भये प्रगट कृपाला दीनदयाला…

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
महाराजा मनु और शतरूपा ने भगवान से अपना जैसा ही पुत्र मांगा था। भगवान ने कहा- ‘आप सरिस खोजों कहं जाई, नृप तव तनय होब में आई। भगवान ने अपना वचन निभाया और मनु-शतरूपा के रूप मंे अयोध्या मंे राजा दशरथ और महारानी कौशल्या ने जन्म लिया था। भगवान उनके पुत्र राम के रूप मंे चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नौमी को जन्मे थे। उन्हीं की याद मंे रामनवमी मनायी जाती है।
राम नवमी का पर्व रविवार, 10 अप्रैल 2022 को मनाया जाएगा। राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त 10ः23 से शुरू होकर 12ः53 तक चलेगा। अवधि 02 घंटे 31 मिनट होगी। रामनवमी
मध्याह्न क्षण 11ः38 बजे है। नवमी तिथि 09 अप्रैल 2022 को 01ः23 बजे शुरू होगी और नवमी तिथि 10 अप्रैल 2022 को 03ः15 बजे समाप्त होगी।
अयोध्या मंे राम नवमी के दिन, श्रद्धालु पवित्र सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं। इसके पश्चात् भगवान राम को समर्पित मंदिरों में उनकी जयंती मनाने के लिए जाते हैं। यह दिन न हिंदू समुदाय के लोगों काफी महत्वपूर्ण है। इस दिन सभी राम मंदिरों की सजावट देखने लायक होती है। अयोध्या एक बहुत लोकप्रिय स्थान है क्योंकि यही भगवान श्री राम का जन्मस्थान है। इस दिन भगवान राम की महानता से संबंधित भजन गाए जाते हैं और मंत्रों का जाप किया जाता है। इस दिन विशेष यज्ञ के आयोजन भी किए जाते हैं। रामनवमी को बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ मनाने की सदियों पुरानी परंपरा है।
भगवान राम के नाम का उल्लेख केवल हिंदू शास्त्रों में ही नहीं, बल्कि जैन और बौद्ध धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। भगवान श्री राम का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए राम नवमी का दिन सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन श्री राम का पूजन करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नए विक्रमी संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का, जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियां रही हैं, जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है। रामनवमी भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं और इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं।
भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है, पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।
पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी
को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता है।
हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है। रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।
हरि अनंत हरि कथा अनंता के अनुसार भगवान राम को लेकर भी अनंत कथाएं हैं। एक कथा इस प्रकार है- राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढ़िया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा, ‘बुढ़िया माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो मैं भी करूं।’ बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गरीब गुजारा करती थी। अतिथि को न कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अतः दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गई और अंजली मोती देने के लिए विनती करने लगी। राजा अचंभे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिए। बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गए और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कुछ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ोस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे। एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी, तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा।
बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह किले की ओर ले चली। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचंभे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहें तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरंत पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गए और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। इस तरह की कितनी ही कहानियां हैं। (हिफी)