
रामायण अगर हमारे जीवन में मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो श्रीमद् भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। द्वापर युग के महायुद्ध में जब महाधनुर्धर अर्जुन मोहग्रस्त हो गये, तब उनके सारथी बने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध मैदान के बीचोबीच रथ खड़ाकर उपदेश देकर अपने मित्र अर्जुन का मोह दूर किया और कर्तव्य का पथ दिखाया। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक सशक्त और अविभाज्य राष्ट्र बनाया था। गीता में गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनकी विशद व्याख्या की जा सकती है। श्री जयदयाल गोयन्दका ने यह जनोपयोगी कार्य किया। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता के कुछ गूढ़ शब्दों को जन सामान्य की भाषा में समझाने का प्रयास किया है ताकि गीता को जन सामान्य भी अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सके। -प्रधान सम्पादक
अभिमन्यु, विराट, द्रुपद आदि का परिचय
(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
प्रश्न-कौरव सेना ग्यारह अक्षोहिणी थी और पाण्डव सेना केवल सात ही अक्षौहिणी थी, फिर दुर्योधन ने उसको बड़ी भारी (महती) क्यों कहा और उसे देखने के लिये आचार्य से क्यों अनुरोध किया?
उत्तर-संख्या में कम होने पर भी वज्रव्यूह के कारण पाण्डव सेना बहुत बड़ी मालुम होती थी; दूसरे यह बात भी है कि संख्या में अपेक्षाकृत स्वल्प होने पर भी जिसमें पूर्ण सुव्यवस्था होती है, वह सेना विशेष शक्ति-शालिनी समझी जाती है। इसीलिये दुर्योधन कह रहे हैं कि आप इस व्यूहाकार खड़ी की हुई सुव्यवस्थित महती सेना को देखिये और ऐसा उपाय सोचिये जिससे हम लोग विजयी हों।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्व दु्रपदश्व महारथः।। 4।।
धृष्टकेतुश्वेकितानः काशिराजश्व वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्व शैब्यश्व नरपुंगवः।। 5।।
युधामन्युश्व विक्रान्त उत्तमौजाश्व वीर्यवान।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्व सर्व एव महारथाः।। 6।।
प्रश्न-‘अत्र’ पद का यहाँ किस अर्थ में प्रयोग हुआ है?
उत्तर-‘अत्र’ पद यहाँ पाण्डव-सेना के अर्थ में प्रयुक्त है।
प्रश्न-‘युधि’ पद का अन्वय ‘अत्र’ के साथ न करके ‘भीमार्जुनसमाः के साथ क्यों किया गया?
उत्तर-‘युधि’ पद यहाँ ‘अत्र’ का विशेष्य नहीं बन सकता, क्योंकि उस समय युद्ध आरम्भ ही नहीं हुआ था। इसके अतिरिक्त उसके पहले पाण्डव-सेना का वर्णन होने के कारण ‘अत्र’ पद स्वभाव से ही उसका वाचक हो जाता है, इसीलिए उसके साथ किसी विशेष्य की आवश्यकता भी नहीं है। ‘भीमार्जुनसमाः’ के साथ ‘युधि’ पद का अन्वय करके यह भाव दिखलाया है कि यहाँ जिन महारथियों के नाम लिये गये हैं, वे पराक्रम और युद्धविद्या में भीम और अर्जुन की ही समता रखते हैं।
प्रश्न-युयुधान विराट, दु्रपद, धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज, शैव्य, युधामन्यु और उत्तमौजा कौन थे?
