
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भरत जी को समाचार बताकर हनुमान जी श्रीराम के पास चले गये तो भरत जी हर्षित होकर अयोध्या आए और गुरु वशिष्ठ को समाचार सुनाया। इसके बाद राजमहल में यह खबर दी गयी और पूरी अयोध्या को पता चल गया कि प्रभु श्रीराम आ रहे हंै। सभी लोग खुशी से दौड़ पड़े। नगर की स्त्रियां प्रभु की आरती उतारने की तैयारी कर रही हैं। अयोध्या नगरी भी प्रभु श्रीराम का आगमन जानकर शोभा की खान बन गयी। स्त्रियां छतों पर चढ़कर विमान को निहार रही हैं। उधर प्रभु श्रीराम वानरों-रीछों को अयोध्या नगरी दिखा रहे हैं। प्रभु ने जब देखा कि नगरवासी भागते हुए आ रहे हैं तो पुष्पक विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा दी। यही प्रसंग यहां बताया गया है। अभी तो भरत जी हर्षित होकर अयोध्या आए हैं। ध्यान रहे कि श्रीराम के वनवास की अवधि भर भरत जी अयोध्या के निकट नंदिग्राम मंे तपस्वियों की तरह रह रहे थे।
हरषि भरत कोसलपुर आए, समाचार सब गुरहि सुनाए।
पुनि मंदिर महं बात जनाई, आवत नगर कुसल रघुराई।
सुनत सकल जननीं उठि धाईं, कहि प्रभु कुसल भरत समुझाई।
समाचार पुरबासिन्ह पाए, नर अरु नारि हरषि सब धाए।
दधि दूर्बा रोचन फल फूला, नव तुलसीदल मंगल मूला।
भरि-भरि हेम थार भामिनी, गावत चलिं सिंधुर गामिनी।
जे जैसेहिं तैसेहिं उठि धावहिं, बाल वृद्ध कहं संग न लावहिं।
एक एकन्ह कहं बूझहिं भाई, तुम्ह देखे दयाल रघुराई।
अवधपुरी प्रभु आवत जानी, भई सकल सोभा कै खानी।
बहइ सुहावन त्रिविध समीरा, भइ सरजू अति निर्मल नीरा।
हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर वृंद समेत।
चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपा निकेत।
बहु तक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन विमान।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान।
राका ससि रघुपतिपुर सिंधु देखि हरषान।
बढ्यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान।
भरत जी हनुमान जी से संदेश पाकर हर्षित होते हुए अयोध्या आए और उन्होंने गुरु वशिष्ठ को सबसे पहले यह समाचार सुनाया फिर राजमहल में खबर दी कि श्रीराम जी कुशलपूर्वक नगर को आ रहे हैं। खबर पाकर सब माताएं उठकर दौड़ पड़ीं। भरत जी ने प्रभु की कुशल कहकर सभी को समझाया कि अभी प्रभु यहां तक नहीं पहुंचे हैं और विमान से आ रहे हैं। नगर निवासियों ने जब यह समाचार पाया तो स्त्री-पुरुष सभी हर्षित होकर दौड़े। श्रीराम जी के स्वागत के लिए दही, दूब, गोरोचन, फल-फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएं सोने के थाल में सजाकर, हथिनी की सी चालवाली सौभाग्यवती स्त्रियां मंगल गीत गाते हुए चलीं। अयोध्या में जो जैसे हैं, उसी हालत में उठकर दौड़ पड़ते हैं। देर होने के भय से बच्चों और बूढ़ों को कोई साथ नहीं लेता। सभी एक-दूसरे से पूछते हैं कि तुमने क्या दयालु रघुनाथ जी को देखा है? प्रभु को आते जानकर अवधपुरी सम्पूर्ण शोभा की खान हो गयी। तीनों गुण से युक्त (शीतल-मंद-सुगंध) वायु चलने लगी। सरयू नदी का जल भी पूरी तरह से निर्मल हो गया। गुरू वशिष्ठ जी, कुटुम्बी, छोटे भाई शत्रुघ्न तथा ब्राह्मणों के समूह के साथ हर्षित होकर भरत जी अत्यंत प्रेमपूर्ण मन से कृपा धाम श्रीराम के सामने अर्थात उनकी अगवानी को चल पड़े। बहुत सी स्त्रियां अटारियों (छत) पर चढ़ीं आकाश में विमान देख रही हैं और उसे देखकर हर्षित होकर मीठे स्वर से मंगलगीत गा रही हैं। श्री रघुनाथ जी पूर्णिमा के चन्द्रमा हैं और अवधपुर समुद्र है जो उस पूर्ण चन्द्र को देखकर हर्षित हो रहा है और शोर करता हुआ बढ़ रहा है। इधर-उधर दौड़ती हुई स्त्रियां उस मिलन समुद्र में तरंगों के समान दिख रही हैं।
