गणपति यहां पूरी करते हैं मनोकामना

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आजकल देशभर में विघ्नविनाशक गणेश जी की जयंती मनायी जा रही है। यूं तो गणेश जी घर-घर पूजे जाते हैं और जगह जगह मंदिर भी मिल जाएंगे लेकिन कुछ मंदिर ऐसे हैं जिनको लेकर मान्यता है कि वहां पूजा अर्चना करने वालों की सभी मनोकामनाएं निश्चित रूप से पूरी होती हैं। गणेश
जी के मंदिर भारत ही नहीं विदेशों में
भी हैं।
श्रीगणेश जी की सबसे ऊंची मूर्ति थाईलैंड के ख्लॉंग ख्वेन शहर के एक इंटरनेशनल पार्क में स्थित है। इस शहर को चचोएंगसाओ और ‘सिटी ऑफ गणेश’ के नाम से भी जाना जाता है। गणेश जी की प्रतिमा 39 मीटर ऊंची है और इसे कांस्य धातु से बनाया गया है। इस प्रकार देश-विदेश में भगवान गणेश की कई प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं परंतु देश में कुछ ऐसे खास मंदिर हैं जिनकी प्रसिद्धि और प्रताप दूर-दूर तक फैला है और जहां लाखों की संख्यां में भक्त एकत्रित होते हैं।
सिद्धि विनायक गणेश मंदिर मुंबई- इस मंदिर का निर्माण 19 नवंबर सन 1801 में गुरूवार के दिन पूर्ण हुआ था। मुंबई प्रभादेवी में काका साहेब गाडगिल मार्ग और एस.के. बोले मार्ग के कोने पर वह मंदिर स्थित है। माटूंगा के आगरी समाज की स्वर्गीय श्रीमती दिउबाई पाटिल के निर्देशों और आर्थिक सहयोग से एक व्यावसायिक ठेकेदार स्वर्गीय लक्ष्मण विथु पाटिल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। आज इस मंदिर को गजानन के विशेष मंदिर का दर्जा प्राप्त है। मंदिर की सिद्धि और प्रसिद्धि इतनी है कि आम हो या खास, सभी बप्पा के दर पर खिंचे चले आते हैं।
’महाराष्ट्र में सिद्धि विनायक मंदिर की तरह ही दगड़ू सेठ गणपति का मंदिर भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह महाराष्ट्र का दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इसे आम बोलचाल में दगडू सेठ का मंदिर भी कहते हैं। इसे श्रीमंत दग्दूशेठ नाम के हलवाई ने अपने बेटे की प्लेग से मौत हो जाने के बाद बनवाया था।
’अष्टविनायक मंदिर महाराष्ट्र- जिस प्रकार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है वैसे ही गणपति उपासना के लिए महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों का विशेष महत्व है। महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इनमें विराजित गणेश की प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं। इन सभी मंदिरों के बारें में गणेश और मुद्गल पुराण में बताया गया। ये मंदिर हैं- 1,मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर, पुणे, 2. सिद्धिविनायक मंदिर, अहमदनगर, 3. बल्लालेश्वर मंदिर, रायगढ़, 4. वरदविनायक मंदिर, रायगढ़, 5. चिंतामणी मंदिर, पुणे, 6. गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर, पुणे, 7. विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर, ओझर और 8. महागणपति मंदिर, राजणगांव। इस गणेश उत्सव पर आप अष्टविनायक मंदिर घूमने जा सकते हैं। यह मंदिर महाराष्ट्र में स्थित हैं. अष्टविनायक का अर्थ है “आठ गणपति”। इन मंदिर में गणेश की मूर्ती हैं। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
चिंतामन गणपति उज्जैन- उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में भगवान गणेश का प्राचीनतम मंदिर स्थित है। इसे चिंतामण गणेश के नाम से जाना जाता है। गर्भगृह में प्रवेश करते ही गणेशजी की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक। यह स्वयंभू मूर्तियां हैं। ऐसी मान्यता है कि चिंतामण चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, इच्छामन अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं जबकि सिद्धिविनायक
