धर्म-अध्यात्म

शक्ति की उपासना के बिना शिव भी शव हैं

नवरात्र में ब्रह्माण्ड के श्रेष्ठ क्षेत्र विंध्य धाम में उमड़ रही श्रद्धालु भक्तों की अपार भीड़ माता विंध्यवासिनी के लोक कल्याणकारी दरबार के माहात्म्य को उजागर कर रही है।
यह नवरात्र जनमानस के लोक मंगलोत्सव पर्व के रूप में मनाया जा रहा है। विंध्य धाम में आद्यशक्ति जगदम्बा विंध्यवासिनी जो महाशक्ति के साथ महालक्ष्मी स्परूपा है, के साथ विंध्याचल के त्रिकोण पर महाकाली (भय नाशिनी) महा सरस्वती स्वरूपा (महा सरस्वती) के साथ विराजमान है, जहां जनमानस लोकमंगल की कामना को लेकर जीवन के त्रिविध ताप के नाश के लिए जीवन में वैभव, ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए जीवन को भय मुक्त बनाने के लिए एवं महाविद्या की परम कृपा प्राप्त करने के लिए त्रिकोण यात्रा करता है। यह त्रिकोण विंध्य क्षेत्र में दो रूपों में छोटा त्रिकोण एवं बड़ा त्रिकोण के रूप मेंविद्यमान है। सिद्धिदात्री क्षेत्र होने के कारण राजनेताआंे में भी इस क्षेत्र के प्रति प्रगाढ़ रुचि रही है।
एक बड़ा त्रिकोण दूसरा लघु त्रिकोण जो विंध्यवासिनी माता के धाम परिसर में ही मौजूद है। जो लोग वृहद त्रिकोण नहीं कर पाते हैं उन्हें लघु त्रिकोण करने पर भी वही लाभ मिलता है। विंध्याचल का पावन धाम शिवशक्ति की उपासना स्थली होने के कारण ही दिव्य क्षेत्र के रूप में विख्यात है, इस क्षेत्र की महिमा अनन्त है। शक्ति की उपासना की श्रेष्ठता का उल्लेख इस प्रकार मिलता है ‘शक्ति के बिना ‘शिव’ भी शव है’ इस त्रिकोण के मध्यभाग में स्वयं भगवान राम द्वारा स्थापित शिवपुर में शिव का स्वयं प्राकट्य शिवलिंग है जो लोक मंगलकारी है। विंध्य क्षेत्र के त्रिकोण यात्रा दर्शन से श्रद्धालुओं को शिव-शक्ति की संयुक्त उपासना का लाभ मिलने के साथ जीवन में दारिद्र, भय नाश के साथ ऐश्वर्य की सहज प्राप्ति होती है, इन महाशक्तियों के उपासना के लिए मानव को न यंत्र की जरूरत पड़ती है न मंत्र की। भक्त को आर्त भाव से मां-मां का स्मरण मात्र से ही शिव शक्ति की अहेतुक कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्र का समय विंध्य क्षेत्र के लिए विशेष रूप से प्राकृतिक चमत्कारों का समय माना जाता है। विंध्य की पहाड़ियों में फैले वन क्षेत्र में चारों ओर हजारों श्रद्धालु माता रानी की उपासना का भाव लेकर खुले आसमान में रात्रि बिताते हैं, उन्हें जंगली सांप-बिच्छू को डसने का डर भी नहीं सताता है समूचा विंध्य क्षेत्र एवं उसके जंगली जीवों पर माता रानी की कृपा से ऐसा चमत्कार हो जाता है कि जीव जानवर भी इस काल मंे अहिंसक हो जाते हैं। इस सच्चाई को देश-विदेश से आने वाले हजारों श्रद्धालु अपनी खुली आंखों से देखते हैं और दंग रह जाते हैं।