इहां भानुकुल कमल दिवाकर, कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।
सुनु कपीस अंगद लंकेसा, पावन पुरी रुचिर यह देसा।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना, बेद पुरान बिदित जगु जाना।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ, यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि, उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।
जा मज्जन ते विनहिं प्रयासा, मम समीप नर पावहिं बासा।
अति प्रिय मोहि इहां के बासी, मम धामदा पुरी सुख रासी।
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी, धन्य अवध जो राम बखानी।
आवत देखि लोग सब कृपा सिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि विमान।
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहिं तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।
उधर अयोध्या मंे लोग बेचैनी से प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो इधर आकाश में पुष्पक विमान से सूर्यवंश के कमल को खिलाने वाले सूर्य श्रीराम वानरों को अयोध्या नगर दिखा रहे हैं। प्रभु श्रीराम कहते हैं कि कपिराज सुग्रीव, अंगद और लंकापति विभीषण सुनो, यह पुरी पवित्र है और यह देश सुंदर है। यद्यपि सभी ने बैकुण्ठ की बड़ाई की है यह वेद-पुराणों में प्रसिद्ध है और सारा संसार जानता है लेकिन अयोध्या के समान मुझे वह (बैकुंठ) भी प्रिय नहीं है। प्रभु ने कहा यह भेद कोई-कोई अर्थात बहुत कम लोग जानते हैं। यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है। इसके उत्तर दिशा में जीवों को पवित्र करने वाली सरयू नदी बहती है जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना ही परिश्रम के मेरे समीप निवास अर्थात सामीप्य मोक्ष प्राप्त करते हैं। प्रभु ने कहा कि यहां के निवासी मुझे बहुत ही प्रिय हैं। यह पुरी सुख की राशि और मेरे परम धाम को देने वाली है।
प्रभु की वाणी सुनकर सभी वानर हर्षित हुए और कहने लगे कि जिस अवध की स्वयं श्रीराम ने बड़ाई की वह अवश्य ही धन्य है। इस प्रकार बातें करते हुए कृपा सागर प्रभु श्रीराम ने अयोध्या के निवासियों को आते देखा तो उन्होंने विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा दी तब विमान पृथ्वी पर उतरा। विमान से उतरकर प्रभु ने पुष्पक विमान से कहा कि तुम अब कुबेर के पास जाओ। श्रीराम जी की प्रेरणा से पुष्पक विमान चला। उसे अपने स्वामी के पास जाने का हर्ष है लेकिन प्रभु श्रीरामचन्द्र जी से अलग होने का अत्यंत दुख भी है।
आए भरत संग सब लोगा, कृस तन श्री रघुबीर वियोगा।
वामदेव वशिष्ठ मुनि नायक, देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।
धाइ परे गुर चरन सरोरुह, अनुज सहित अति पुलक तनोरुह।
भेंटि कुसल पूछी मुनिराया, हमरे कुसल तुम्हारिहिं दाया।
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा, धर्म धुरंधर रघुकुल नाथा।
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज, नमत जिन्हहिं सुर मुनि संकर अज।
प्रभु के पुष्पक विमान से उतरते ही भरत जी के साथ सभी लोग वहां आ गये। सभी प्रभु के वियोग में शरीर से दुर्बल हो गये हैं। प्रभु श्रीराम ने जैसे ही मुनिनायक वामदेव और वशिष्ठ जी को देखा तो जमीन पर धनुष और वाण रखकर दौड़ते हुए गुरू के चरण कमलों को स्पर्श किया। उनके रोम-रोम अत्यंत पुलकित हो रहे हैं। मुनिराज वशिष्ठ जी ने उन्हें उठाकर गले लगाया और कुशल पूछी। प्रभु श्रीराम ने कहा कि आपकी ही दया में मेरी कुशल है। धर्म की धुरी धारण करने वाले रघुकुल के स्वामी श्रीराम जी ने सब ब्राह्मणों से मिलकर उन्हें मस्तक नवाया।
इसके बाद भरत जी ने प्रभु के वे चरण कमल पकड़ लिये जिन्हें देवता, मुनि, शंकर जी और ब्रह्मा जी भी नमस्कार करते हैं। -क्रमशः (हिफी)