
(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त हैं हनुमान। इनको वर्तमान मंे भी उसी तरह सम्पूजित किया जाता है क्योंकि पौराणिक आख्यानों के अनुसार हनुमान जी, अश्वत्थामा, राजा बलि, परशुराम, विभीषण, वेद व्यास और कृपाचार्य को अजर-अमर होने का वरदान मिला था। त्रेता युग मंे जब राक्षस राज रावण माता सीता का हरण कर लंका ले गया तो उनकी खोज मंे वानरराज सुग्रीव ने अपनी विशाल वानर सेना को चारों तरफ भेजा था। हनुमान जी, अंगद और जाम्बवंत समेत एक दल दक्षिण दिशा मंे खोज के लिए भेजा गया था। इस दल को जटायू के बड़े भाई सम्पाति ने बताया कि सीता जी को रावण ने लंका मंे रखा हुआ है लेकिन सौ योजन समुद्र पार कर जो लंका जा सकता है, वही सीता को खोज पाएगा। अंगद आदि सूर्य वीरों ने असमर्थता जताई तो जाम्बवंत ने हनुमान जी को उनके बल-बुद्धि की याद दिलाई। हनुमान जी लंका पहुंचे माता सीता ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को अजर-अमर होने का वरदान दिया था।
हनुमान जी के आशीर्वचन से ही गोस्वामी तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम का गुणगान रामचरित मानस और अन्य कृतियों मंे किया है। हनुमान चालीसा मंे एक-एक चैपाई और दोहा, महामंत्र के समान है। इसकी विशद् व्याख्या स्वामी जी श्री प्रेम भिक्षु जी महाराज ने की है। इसका सभी लोग पाठन कर सकें, यही हमारा प्रयास है। हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा (हिफी) इस अवसर पर इसका क्रमबद्ध प्रकाशन कर रहा है। -प्रधान सम्पादक
कुमति को दूर कर सुमति देते हैं हनुमान
हनुमान जी ने सुग्रीव की कुमति का निवारण कर उसे सुमति दी जिससे सुग्रीव ने सीता माता की खोज के लिए वानरों की सेना को बुलाया। वज्र के समान अंग वाले पवन पुत्र सामान्य रूप से कानों में कुंडल धारण करते हैं। उनके बाल घुंघुराले हैं। मूंज का जनेऊ पहने उनका शरीर सोने की तरह दीप्त रहता है।
चक्रवर्ती राजा रामचंद्र के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े के बहाने से भगवान् शिवजी से हनुमानजी का युद्ध हो गया। शिवजी ने सुरथ की रक्षा की प्रतिज्ञा की थी। शिवजी के गण, मुख्य सेनापति वीरभद्र ने भरत के पुत्र पुष्कल का सिर काट डाला और सेना को विध्वंस कर दिया। उस समय ‘विक्रम’ रूप दिखाने का अवसर हनुमानजी को मिला था। रुद्र सेना का विध्वंस करना हनुमानजी ने आरंभ कर दिया। जब सब सेना तहस-नहस हो गई तब शिवजी को भी पूँछ में लपेट लिया और लगे घुमाने। शिवजी ने कहा-‘‘अरे हनुमान! क्या कर रहे हो?’’ हनुमानजी ने कहा-‘‘आप सुरथ के रक्षक हैं और मुझे रामजी की सेना का रक्षक बनाया गया है।’’ शिवजी ने कहा-‘‘तो अच्छा भाई क्या चाहते हो? मुझे छोड़ों। यदि इसी तरह घुमाते रहे तो तीनों लोक नष्ट हो जायेंगे।’’ हनुमान जी ने कहा-‘‘यदि आप मेरे बन्धन से छूटना चाहते हो तो जब तक मैं द्रोणगिरि से संजीवनी लाकर सबको जीवित न कर लूं तब तक युद्ध न करना।’’ शिवजी ने ‘‘एवमस्तु’’ कह दिया। हनुमानजी ने संजीवनी लाकर रामजी की सेना को जीवित कर दिया। यह ‘‘विक्रम’’ का साधारण भाव है।
‘‘बजरंगी’’-जिसका शरीर वज्र का बना हुआ हो। जन्म लेने के बाद दूसरे दिन सूर्य को पकड़ने के लिए दौड़े। साठ हजार मदार नाम के राक्षसों और राहु की सेना को मार दिया। राहु भागकर इन्द्र के पास गया और कहा-‘‘आज मेरा अमृत पीने का समय था। (अर्थात ग्रहण का दिन था) एक वानर ने मेरी सेना और राक्षसों का संहार कर दिया है।’’ बल के गर्व से गर्वित होकर इन्द्र ने आकर अपना वज्र बाल-हनुमान पर चला दिया। वह उसकी हनु (ठुड्डी) पर लगा। हनु थोड़ी-सी टेड़ी हो गई परन्तु वह वज्र कुंठित हो गया। ऐसे वज्र का है हनुमानजी का शरीर। ऐसे अनन्त कार्य हनुमानजी ने किये हैं।