स्वरूप सिद्धि प्रदान करते हैं। चिंतामण गणेश मंदिर परमारकालीन है, जो कि 9वीं से 13वीं शताब्दी का माना जाता है। इस मंदिर के शिखर पर सिंह विराजमान है। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामण गणेश मंदिर माता सीता द्वारा स्थापित षट् विनायकों में से एक हैं।
उज्जैन में बड़ा गणेश का मंदिर भी चमत्कारिक है। लाल रंग के बड़े से गणेश पत्नियों रिद्धि और सिद्धि के साथ यहां विराजमान हैं। इस मंदिर में पंचमुखी हनुमान भी मौजूद हैं। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां पर ज्योतिष और संस्कृति भाषा का ज्ञान भी दिया जाता है।
खजराना गणेश मंदिर, इंदौर- मध्यप्रदेश में चिंतामण गणपति की तरह इंदौर का खजराना गणेश मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। वक्रतुंड श्रीगणेश की 3 फुट प्रतिमा चांदी का मुकुट धरे रिद्धी-सिद्धी के साथ विराजमान हैं जिनका नित्य पूजन विधि-विधान से होता है। गणेशजी की यह मूर्ति भी मंदिर के सामने बावड़ी से निकाली गई थी। इसके बावड़ी में होने का संकेत मंदिर के पुजारी भट्टजी के पूर्वजों को स्वप्न के माध्यम से मिला। जिसे आपने श्रद्धापूर्वक वर्तमान स्थान पर विराजित किया तब मंदिर काफी छोटा था। बाद में 1735 में मंदिर का पहली बार जीर्णोद्धार देवी अहिल्याबाई ने कराया। इसके बाद 1971 से लगातार इसकी सज्जा का कार्य जारी है।
रॉकफोर्ट उच्ची पिल्लयार मंदिर, तमिलनाडु- तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली (त्रिचि) में रॉक फोर्ट नामक पहाड़ी के सबसे ऊपर स्थित उच्ची पिल्लयार मंदिर बहुत ही प्राचीन माना जाता है। इससे जुड़ी एक मान्यता है कि यहां रावण के भाई विभीषण ने एक बार भगवान गणेशजी पर वार किया था। कथा अनुसार राम ने उन्हें विष्णु की मूर्ति लंका में विराजमान करने के लिए दी थी और शर्त यह कि ले जाते वक्त भूमि पर न रखें अन्यथा ये मूर्ति वहीं विराजमान हो जाएगी। इधर, देवता लोग नहीं चाहते थे कि यह मूर्ति राक्षस राज्य में विराजमान हो तब उन्होंने गणेशजी को पाठ पढ़ा दिया। बिचारे गणेश जी एक बालक का वेशधारण करके विभीषण के पीछे हो लिये। रास्ते में विभीषण ने सोचा थोड़ा स्नान ध्यान कर लिया जाए। उन्होंने उस बालक को देखकर कहा कि ये बच्चे इस मूर्ति को संभालों। इसे नीचे मत रखना। मैं अभी नदी में स्नान करके आता हूं। बालरूप में गणेशजी ने वह मूर्ति ले ली और उनके जाने के बाद भूमि पर रख दी और जाकर उक्त पहाड़ी पर छुप गए। विभीषण को जब पता चला तो दिमाग खराब हो गया। वह उस
बालक को ढूंढते हुए उसी पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गए जहां उन्होंने उस बालक को देखकर उसके सिर पर प्रहार किया। तब गणेशजी अपने
असली रूप में प्रकट हो गए तो यह देखकर विभीषण पछताए और उन्होंने क्षमा मांगी। माना जाता है कि तभी से इस चोटी पर गणेशजी विराजमान हैं। हालांकि इसका संबंध 7वीं शताब्दी से बताया जाता है। 273 फुट की ऊंचाई पर बसे इस मंदिर में 400 के लगभग सीढ़ियां हैं।
कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर- यह मंदिर आंधप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरूपति मंदिर से 75 किमी दूर स्थित है। यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्त अपने पाप धोने के लिए मंदिर के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं।
मधुर महागणपति मंदिर, केरल- यह भी अति प्राचीन मंदिर है जो मधुवाहिनी नदी के तट पर बना है। दसवीं शताब्दी के इस मंदिर की गणेश मूर्ति न ही मिट्टी की बनी है और न ही किसी पत्थर की यह न जाने किस तत्घ्व से बनी है। इस मंदिर और इसकी मूर्ति को नष्ट करने के लिए एक बार टीपू सुल्तान यहां आया था परंतु यहां की किसी चीज ने उसे आकर्षित किया और उसका फैसला बदल गया। (हिफी)