
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
प्रभु श्रीराम अयोध्या में राज कर रहे हैं। सीता जी उनकी सेवा करती हैं। भरत समेत सभी भाई सेवा में रत हैं। प्रभु राम भी अपने भाइयों से बहुत प्रेम करते हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार की नीतियां सिखाते हैं। इस प्रकार बहुत समय व्यतीत हो गया। सीता जी ने दो सुन्दर पुत्रों लव और कुश का जन्म दिया। सभी भाइयों के भी दो-दो पुत्र हैं श्रीराम की कथा में सीता जी के निष्कासन एवं उनके वाल्मीकि के आश्रम में रहने की कथा भी रामायण में दी गयी है। इस प्रसंग को गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस में स्थान देने की जरूरत नहीं समझी। उन्होंने रामराज्य में किसी प्रकार की किसी को शिकायत न होने की बात कहकर सीता जी पर आक्षेप लगाने वाले धोबी की कथा को प्रसंग हीन बना दिया है। सीता जी के बारे में उन्होंने भगवान शंकर के मुख से कहलाया है कि सीता जी सदैव अनिन्दित हैं- जगदंबा संततमनिदिंता। श्रीराम के राज्य का वर्णन करते हुए गोस्वामी जी ने ज्ञान और वैराग्य के प्रसंग बताए हैं। अभी तो शंकर जी पार्वती जी को सीता जी के बारे में बता रहे हैं-
जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ।
राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ।
सेवहिं सानुकूल सब भाई, रामचरन रति अति अधिकाई।
प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं, कबहुं कृपाल हमहि कछु कहहीं।
राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती, नाना भांति सिखावहिं नीती।
हरषित रहहिं नगर के लोगा, करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा।
अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं, श्री रघुबीर चरन रति चहहीं।
दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए, लव कुस वेद पुरानन गाए।
दोउ बिजई विनई गुन मंदिर, हरि प्रतिविंब मनहुँ अति सुंदर।
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे, भए रूप गुनसील घनेरे।
ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।
सोइ सच्चिदानंद धन कर नर चरित उदार।
शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं कि जिन सीता जी की कृपा कटाक्ष देवता तक चाहते हैं, लेकिन वे उनकी ओर देखती तक नहीं, वे ही लक्ष्मी जी स्वरूप जानकी जी अपने महिमामय स्वरूप को छोड़कर श्रीरामचन्द्र जी के चरण कमलों में प्रीति करती हैं। सभी भाई अनुकूल रहकर उनकी सेवा करते हैं। श्रीरामजी के चरणों में उनकी अत्यंत अधिक प्रीति है। वे सदा प्रभु का मुखारबिन्द ही देखते रहते हैं कि कब कृपालु श्रीराम जी उनसे भी कुछ सेवा करने को कहें। श्री रामचन्द्र जी भी भाइयों पर प्रेम करते हैं और उन्हें नाना प्रकार की नीतियां सिखलाते हैं। नगर के लोग हर्षित रहते हैं और सब प्रकार के देव दुर्लभ भोग भोगते है। वे दिन रात ब्रह्मा जी से मनाते रहते हैं कि श्री रघुवीर के चरणों में उनकी प्रीति बनी रहे। सीता जी के लव और कुश नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनका वेद-पुराणों ने वर्णन किया है। वे दोनों विजयी (विख्यात योद्धा) नम्र और गुणों के धाम हैं और अत्यंत सुंदर हैं, मानों श्री हरि के प्रतिविम्ब (परछाहीं) हांे। दो-दो पुत्र सभी भाइयों के हुए, जो बड़े ही सुन्दर, गुणवान और सुशील थे। शंकर जी कहते हैं कि हे पार्वती जो ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों से परे है और अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों से परे हैं, वहीं सच्चिदानंद धन भगवान श्रेष्ठ लीला कर रहे हैं।