‘‘कुमति’’-सुग्रीव राज्य प्राप्त कर स्त्री से आसक्त होकर भूल गया कि रामजी से कोई वायदा किया था। तब हनुमानजी ने सुग्रीव से कहा-‘‘तुम कृतघ्न हो। उपकार करने वालों का कार्य तुमने भुला दिया है। शीघ्र ही वानरों को बुलाओ और रामजी की शरण में जाओ।’’ सुग्रीव डर गया। उसने कहा-‘‘भाई! यह काम तुम ही जल्दी करो। मैं अबूझा हूँ, मेरी रक्षा करो।’’ तब हनुमानजी ने वानरों को दसो दिशाओं से वानरी सेना को बुलाने के लिए भेज दिया। यह ‘कुमति’ का रूप है। हनुमानजी ने सुग्रीव की कुमति को दूर किया।
‘‘सुमति‘‘-लक्ष्मण सुग्रीव के पास पहुँचे। महान् क्रोधित थे, कहने लगे-‘‘तू नीच और कृतघ्न है। जाति स्वभाव के कारण तू वायदा भूल गया है। क्या तू भी बाली वाले बाण की अपेक्षा करता है?’’ सुग्रीव भयभीत हो गया। हनुमानजी के हृदय में सुग्रीव का पक्ष लेते हुए हनुमानजी ने कहा-‘‘हे लक्ष्मण! क्या तुम ही रामजी के एकमात्र प्रियभक्त हो? दूसरों को मूर्ख समझ रखा है क्या? देखो, आसमान में चारों तरफ टिड्डियों की तरह वानर छाये हुए हैं। उन्हें बुलाने भेजा था। और वानर भी आ रहे हैं। तुमने कैसे कह दिया कि सुग्रीव वायदा भूल गया है? वह रामजी के कार्य के लिए सदा ही जागृत रहता है।’’ लक्ष्मण ने कहा-‘‘हमने प्यारवश धमकी दी थी। सुग्रीव तो रामजी का परम सखा है। रामजी उदास हैं। हम सबको उनके पास शीघ्र चलना चाहिये।’’ यह है ‘सुमति’ के संगी। सुमति देनी और फिर संग करने योग्य बनाना।।
कंचन वरन विराज सुवेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ वज्र औ! ध्वजा विराजै।
काँधे मँूज जनेऊ साजै।।
अर्थ-यहाँ हनुमानजी के ध्यान का वर्णन किया है। उपासना के अनुसार पृथक्-पृथक् ध्यान का निर्देश दिया गया है। जिसके शरीर की कान्ति सुमेरू पर्वत के समान तेजस्वी है, अपने भक्तों के लिए जिसने सुन्दर रूप धारण कर रखा है, जिसके कानों में कुंडल हैं, घुँघराले बाल हैं, जिसके हाथ में विजय-सूचक ध्वजा और वज्र का चिन्ह है जो अपने भक्तों की सदा रक्षा करते हुए विजय कराते हैं और जिन्होंने काँधे पर मूँज का जनेऊ
धारण किया हुआ है।
भावार्थ-यह हनुमानजी का ‘‘सौम्यरूप’’ है रामजी ने नैमिषारण्य में भूमि का दान दिया था। कलियुग के आदि में दुष्ट बुद्धि राजा ने वह भूमि छीन ली। सब ब्राह्मण, जो करीबन सत्तर थे, अपने परिवारों को छोड़कर, हनुमानजी की खोज में रामेश्वर तक पहुँच गये। वहाँ वे निराहार रहने लगे। परीक्षा में उत्तीर्ण देखकर हनुमानजी ने ब्राह्मणों से कहा- तुम्हारी भूमि तुम्हें वापिस ले देंगे। सब ब्राह्मणों ने कहा-‘‘हम आपके दर्शन के लिए आये हैं। कृपया हमें वह सुन्दर ‘सौम्यरूप’ दिखाइये जो आपने जानकी जी को दिखाया था।’’ भक्तवत्सल ही तो ठहरे। कहने लगे-‘‘कलियुग में वैसा रूप दुर्लभ है, फिर भी मेरी खोज में आये हो तो मैं वैसा ही रूप दिखाऊँगा।’’ गीता में कहा है-‘‘दिव्यं ददामि ते चक्षु।’’ इसी प्रकार हनुमानजी ने ब्राह्मणों को दिव्य-नेत्र दिये और अपने महान् सुन्दर स्वरूप का दर्शन कराया। यह तुलसी के हनुमान हैं।। (हिफी)-क्रमशः
(साभार-स्वामी जी श्री प्रेम भिक्षु महाराज)