पांडवों को स्वजन हत्या से यहां मिली थी मुक्ति
तीर्थराज ‘लोहार्गल‘ चतुर्थ गुप्त तीर्थो में.........

हमारा देश एक धर्म प्रधान देश है, जहां अनेकानेक तीर्थ स्थल हैं तथा इन सबकी अपनी अपनी पृष्ठभूमि व महत्ता हैं। राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र के झुंझुनू जिला मुख्यालय से सत्तर किलोमीटर दूर आड़ावल पर्वत की सुरम्य घाटियों में उदयपुरवाटी कस्बे से दस किलोमीटर दूर स्थित है प्रसिद्ध तीर्थराज ‘लोहार्गल‘। प्राकृतिक दृश्यों की मनोहारी छटा यहां देखते ही बनती है। यहां के सूर्यकुण्ड की महत्ता को सर्वत्र स्वीकार किया गया है। लोहागर्ल का अर्थ है- वह स्थान जहां लोहा गल जाये। इस तीर्थ स्थल का गर्ग संहिता व पद्मपुराण में भी उल्लेख मिलता हैं। इसको सतयुग में ब्रहमऋद्, त्रेतायुग में कान्तिकुई, द्वापर युग में शंखपुरी व कलयुग में लोहार्गल के नाम से पुकारा गया है।
इस स्थान के बारे में अनेक कहानियां व किवदन्तियां प्रचलित हैं। महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान श्री कृष्ण के निर्देश पर देश के सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन को चल पड़े। कृष्ण ने पाण्डवों को बताया था कि जिस स्थान पर तुम्हारे अस्त्र शस्त्र पानी में गल जायें, वहाँ तुम लोग स्वजन हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे। देश के समस्त तीर्थ स्थानो का भ्रमण करने के बाद भी पांडवांे को वांछित फल प्राप्त नही हो सका । उसी यात्रा के दौरान वे घूमते हुए लोहार्गल आए तथा यहां बने सूर्यकुण्ड के पवित्र जल में स्नान किया। कुण्ड में स्नान करते ही पाण्डवो के हथियार गल गये। इस पर पांडवो के हर्ष व आश्चर्य की सीमा नहीं रही, क्योंकि उन्हे वांछित लक्ष्य प्राप्त हो चुका था। सोमवती अमावस्या का स्नान करने के लिए पांडवों ने 12 साल तक यहां इंतजार किया था। उन्होने इस स्थान की महत्ता को समझा और इसे तीर्थराज की उपाधि प्रदान की।
लोहार्गल महात्म्यम में बताया गया है कि-
अस्तिगुह्तमं स्थानं साक्षात्कैवल्यसाधनम् नाम्रा लोहार्गलं ब्रह्मह्दाज्जां शुचापहम।।
यत्र ब्रह्मादयो देवा ऋष्यश्र तपोधना। विष्णुमाराध्य तपसा सर्वार्थान्प्रतिपेदिरे।।
यत्र पञ्चविधा जाता नदी कैवल्यदायिनी। यत्र वै देवदेवस्य सान्निध्यं नित्यशो हरे।।
अर्थात ब्रह्मकुंड से उत्पन्न साक्षात, मुक्तिदायक, शोकनाशक, अत्यंत गोपनीय लोहार्गल नामक एक स्थान है जहां पर ब्रह्मादिक देवगण एवं तपोधन ऋषिलोग तप के द्वारा विष्णु भगवान की आराधना कर अपनी समस्त कामनाओं को प्राप्त हुए हैं। जहां पर मुक्ति देने वाली पांच नदियां बह रही हैं और जहां पर देवों के देव विष्णुभगवान सर्वदा निवास करते हैं।
एक अन्य गाथा के अनुसार यहाँ महर्षि परशुराम ने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिये वैष्णव यज्ञ करवाया था, इस यज्ञ में इन्द्र सहित कई देवी- देवता व ऋषि वशिष्ठ आये थे, जिन्हें यहां का वातावरण भा गया, इस कारण वे यहां लम्बे समय तक तपस्यारत रहे। ‘हिमाद्री संकल्प ‘ में भी चतुर्थ गुप्त तीर्थो में इस तीर्थ का नाम उल्लेखनीय हैं।