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन, बैठहिं सभां संग द्विज सज्जन।
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं, सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।
अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं, देखि सकल जननीं सुख भरहीं।
भरत सत्रुघ्न दोनउ भाई, सहित पवनसुत उपवन जाई।
बूझहिं बैठि राम गुनगाहा, कह हनुमान सुमति अवगाहा।
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं, बहुरि बहुरि करि विनय कहावहिं।
सब कें गृह गृह होहिं पुराना, राम चरित पावन विधि नाना।
नर अरु नारि रामगुन गानहिं, करहिं दिवस निसि जात न जानहिं।
अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज।
सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम विराज।
प्रातःकाल सरयू में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ प्रभु श्रीराम सभा में बैठते हैं। वशिष्ठ जी वेद और पुराणों की कथाएं वर्णन करते हैं और श्रीराम जी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं। वे भाइयों के साथ मिलकर भोजन करते हैं। उन्हें देखकर सब माताएं आनन्द से भर जाती हैं। भरत जी और शत्रुघ्न जी दोनों भाई हनुमान जी के साथ उपवन में जाकर, वहां बैठते हैं और श्रीराम जी के गुणों की कथाएं पूछते हैं और हनुमान जी अपनी सुंदर बुद्धि से उन गुणों में गोता लगाकर उनका वर्णन करते हैं। श्री रामचन्द्र जी के निर्मल गुणों को सुनकर दोनों भाई अत्यंत सुख पाते हैं और विनय करके बार-बार कहलवाते हैं। अयोध्या राज्य में सभी के यहां घरों में पुराणों और अनेक प्रकार के पवित्र राम चरित्रों की कथा होती है। पुरुष और स्त्री सभी श्री रामचन्द्र का गुणगान करते हैं और इस क्रम में दिन-रात कैसे बीत जाते हैं, इसका पता ही नहीं चल पाता। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जहां भगवान श्री रामचन्द्र जी स्वयं राजा होकर विराजमान हैं, उस अवधपुरी के
निवासियों के सुख-सम्पत्ति के समुदाय का वर्णन हजारों शेषनाग जी भी नहीं कर सकते।
नारदादि सनकादि मुनीसा, दरसन लागि कोसलाधीसा।
दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं, देखि नगरु बिराग बिसरावहिं।
जात रूप मनि रचित अटारीं, नाना रंग रुचिर गच ढारीं।
पुर चहुं पास कोट अति सुंदर, रचे कंगूरा रंग रंग बर।
नव ग्रह निकर अनीक बनाई, जनु घेरी अमरावति आई।
महि बहु रंग रचित गच कांचा, जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा।
धवल धाम ऊपर नभ चुंवत, कलस मनहुं रबि ससि दुति निंदत।
बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं, गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं।
नारद और सनक आदि मुनिवर सभी कोशलराज श्री रामजी के दर्शन के लिए प्रतिदिन अयोध्या आते हैं और उस दिव्य नगर को देखकर वैराग्य भूल जाते हैं। दिव्य स्वर्ण और रत्नों से बनी हुई अटारियां हैं, उनमें मणियों की अनेक रंगों की ढली हुई फर्श है। नगर के चारों ओर अत्यंत सुंदर परकोटा बना हुआ है, जिस पर सुंदर रंग-बिरंगे कंगूरे बने हैं, मानो नवग्रहों ने बड़ी भारी सेना बनाकर अमरावती को आकर घेर लिया है। सड़कों पर अनेक रंगों के कांचों (रत्नों) की गच (फर्श) ढाली गयी है, जिसे देखकर श्रेष्ठ मुनियों के मन भी नाच उठते हैं उज्ज्वल महल आकाश को चूम रहे हैं। महलों पर लगे कलश अपने दिव्य प्रकाश से मानों सूर्य
और चन्द्रमा का प्रकाश भी फीका
कर रहे हैं। महलों में बहुत सी
मणियों के बने झरोखे सुशोभित हैं और घर-घर में मणियों के दीपक शोभा पा रहे हैं। -क्रमशः (हिफी)