
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि हे अर्जुन! मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है और मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। मन की सोच हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करती है। मन का नियंत्रण हमारी बुद्धि से है, बुद्धि संचित कर्मों के अधीन है यानि यह सारा खेल संचित कर्मों का है। शिव योग की साधना से संचित कर्मों का नाश हो जाता है। हमारी प्रत्येक सोच एक स्पन्दन (वाइबे्रशन) पैदा करती है, जिससे ऊर्जा का निर्माण होता है। वह ऊर्जा जीवन की वास्तविक घटना के रूप में हमारे सामने प्रकट होती है जिसे हमें भोगना पड़ता है। यदि हमारी सोच नकारात्मक है तो हम अपने जीवन में दुखों का आवाहन करते हैं। फलस्वरूप रोग, असफलता, पीड़ा, गरीबी, घृणा एवं अपयश आदि हमारे जीवन में आने शुरू हो जाते हैं, मन नैराश्य से भर जाता है और कभी हम अपने भाग्य को कोसते हैं, कभी भगवान को और कभी इन अवसादों को माध्यम बनने वाले व्यक्तियों को। इसके विपरीत यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो जीवन में सुख आना शुरू हो जाता है और स्वास्थ्य, सफलता, सम्पन्नता स्वतः आनी शुरू हो जाती है, सारे काम बनने लगते हैं। जीवन आनन्दमय हो जाता है। जो भीतर सुख की अनुभूति है, वह शिव से जुड़ी है।
बाबा जी कहते हैं भगवान प्राप्त करने से पहले संसार प्राप्त करना ही होगा जिसे संसार प्राप्त नहीं होगा, वह भगवान को कैसे प्राप्त कर सकता है। दुखों को हटाना होगा। शिव तुमको वहीं दे रहा है जो तुम चाहते हो। यदि अपने को महान समझते हो तो एक दिन अवश्य ही महान हो जाओगे। जैसा (इमोशन) भाव होगा हम वैसे ही ब्रहमाण्ड से जुडे़ंगे। प्रकृति निर्गुण अवस्था में है जो तुम चाहते हो वहीं मिलेगा।
हमें जीवन जीने के लिए जो भी आवश्यकता है उसमें से 10% ऊर्जा भोजन से 20% श्वासों से और 70% ऊर्जा ब्रहमाण्ड से चक्रों के माध्यम से मिलती है। हमारी नकारात्मक सोच चक्रों की पंखुड़ियों को ब्रह्माण्ड से दिव्य ऊर्जा प्राप्त करने में अवरोध पैदा करती है। हम असहाय हो जाते हैं और बहुत कम ऊर्जा की बैसाखी से जीवन जीते हैं। सकारात्मक सोच जीवन में अपनाएं, हमेशा मन में चलने वाली सोच की प्रक्रिया पर ध्यान दें।
मेरा शरीर पूर्णतः स्वस्थ है।
मेरा मस्तिष्क पूर्णत स्वस्थ है।
मैं भाग्यशाली हूं।
मैं सत, चित, आनन्द हूं।
मैं उस परमात्मा के साथ एक हूं।
मै ही शिव हूं।
मै ही रचयिता हूं ।
मुझे अपने पर पूर्ण विश्वास है-
उपर्युक्त सोच आप में सकारात्मक शक्तियों का संचयन कर आपको ऊर्जावान बनाएगी। अपने जीवन में हो रही घटनाओं के लिए किसी को दोषी न ठहराएं, वह तो मात्र माध्यम है, वह नहीं बनेगा तो कोई ओर बनेगा। हमारे ही कर्म हैं जो हमें भोगने पड़ रहे हैं। शिव योग से संचित कर्मों का नाश होता है, अपने अन्दर सोई हुई चेतना का नाम ही शिव योग है। हम शिव के अंश हैं हमारे पास दुख आ ही नहीं सकता। हम अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं। किसी ने दुख दिया, प्रियजन ने धोखा दिया, किसी ने सम्मान नहीं किया, इस पीड़ा को मन में मत रखो। वर्तमान में सुख की अनुभूति पैदा करो। परम पूज्य बाबा जी जोर देकर कहते हैं। अंधकार नहीं चाहिए तो अंधकार की बातें क्यों करते हो? सीधे कहो न प्रकाश चाहिए, उजाला चाहिए। हम दुख, बीमारी, मुसीबत की बातें ही क्यों करें।
हम सुख, सम्पन्नता, स्वास्थ्य सफलता, प्रसन्नता और गृहशान्ति की बातें करें। जो तुम चाहते हो स्पष्ट होना चाहिए क्यों कि तुम वही रचना करोगे। अपने जीवन में वही लेकर आओगे।
’शिव योग’ अहम् ब्रह्मास्मि का ज्ञान देता है और हमारी नर से नारायण की यात्रा को सफल बनाता है। जो तुमको चाहिए वह ही सोचो, जो तुमको चाहिए वह ही बोलो। हर हाल में खुशी लेकर आओ। परम पूज्य बाबा जी अपने शिविरों में साधकों को संजीवनी शक्ति के साथ मंत्र दिक्षा भी प्रदान करते हैं। संजीवनी शक्ति भगवान शिव शिवा भगवान महामृत्युंजय स्वामी की दिव्य कृपा रूपी जीवनी शक्ति है, जो सैकड़ों वर्षों की साधना के बाद शायद ही किसी को प्राप्त हो। सिद्ध गुरुओं की परम्परा से चली आ रही यह वही संजीवनी शक्ति है जिससे कभी गुरु शुक्राचार्य मृत राक्षसों को जिन्दा कर देते थे। परम पूज्य बाबा जी अपने साधकों को एक ही क्षण में वह दिव्य संजीवनी शक्ति प्रदान कर देते हैं।
साधक के दोनों हाथों से, दोनों नेत्रों एवं तीसरे नेत्र में संजीवनी शक्ति का प्रवाह शुरू हो जाता है। शिव येाग
साधना या शिव योग ध्यान पद्धति वास्तव मंे कुण्डलिनी शक्ति जागरण की दीक्षा है। शक्तिपात के समय सारे बंधन खुल जाते हैं, मन शान्त हो जाता है। साधक ज्योतिर्मय हो जाता है।
शिव योग अद्धैत की साधना है। साधक अल्प समय में परम शिव से जुड़कर शिवमय हो जाता है। यह तनाव एवं पीड़ा का नाश कर देती है। सुबह-शाम नियमित रूप से साधना कर साधक जो भी जीवन में चाहता है, सरलता से प्राप्त कर सकता है। इसी साधना से साधक अपने संचित कर्मों का नाश कर जीवन में सुख शान्ति, सफलता, सम्पन्नता को प्राप्त कर
अध्यात्म के पथ पर अग्रसर हो शिवत्व को प्राप्त कर सकता है। (हिफी)
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