धर्म-अध्यात्म

यूनान में भी कृष्ण

हम जब तक समग्रता से जीवन जीने वाले कृष्ण को परंपरागत आस्थाओं तक सीमित रखेंगे, हमारे अंदर अन्याय का प्रतिकार करने और कदाचार से जूझने का संकल्प उत्पन्न नहीं हो सकता। कृष्ण के व्यक्तित्व में जड़-सिद्धांतों व पुरातन पंथी मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है। कृष्ण सदैव कर्म के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं। वह कोई निजी हित साधने या व्यक्तिगत लाभ उठाने के लिए कर्म से प्रेरित नहीं होते। इसलिए दूसरों को भी कर्म फल की चिंता से मुक्ति का संदेश देते हैं। ऐतिहासिक नजरिए से देखें तो कृष्ण का प्रारंभिक संदर्भ छान्दोग्य उपनिषद में ऋषि घोर अंगिरा के शिष्य एवं वसुदेव और देवकी पुत्र के रूप में मिलता है। कृष्ण ने आध्यात्मिक तत्व दर्शन की शिक्षा अंगिरा ऋषि के सानिध्य में प्राप्त की, जबकि मार्शल आर्ट की तमाम विधाओं सति 64 कलाएं सांदीपनि ऋषि के गुरुकुल में सीखीं। इन विधाओं में उनकी प्रवीणता ही उन्हें जंबूद्वीप से निकालकर ग्रीक सिविलाइजेशन के एक चमत्कारी देवता हेराक्लीज के रूप में लोकप्रिय और पौराणिक बनाती है। कृष्ण ने अपनी लीलाओं से यूनानी दार्शनिकों, नियार्कसए ओनेसिक्रटस मेगस्थनीज प्लूटार्क व स्ट्रेबो को इस कदर अभिभूत किया कि उन्होंने कृष्ण का तादात्म्य अपने प्राचीन देवता हेराक्लीज से स्थापित कर दिया।
सिकंदर के समकालीन ग्रीक इतिहासकार बताते हैं कि पोरस युद्ध लड़ते समय भी हेराक्लीज यानी कृष्ण? की मूर्ति साथ रखते थे। इंडिका मेगस्थनीज ने लिखा है कि सौरसेनाई शूरसेन राज्य की राजधानी मेथोरा मथुरा और क्लेईसोबारा कृष्ण पुरा के निवासी हेराक्लीज देवता की आराधना करते हैं। कुछ बरस पहले यूनान की एक आर्कियाॅलजिकल साइट से मिले 200 ईसा पूर्व ग्रीक सभ्यता के सिक्कों पर एक देवता को कृष्ण की भांति हाथ में सुदर्शन चक्र लिए हुए और उनके भाई बलराम को गदा व हल के साथ उत्कीर्ण किया गया है।
आप कृष्ण को एक मिथक पुरुष मानंे या फिर एक अतिरंजित व्यक्त्वि लेकिन वे दैवीय गुणांे से संपन्न एक महानायक जरूर रहे होंगे। पुरात्वविदों को मथुरा के नजदीक मोरा नामक जगह से पहली ईस्वी सदी का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है जिसमें तोषा नाम की एक महिला द्वारा पत्थरों से बने एक मंदिर में कृष्ण सहित पांच वृष्णि वीरों की मूर्तियां स्थापित किए जाने का वर्णन है। इस शिलालेख में इन वीरों को भागवत टाइटल से भी नवाजा गया है। भागवत धर्म के अनुयाई कृष्ण की आराधना के साथ-साथ बलराम कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न रुक्मिणी से पैदा प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध और कृष्ण के जांबवती से उत्पन्न पुत्र सांब की उपासना भी करते हैं। वायु पुराण में इन पांचों को पंचवीर कहा गया है।
महाराष्ट्र के नानाघाट से मिले एक पुरातात्विक अभिलेख में वासुदेव कृष्ण व संकर्षण यानी बलराम की पूजा का उल्लेख मिलता है। कुषाण काल में वासुदेव कृष्ण की पूजा भारत के विभिन्न भागों में प्रचलित हो चुकी थी। कुषाण वंश के राजाओं हुविष्क व वासुदेव भागवत धर्म के अनुयायी थे। तमिल प्रदेश में भागवत धर्म व कृष्ण की पूजा का प्रचार-प्रसार अलवार संतों के द्वारा किया गया। बारह अलवार संतों की फेहरिस्त में एकमात्र महिला साध्वी अंडाल मीराबाई की तरह कृष्ण की प्रेम दीवानी थी।
असल में कृष्ण भक्ति के विस्तृत आकार लेने का एक कारण यह है कि कृष्ण न तो दमनवादी हैं न पलायनवादी। संघर्षों के बीचों बीच खड़े वह शांत, अनासक्त और स्थितप्रज्ञ नजर आते हैं। (हिफी)

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