अध्यात्म

सूर्य पुत्री ताप्ती एवं चन्द्र पुत्री पूर्णा की जन्मस्थली बैतूल

 

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
हिन्दू नदियों को देवियों के रूप में नदियों से पूजते चले आ रहे हैं। भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख मिलता है। सूर्य पुत्री ताप्ती बैतूल जिले के मुलताई स्थित तालाब से निकलती है जो बैतूल जिले की ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र एवं गुजरात के विभिन्न जिलों की पूज्य नदियों की श्रेणी में आती है। इसी तरह ताप्ती नदी की सहायक नदियों में पूर्णा का विशेष उल्लेख मिलता है। पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के समय इन नदियों में स्नान कर पूर्ण लाभ अर्जित करते हैं। एक किवदंती कथाओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र दोनों ही आपस में एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं तथा दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। ऐसे में दोनांे की पुत्रियों का अनोखा मिलना बैतूल जिले में आज भी लोगों की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।
पौराणिक कथाओं में उल्लेखित वर्णन के अनुसार एक समय वह था जब कपिल मुनि ने शापित जलकर नष्ट पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी पर लोक पर गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष तक घोर तपस्या की थी। उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रह्म कमण्डल (ब्रह्मलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया, परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र राप्ती नदी का महत्व समझकर गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोपरांत प्रजापिता ब्रह्मा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देवर्षि नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ लुप्त करवा दिये, तब गंगा धारा पर सूक्ष्म धारा में हिमालय से प्रगट हुईं ठीक उस समय से सूर्य पुत्री कहलाने वाली ताप्ती नदी का महत्व कुछ कम हो गया कुछ ऐसी ही गाथायें मुनि ऋषियों में अक्सर सुनी जाती रही हैं आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वयं भी आजमाया जा सकता है। ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह में घुल जाती हैं। इस नदी में प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करने में समस्त रोग एवं पापों का नाश होता है। तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्मरोग से मुक्ति पाई थी।
पश्चिम दिशा की ओर तेज प्रभाव से बहने वाली ताप्ती नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात में करीब 470 मील (सात सौ बावन किलोमीटर) बहती हुई अरब सागर में मिलती हैं। ताप्ती नदी बैतूल जिले में सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच से निकलती हुई महाराष्ट्र के खानदेश में 96 मील समतल तथा उपजाऊ भूमि के क्षेत्र से गुजरती हैं। खान देश में ताप्ती की चौड़ाई 250 से 400 गज तथा ऊंचाई 60 फीट है। इसी तरह गुजरात में 90 मील के बहाव में यह नदी अरब सागर में मिलती हैं। ताप्ती की सहायक नदी कहलाने वाली पूर्णा नदी भैंसदेही के काशी तालाब से निकलती हुई आगे चलकर महाराष्ट्र के भुसावल नगर के पास ताप्ती में मिल जाती हैं।
इतिहास के पन्नों पर छपी कहानियों को पढ़ने से पता चलता है कि बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय के पास स्थित ताप्ती तालाब से निकलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती की जन्मकथा महाभारत में आदि पर्व पर उल्लेखित है। पुराणों में सूर्य भगवान की पुत्री ताप्ती जो तात्पी कहलाई सूर्य भगवान के द्वारा उत्पन्न की गई। ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था। भविष्य पुराणों में ताप्ती महिमा के बारे में लिखा है कि सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संजना से विवाह किया था। संजना से उनकी दो संताने हुईं-कालिन्दनी और यम। उस समय सूर्य अपने पति की परिचर्चा अपनी दासी छाया को सौंपकर वह एक घोड़ी का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गईं। छाया ने संजना का रूप धारण कर काफी समय तक सूर्य की सेवा की। सूर्य से छाया को शनीचर और ताप्ती नामक दो संतान हुईं। इसके अलावा सूर्य की एक और पुत्री सावित्री भी थी। सूर्य ने अपनी पुत्री को यह आर्शीवाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी।
पुराणों में ताप्ती के विवाह की जानकारी पढ़ने को मिलती है। वायु पुराण में लिखा है कि कृत युग में चन्द्रवंश में गय नामक एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनके एक सवरण को गुरू वशिष्ठ ने वेदों की शिक्षा दी। एक समय की बात है सवरण राजपाट का दायित्व गुरू वशिष्ठ के हाथों सौंपकर जंगल में तपस्या करने के लिए निकल गये। वैभराज जंगल में सवरण ने एक सरोवर में कुछ अप्सराओं को स्नान करते हुए देखा जिनमें से एक ताप्ती भी थी। ताप्ती को देखकर सवरणउ मोहित हो गया और सवरण मोहित हो गया और सवरण ने आगे चलकर ताप्त से विवाह कर लियां सूर्य पुत्री ताप्ती को उसके भाई शनीचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुना जी में स्नान करेगा उन्हें कभी भी अकाल मौत नहीं होगी। प्रतिवर्ष कार्तिक माह में सूर्य पुत्री ताप्ती के किनारे बसे धार्मिक स्थलों पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु नर-नारी कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने के लिए आते हैं।
चन्द्रपुत्री पूर्णा के बारे में वराह पुराण में एक कथा उल्लेखित है-गय नामक राजा की राजधानी के रूप में काशी पुष्कारिणी का उल्लेख किया गया है। सप्तकोटि ऋषियों ने राजा गय की दानवीरता की परीक्षा लेने के लिए अपने आहार और दूधपान की बात राजा से दान के रूप में सभी देवी-देवताओं के साथ मिलकर भगवान शिवशंकर की आराधना की तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर राजा गय को चन्द्रकथा के रूप में पूर्णा को सौंपा। मां पूर्णा राजा गय के साथ महिषावती आईं, किन्तु ऋषियों के कपाट को तोड़कर वह अधीर बाबा की खोह में छिप गई। यह स्थान भैंसदेही नगर के काशी तालाब के पास है। इसी काशी तालाब से मां पूर्णा दूध की नदी के रूप में बहती हुई निकलीं और ऋषि-मुनियों की प्यास बुझती चली गयी। काशी पुष्कारिणी ही आज का पोखरणी नामक छोटा सा गांव है जो बैतूल जिले के भैंसदेही नगर से थोड़ी दूर पर बसा हुआ है। यहां पर चन्द्रकन्या पूर्णा को भगवान शिव द्वारा इस धरती पर भेजे जाने के कारण इस नदी के किनारे कई शिवलिंग बने हुए हैं। 12 शिवलिंग और 12 ज्योर्तिंलिंग के प्रतीक आज भी पूर्णा नदी के किनारे बने हुए हैं। पूर्णा नदी एक रेखा की तरह है जो दूध की नदी के रूप में पूजी जाती है। (हिफी)

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