लोहागर्ल बहुत कुछ जयपुर के गलता तीर्थ से समानता रखता है। गलता के सूर्यमन्दिर की तरह यहाँ भी पहाड़ पर सूर्यमन्दिर बना हुआ हैं। गलता की तरह यहां भी पानी गोमुख से आता है। पहले यह स्थान सिर्फ संन्यासियों की तपोस्थली ही था। अब यहाँ गृहस्थ भी रहने लगे हैं। यहाँ कुछ वर्ष पूर्व भीमकुण्ड की खुदाई करने पर महाभारत कालीन सिक्के व कलश मिले थे। यहाँ महात्मा चेतनदास द्वारा बनवाई गई विशाल बावड़ी हैं, जो राजस्थान की विशालतम बावडियों मे से एक हैं। चेतनदास बावड़ी की वैभवता को देखकर दर्शक भाव-विभोर हो जाता है। 108 सीढियों वाली यह एक विशाल व भव्य बावड़ी है जो उचित देखरेख के अभाव में अपना वैभव खोती जा रही है। पहाड़ की डेढ किलोमीटर ऊंची चोटी पर वनखण्डी का सुन्दर मन्दिर बना हुआ हैं। कुण्ड के पास ही प्राचीन शिव मन्दिर, हनुमान मन्दिर और पहाड़ में पाण्डवों की विशाल गुफा स्थित हैं। पास ही पहाड़ पर चार सौ सीढियां चढने पर मालकेतु के दर्शन होते हैं।
यहां के बारे में एक अन्य जनश्रुति इस प्रकार है कि जब भगवन विष्णु ने ब्रह्म सरोवर की स्थापना की तो हर व्यक्ति उस सरोवर में स्नान करके स्वर्ग जाने लगा। इस पर ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु से जाकर कहा कि इस प्रकार तो भगवान कर्म का महत्त्व ही समाप्त हो जायेगा तथा हमारी तपस्या का क्या होगा। विष्णु भगवान ने महात्माओं के कहने पर सुमेरु पर्वत के माल व केतु नामक दो पुत्रों को आदेश दिया कि इस सरोवर को ढक दो तो वे इस पर आकर बैठ गए तथा सरोवर बंद हो गया। इस पर फिर समस्या उठ गई कि यह तो सभी के लिये बंद हो गया। भगवान विष्णु ने माल- केतु को अपने पंख ढीले करने को कहा। पंख ढीले होने पर इनमें से आठ जगह से पवित्र जल कि धारा निकली जो सूर्यकुण्ड, किरोड़ी, शाकम्बरी, नागकुण्ड, कोकुण्ड, खोरीकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड व भीमकुण्ड में हैं। यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद माह कि अमावस, सोमवती अमावस, पूर्णमासी, सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण पर विशाल मेला लगता हैं, जिसमें लाखों लोग यहां के पवित्र सूर्य कुण्ड में स्नान करते हैं। भाद्रपद मास की गोगानवमी से पूर्णिमासी तक लोहार्गल के चारों ओर पहाड़ों में चैबीस कोस की परिधि में परिक्रमा लगती है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग श्रद्धापूर्वक भाग लेते हैं।
धार्मिक एवं एतिहासिक स्थल होने के बावजूद यहां की हालत खराब हैं। सूर्यकुण्ड जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में हैं। महिलाओं के कुण्ड में नहाने के पश्चात कपड़े बदलने कि कोई व्यवस्था नहीं हैं। यहां सफाई व्यवस्था की हालत तो काफी खराब हैं। मुख्य द्वार पर कोई फाटक न होने के कारण आवारा पशु मुख्य कुण्ड तक घूमते रहते हैं। इस कारण चारों ओर गन्दगी व्याप्त रहती हैं। यहां आने वाली सडक की हालत अत्यन्त खराब हैं। राज्य का पर्यटन विभाग भी इस ओर कोई ध्यान नही दे रहा हैं। यदि वन एवं पर्यावरण विभाग भी यहां के विकास में रुचि दिखाये तो यहां प्रतिवर्ष हजारो देशी-विदेशी पर्यटक आ सकते हैं। यहा आने वाले श्रद्धालुओं के रहने की व्यवस्था सही नहीं है। यहां आने के लिए कोई नियमित बस सेवा भी उपलब्ध नहीं हैं। (हिफी)