राधा के बिना तो कृष्ण भी अधूरे

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)
अभी 26 अगस्त को देश भर मंे भगवान कृष्ण का जन्मदिन मंदिरों से लेकर घरों तक हर्षोल्लास से मनाया गया। कृष्ण राधारानी के बिना अधूरे हैं। कृष्ण के नाम से पहले ही राधा का नाम लिया जाता है। जगतजननी राधा रानी का जन्मदिन भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। कहते हैं भाद्रपद की अष्टमी को जन्म लेने के कारण कान्हा का रंग सांवला था तो भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को जन्म लेने के कारण राधा का रंग गोरा था। राधा रानी का जन्मदिन 11 सितम्बर को मनाया जाएगा। उदया तिथि के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी 11 सितम्बर बुधवार को होगी। माना जाता है कि भगवान कृष्ण का सहज रूप में आशीर्वाद प्राप्त करना है तो उनको राधारानी की कृपा भी पानी होगी। राधा-कृष्ण के आशीर्वाद से सभी प्रकार के कष्ट एवं दुख दूर हो जाते हैं। श्रीमद भागवत पुराण, विष्णुु पुराण और स्कंद पुराण में राधारानी के बारे मंे विस्तार से बताया गया है।
पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक वैश्य गोप की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। वृषभानु बरसाने मंे रहते थे। बरसाने के अलावा राधा का अधिकांश समय वृंदावन मंे बीता। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधा जब बड़ी हुईं तो उनके माता-पिता ने रायाण नामक एक वैश्य से उनका संबंध तय कर दिया। उस समय राधा ने घर मंे अपनी छाया स्थापित कर खुद अन्तर्ध्यान हो गयीं। उसी छाया से रायाण वैश्य का विवाह हुआ था। राधा रानी कृष्ण का एक अंग बन गयीं।
भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय राधारानी का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस वजह से हर साल उस तिथि को राधा अष्टमी मनाते हैं। राधा अष्टमी को राधा जयंती के नाम से भी जानते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से 14 या 15 दिन बाद राधा अष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इस साल राधा अष्टमी के दिन रवि योग बन रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर मंगलवार को रात 11 बजकर 11 मिनट से शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 11 सितंबर बुधवार को रात 11 बजकर 46 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर राधा अष्टमी का पावन पर्व 11 सितंबर को मनाया जाएगा। इस बार राधा अष्टमी के दिन लाडली जी की पूजा के लिए आपको 2 घंटे 29 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। जो लोग व्रत रखेंगे, वे दिन में 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 1 बजकर 32 मिनट तक राधा अष्टमी की पूजा कर सकते हैं। राधा अष्टमी की पूजा दोपहर में करते हैं। राधा अष्टमी पर ज्येष्ठा नक्षत्र सुबह से लेकर रात 9 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। उसके बाद से मूल नक्षत्र प्रारंभ है। उस दिन ब्रह्म मुहूर्त 04-32 एएम से 05-18 एएम तक है। वहीं राधा अष्टमी के दिन कोई अभिजीत मुहूर्त नहीं है। इस साल राधा अष्टमी के दिन 2 शुभ योग बन रहे हैं। राधा अष्टमी पर प्रीति योग सुबह से लेकर रात 11 बजकर 55 मिनट तक बन रहा है। उसके बाद से आयुष्मान् बनेगा। राधा अष्टमी की पूजा प्रीति योग में होगी। वहीं रवि योग का निर्माण रात में 09 बजकर 22 मिनट पर होगा और अगले दिन 12 सितंबर को सुबह 6 बजकर 5 मिनट तक रहेगा।
कहा जाता है कि जो भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद पाना चाहता है, उसे राधारानी की कृपा पानी होगी। राधा जी के नाम जप से भगवान श्रीकृष्ण को पाना सरल है। राधा अष्टमी के अवसर पर व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है। राधाकृष्ण के आशीर्वाद से सभी दुख दूर होते हैं।
प्रेम की रीत जगत को बताने के लिए स्वयं प्रेम की देवी राधा रानी धरती पर अवतरित र्हुइं थीं। श्रीकृष्ण के जीवन की धारा, राधा जी। यह सत्य है कि कान्हा ने तो धरा पर अवतार अधर्म के नाश के लिए लिया था लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि बिना राधा के वासुदेव कृष्ण के
ध्येय को दिशा नहीं मिल सकती थी। राधा रानी का धरती पर आना इतना भर नहीं था। इसके पीछे कारण है एक श्राप। वो श्राप जिसके कारण श्रीकृष्ण से पहले राधा रानी धरती पर अवतरित र्हुइं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार श्रीकृष्ण की आराधना राधा के बगैर अधूरी मानी जाती है। श्रीकृष्ण का राधा के संग भले ही बहुत ज्यादा समय नहीं बीता हो, लेकिन दोनों एक-दूसरे के दिल में हमेशा बसे रहे। राधाजी पतिव्रता नारी थीं अपने पति रायाण के प्रति वह पूरी तरह समर्पित रही थीं, लेकिन श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम सात्विक और निश्छल था जिसको उन्होंने हमेशा दिल से निभाया।
बरसाना को राधाजी की जन्मभूमि माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी वजह से भक्त उनको राधारमण कहकर पुकारते हैं। पद्म पुराण में परमानंद रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है। इनकी उपासना के बगैर जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता। भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु की पत्नी कीर्ति के यहाँ भगवती राधा अवतरित हुई। तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। नारद पुराण के अनुसार राधाष्टमी का व्रत करने वाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को भी सहजता से जान जाता है। पद्म पुराण में राधा और कृष्ण को युगल सरकार की संज्ञा दी गई है।
शिव पुराण में श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा से भिन्न सुदामा गोप को राधाजी द्वारा श्राप दिए जाने का उल्लेख है।शास्त्रोक्त अनुसार गोलोक में निवास करने वाली राधा को एक शाप से पृथ्वी पर आकर कृष्ण का वियोग सहना पड़ा था। राधा ने श्रीकृष्ण की विरजा नाम की सखी का अपमान किया था जिससे अपमानित होने से वह विरजा नदी बनकर बहने लगी, तब सुदामा ने नाराज होकर राधा को कड़वे शब्द कहे। राधा ने सुदामा को दानव बनने का श्राप दे दिया। तब सुदामा ने भी राधा को मानव योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधाष्टमी का पर्व मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र बरसाना, मथुरा, वृंदावन, नंदगांव में मनाया जाता है। इस दिन राधा रानी और भगवान कृष्ण के विग्रह को पूरी तरह फूलों से सजाया जाता हैं। राधाष्टमी के दिन भक्त राधा रानी के चरणों के शुभ दर्शन प्राप्त करते हैं, क्योंकि शेष दिनों में राधा के पैर ढके रहते हैं। आमतौर पर बरसाने के पवित्र राधा कुंड में स्नान करने की मनाही है लेकिन राधा अष्टमी के दिन, भक्त राधा कुंड के पवित्र जल में डुबकी लेने के लिए आधी रात से ही कतार में खड़े होकर प्रतीक्षा करते हैं। परंपराओं के अनुसार, गौडिया वैष्णव संप्रदाय श्रीकृष्ण एवं राधा रानी की समर्पित भाव से पूजा करते है। गौडिया वैष्णव संप्रदाय राधाष्टमी को परम्पराओं के अनुरूप आधे दिन का उपवास करते हैं। कुछ भक्त इस दिन निर्जला उपवास भी करते हैं। इस दिन वो पानी की एक बूंद भी नहीं लेते हैं। (हिफी)