विंध्य क्षेत्र का सीता कुण्ड जहां माता सीता ने राम के साथ वन गमन के समय स्वयं कुण्ड से निकलते हुए जल को देखकर प्रकृति के चमत्कारों से लुभाकर रात्रि विश्राम के साथ सीता रसोई बनाने के साथ विश्राम भी किया था, तभी ये यह स्थल चमत्कारों के लिए जाना जाने लगा। भगवान श्रीराम के वन गमन के समय उन्हें पिता श्री दशरथ जी के स्वर्गवास का समाचार मिलने पर श्रीराम जी ने भाई लक्ष्मण एवं सीता सहित विंध्य क्षेत्र में प्रवास के साथ गंगा तट राम गया घाट जाकर पिता श्री का तर्पण का कर्मकाण्ड करने के साथ शिवपुर में शिवपूजन किया था। सीता कुण्ड तभी से साधकों का स्वर्ग माना जाने लगा। यहां साधक को सहज साधना से श्रेष्ठ सिद्धि प्राप्त होती है। यहां साधकों की लम्बी सूची है किन्तु श्रेष्ठ साधक के रूप में माता आनन्दमयी की साधना एवं उन्हें मिली सिद्धि हर जुबानी सुनी जा सकती है। इस कुण्ड का जल आज भी असाध्य रोगों की दवा के रूप में लोग पान करते हैं। यहां दर्शन, ठहराव, जलपान से आज भी ऐसी मान्यता है कि मानव को सर्प काल योग से सहज मुक्ति मिलती है।
विंध्य क्षेत्र के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित ‘भैरव कुण्ड’ जहां दुर्लभ श्रीयंत्र का दर्शन होता है। तंत्रमंत्र साधकों के लिए श्रेष्ठ स्थली के रूप में विख्यात है। भैरव कुण्ड में मंत्र साधना के लिए दर्जनों साधकों को मिली सिद्धियों की चर्चा जुबानी सुनी जाती है। यहां नरमुण्ड से पूजित महाकाली का अद्भुत प्राचीन मंदिर है जो आम भक्तों के दर्शन के लिए खुला रहता है जहां हर वर्ष चैत्र नवरात्र के अष्ठमी ‘निशा रात्रि’ को हजारों साधक बंगाल, बिहार एवं देश के अन्य भाग से पहंुचते हैं। इस रात्रि में भैरव कुण्ड में बलि के साथ साधना का क्रम चलता है। इस बलि में भेंट चढ़ाए गए महाप्रसाद बने बकरे के मांस को भक्त साधक श्रद्धाभाव से ग्रहण करते हैं। अष्टमी की रात्रि में पूरा विंध्य क्षेत्र साधकों द्वारा की जाने वाली साधना के दीप से जगमगा उठता है। सहज साधकों के साथ तंत्र साधकों की मौजूदगी विंध्य क्षेत्र के माहात्म्य को चार चांद लगाती है।
विंध्य क्षेत्र में मानव को प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए भी स्थान सुलभ है। महाकाली मंदिर के पीछे पश्चिमी क्षेत्र में भैरवी एवं प्रेत साधकों का स्थान विख्यात है जहां प्रेत बाधा से लोगों को मुक्ति मिलती है। सम्पूर्ण विंध्य क्षेत्र लाल भैरव, काल भैरव माता के दो कोतवालों द्वारा अहर्निश रक्षित है। मोतिया तालाब, गेरुहवां तालाब विंध्य क्षेत्र के प्राकृतिक वैभव को बढ़ाते हैं। इसी विंध्य क्षेत्र में साधना तप से श्री सच्चिदानन्द सरस्वती ‘गीतस्वामी; योगीराज परम् तपस्वी देवरहवा बाबा एवं मानुष काली माता आनंदमयी को माता रानी की कृपा से सिद्धि प्राप्त हुई थी। गीता स्वामी आश्रम देवरहवा आश्रम, माता आनन्दमयी आश्रम विंध्य क्षेत्र के वैभव हैं।
(हिफी)

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