पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां दु्रपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।। 3।।
आइए समझें श्रीमद भागवत गीता

आइए समझें श्रीमद भागवत गीता
रामायण अगर हमारे जीवन में मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो श्रीमद् भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। द्वापर युग के महायुद्ध में जब महाधनुर्धर अर्जुन मोहग्रस्त हो गये, तब उनके सारथी बने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध मैदान के बीचोबीच रथ खड़ाकर उपदेश देकर अपने मित्र अर्जुन का मोह दूर किया और कर्तव्य का पथ दिखाया। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक सशक्त और अविभाज्य राष्ट्र बनाया था। गीता में गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनकी विशद व्याख्या की जा सकती है। श्री जयदयाल गोयन्दका ने यह जनोपयोगी कार्य किया। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता के कुछ गूढ़ शब्दों को जन सामान्य की भाषा में समझाने का प्रयास किया है ताकि गीता को जन सामान्य भी अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सके।
–प्रधान सम्पादक
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां दु्रपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।। 3।।
प्रश्न-धृतद्युम्न दु्रपद का पुत्र है, आपका शिष्य है और बुद्धिमान है-दुर्योधन ने ऐसा किस अभिप्राय से कहा?
उत्तर-दुर्योधन बड़े चतुर कूटनीतिज्ञ थे। धृष्टाद्युम्न के प्रति प्रतिहिंसा तथा पाण्डवों के प्रति द्रोणाचार्य की बुरी भावना उत्पन्न करके उन्हें विशेष उत्तेजित करने के लिए दुर्योधन ने धृष्टाद्युम्न को द्रुपद पुत्र और आपका ‘बुद्धिमान शिष्य’ कहा। इन शब्दों के द्वारा वह उन्हें इस प्रकार समझा रहे हैं कि देखिये, दु्रपद ने आपके साथ पहले बुरा बर्ताव किया था और फिर उसने आपका वध करने के उद्देश्य से ही यज्ञ करके धृष्टाद्युम्न को पुत्र रूप से प्राप्त किया था। धृष्टाद्युम्न इतना कूटनीतिज्ञ है और आप इनते सरल हैं कि आपको मारने के लिये पैदा होकर भी उसने आपके ही द्वारा धुनर्वेद की शिक्षा प्राप्त कर ली। फिर इस समय भी उसकी बुद्धिमानी देखिये कि उसने आप लोगों को छकाने के लिए कैसी सुन्दर व्यूहरचना की है। ऐसे पुरूष को पाण्डवों ने अपना प्रधान सेनापति बनाया है। अब आप ही विचारिये कि आपका क्या कर्तव्य है।
प्रश्न-कौरव सेना ग्यारह अक्षोहिणी थी और पाण्डव सेना केवल सात ही अक्षौहिणी थी, फिर दुर्योधन ने उसको बड़ी भारी (महती) क्यों कहा और उसे देखने के लिये आचार्य से क्यों अनुरोध किया?
उत्तर-संख्या में कम होने पर भी वज्रव्यूह के कारण पाण्डव सेना बहुत बड़ी मालुम होती थी; दूसरे यह बात भी है कि संख्या में अपेक्षाकृत स्वल्प होने पर भी जिसमें पूर्ण सुव्यवस्था होती है, वह सेना विशेष शक्ति-शालिनी समझी जाती है। इसीलिये दुर्योधन कह रहे हैं कि आप इस व्यूहाकार खड़ी की हुई सुव्यवस्थित महती सेना को देखिये और ऐसा उपाय सोचिये जिससे हम लोग विजयी हों।धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय