राजनीतिक रूप से सही कदम माना गया। उनका यह कदम आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की रणनीति को मजबूत करने और जनता से नई मांग के साथ सामने आने का प्रयास है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। आप पिछले 10 सालों से दिल्ली की सत्ता में है और दो बार भारी बहुमत से जीत चुकी है। भाजपा केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी है और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के बल पर दिल्ली में जीत की उम्मीद कर रही है। कांग्रेस एक समय दिल्ली में मजबूत थी, लेकिन पिछले चुनाव में उसका प्रदर्शन बहुत खराब रहा था। अब वह अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश में है। यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आमने-सामने होंगे। आप की सबसे बड़ी ताकत केजरीवाल की लोकप्रियता और 10 साल का शासन है। दिल्ली के लोगों को मुफ्त बिजली और पानी जैसी सुविधाएं मिल रही हैं। महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी है। केजरीवाल ने महिला सम्मान योजना और संजीवनी योजना पुजारियों और ग्रंथियों को सम्मान राशि देने जैसे नए वादे भी किए हैं। इन योजनाओं के लिए पंजीकरण प्रक्रिया शुरू होने पर लोगों में काफी उत्साह देखा गया। पार्टी के अंदरूनी मामलों में भी केजरीवाल का दबदबा बरकरार है। 20 विधायकों को टिकट नहीं दिया गया, लेकिन किसी ने भी बगावत नहीं की। गरीबों के बीच आप का जनाधार मजबूत है।
भाजपा की सबसे बड़ी ताकत प्रधानमंत्री मोदी हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की अप्रत्याशित जीत ने मोदी की लोकप्रियता को और बढ़ा दिया है। मोदी ने चतुराई से यह कहकर आप के मुफ्त वादों को मुद्दा नहीं बनने दिया कि भाजपा सत्ता में आने पर इन्हें बंद नहीं करेगी। एमसीडी चुनावों ने दिखाया कि भाजपा का मुख्य वोट बैंक बरकरार है। लोकसभा चुनावों में भी मोदी ने दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन किया था। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल के कार्यों ने भी आप के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। एक केंद्रीय कानून, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक बार पलट दिया था, ने दिल्ली की निर्वाचित सरकार के नौकरशाही पर नियंत्रण को कम कर दिया है। इससे आप की शासन व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा महाराष्ट्र की तरह दिल्ली में भी छोटे समूहों में मतदाताओं तक पहुँचने के लिए एक अच्छा ग्राउंड गेम चला सकती है।
भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि मोदी मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। पार्टी के पास केजरीवाल के कद का कोई स्थानीय नेता नहीं है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा, केजरीवाल के ब्रांड के खिलाफ संघर्ष करती रही है। केंद्रीय नेतृत्व का मानना है कि पार्टी को स्थानीय नेता की जरूरत नहीं है लेकिन क्या दिल्ली जैसे महानगर राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे हैं? उधर, कांग्रेस के लिए कुछ भी न खोने की स्थिति एक अजीब तरीके से फायदेमंद हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 4 फीसद तक गिर गया था। इससे थोड़ा भी ऊपर जाना उसके लिए अच्छा होगा। लोकसभा चुनाव में कुछ उत्साहजनक संकेत मिले थे, हालांकि पार्टी तीनों सीटें हार गई थी। कांग्रेस को उम्मीद है कि अधिकांश सीटों के लिए जल्दी उम्मीदवारों की घोषणा करने से उसके उम्मीदवारों को खुद को मतदाताओं से परिचित कराने का अच्छा मौका मिलेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शीला दीक्षित की गैर-आक्रामक राजनीतिक शैली की याद कुछ मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में वोट करने के लिए प्रेरित करेगी। हालांकि भाजपा की तरह, दिल्ली कांग्रेस के पास भी कोई बड़ा नेता नहीं है। अरविंदर सिंह लवली और मतीन अहमद जैसे नेता, जो कभी अपने नाम पर वोट पाते थे, अब कांग्रेस के खिलाफ हैं। भाजपा और आप की तुलना में कांग्रेस का कैडर बहुत कमजोर है। गांधी परिवार दिल्ली चुनाव को लेकर उदासीन दिख रहा है। दिल्ली कांग्रेस की महीने भर चली न्याय यात्रा में उनमें से कोई भी शामिल नहीं हुआ था। युवा मतदाताओं को शीला दीक्षित और उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के बारे में कुछ याद नहीं है। भाजपा विरोधी मतदाता ज्यादातर आप को पसंद करते हैं।
कुल 70 सीटों में 14 ऐसी सीटें हैं, जहां पर 2020 की तुलना में वोटर कम हुए हैं, जिसमें दो सीट एससी के लिए रिजर्व हैं और एक सीट अल्पसंख्यक बहुल है। दिल्ली में लगभग 9 विधानसभा सीट ऐसी हैं, जिन्हें अल्पसंख्यक बहुल माना जाता है। इसलिए मुफ्त की रेवड़ियां कितना असर दिखाएंगी, यह महत्वपूर्ण है। (हिफी)

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