उत्तर-अर्जुन के शिष्य सात्यकि का ही दूसरा नाम युयुधान था ये यादववंशीय राजा शिनि के पुत्र थे (महा0 द्रोण0 144। 17-19)। ये भगवान् श्रीकृष्ण के परम अनुगत थे और बड़े ही बलवान एवं अतिरथी थे। ये महाभारत युद्ध में न मरकर यादवों के पारस्परिक युद्ध में मारे गये थे। युयुधाननामक एक दूसरे यादव वंशीय योद्धा भी थे ।
विराट मत्स्यदेश के धार्मिक राजा थे। पाण्डवों ने एक वर्ष इन्हीं के यहाँ अज्ञातवास किया था। इनकी पुत्री उत्तर का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के साथ हुआ था। ये महाभारत युद्ध में उत्तर, श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रों सहित मारे गये।
द्रुपद पाश्चाल देश के राजा पृषत् के पुत्र थे। राजा पृषत् और भरद्वाज मुनि में परस्पर मैत्री थी, दु्रपद भी बालक अवस्था में भरद्वाज मुनि के आश्रम में रहे थे। इससे भरद्वाज के पुत्र द्रोण के साथ इनकी भी मित्रता हो गयी थी। पृषत् के परलोक गमन के पश्चात दु्रपद राजा हुए, तब एक दिन द्रोण ने इनके पास जाकर इन्हें अपना मित्र कहा। दु्रपद को यह बात बुरी लगी। तब द्रोण मन में क्षुब्ध होकर चले आये। द्रोण ने कौरव और पाण्डवों को अस्त्र विद्या की शिक्षा देकर गुरु दक्षिणा में अर्जुन के द्वारा दु्रपद को पराजित कराकर अपने अपमान का बदला चुकाया और उनका आधा राज्य ले लिया। द्रुपद ने ऊपर से द्रोण प्रीति कर ली, परन्तु उनके मन में क्षोभ बना रहा। उन्होंने द्रोण को मारने वाले पुत्र के लिये याज और उपयाज नामक ऋषियों के द्वारा यज्ञ करवाया। उसी यज्ञ की वेदी से धृराष्टद्युम्न तथा कृष्णा का प्राकव्य हुआ। यही कृष्णा द्रौपदी या याज्ञसेनी नाम से प्रसिद्ध हुई और स्वयंवर में जीतकर पाण्डवों ने उसके साथ विवाह किया। राजा दु्रपद बड़े ही शूरवीर और महारथी थे। महाभारत युद्ध में द्रोण के हाथ से इनकी मृत्यु हुई।
धृष्टकेतु चेदिदेश के राजा शिशुपाल के पुत्र थे। ये महाभारत युद्ध में द्रोण के हाथ से मारे गये थे।
चेकितान वृष्टिवंशीय यादव महारथी योद्धा और बड़े शूरवीर थे। पाण्डवों की सात अक्षौहिणी सेना के सात सेनापतियों में से एक थे। ये महाभारत युद्ध में दुर्योधन के हाथ से मारे गये।
काशिराज काशी के राजा थे, ये बड़े ही वीर और महारथी थे। इनके नाम का ठीक पता नहीं लगता। काशिराज का नाम सेना बिन्दु और क्रोधहन्ता बतलाया गया है। कर्णपर्व अध्याय छः में जहाँ काशिराज के मारे जाने का वर्णन है, वहाँ उनका नाम ‘अभिभू’ बतलाया गया है।
पुरुजित् और कुन्तिभोज दोनों कुन्ती के भाई थे। और युधिष्ठिर आदि के मामा होते थे। ये दोनों ही महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये।
शैव्य धर्मराज युधिष्ठिर के ससुर थे, इनकी कन्या देविका से युधिष्ठिर का विवाह हुआ था। ये मनुष्यों में श्रेष्ठ, बड़े बलवान और वीर योद्धा थे। इसलिये इन्हें ‘नरपुंडव’ कहा गया है।
युधामन्यु और उत्तमौजा-दोनों भाई पाश्चाल देशीय राजकुमार थे। पहले अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा करने पर इन्हें नियुक्त किया गया था। ये देानों ही बड़े भारी पराक्रमी और बल सम्पन्न वीर थे, इसीलिए इनके साथ क्रमशः ‘विक्रान्त’ और ‘वीर्यवान’-दो विशेषण जोड़े गये हैं। ये दोनों रात को सोते समय अश्वत्थामा के हाथ से मारे गये।
प्रश्न-अभिमन्यु कौन थे?
उत्तर-अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण की बहिन सुभद्रा से विवाह किया था। उन्हीं के गर्भ से अभिमन्यु उत्पन्न हुए थे। मत्स्य देश के राजा विराट की कन्या उत्तरा से इनका विवाह हुआ था। इन्होंने अपने पिता अर्जुन से और प्रद्युम्न से अस्त्र शिक्षा प्राप्त की थी। ये असाधारण वीर थे। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य ने एक दिन चक्रव्यूह-की ऐसी रचना की कि पाण्डव पक्ष के युधिष्ठिर , भीम, नकुल, सहदेव, विराट, दु्रपद, धृष्टद्युम्न आदि कोई भी वीर उसमें प्रवेश नहीं कर सके; जयद्रथ ने सबको प्ररास्त कर दिया। अर्जुन दूसरी ओर युद्ध में लगे थे। उस दिन वीर युवक अभिमन्यु अकेले ही उस व्यूह को भेदकर उसमें घुस गये और असंख्य वीरों का संहार करके अपने असाधारण शौर्य का परिचय दिया। द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा,
बृहदूल और कृतवर्मा-इन छः महारथियों ने मिलकर अन्यायपूर्वक इन्हें घेर
लिया; उस अवस्था में भी इन्होंने
अकेले ही बहुत से वीरों का संहार किया। अन्त में दुःशासन के लड़के ने इनके सिर पर गदा का बड़े जोर से प्रहार किया, जिससे इनकी मृत्यु हो गयी।
राजा परीक्षित इन्हीं के पुत्र थे।
-क्रमशः (हिफी)