अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

पुर शोभा कछु बरनि न जाई

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

परमपिता परमेश्वर श्रीराम ने जिस नगर में जन्म लिया है, उसके गौरव का बखान कौन कर सकता है। प्रभु श्रीराम ने नर लीला करने के लिए जिस दिन अवतार लिया, उसी दिन से उसकी शोभा बढ़ गयी थी, फिर श्रीराम और उनके सभी भाइयों का विवाह हुआ, तब अयोध्या को खूब सजाया गया था। बाद में जब श्रीराम वनवास को गये, तब अयोध्या में उदासी छा गयी थी लेकिन अब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी वनवास से लौट आए हैं। श्रीराम अयोध्या के राजा बन गये तब अयोध्या की शोभा कई गुणा बढ़ गयी है। गोस्वामी तुलसीदास ने अयोध्या की शोभा का यहां बखान किया है।
मनिदीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं विद्रुम रचीं।
मनि खंभ भीति बिरंचि बिरची कनक मनि मरकत खची।
सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे।
प्रति द्वार द्वार कपाट पुरद बनाइ बहु बज्रन्हि खचे।
चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ।
रामचरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ।
अयोध्या के सभी घरों में मणियों के दीपक शोभा दे रहे हैं। मूंगों की बनी हुई सोने की दीवारें ऐसी सुंदर हैं मानो ब्रह्माजी ने खासतौर पर बनाई हैं। महल सुन्दर, मनोहर और विशाल हैं। उनमें सुन्दर स्फटिक के आंगन बने हैं। प्रत्येक द्वार पर बहुत से खरादे (गढ़े हुए) हीरों से जड़े सोने के किंवाड़ हैं। घर-घर में सुंदर चित्र शालाएं हैं, जिनमें श्रीराम जी के चरित्र बड़ी सुन्दरता के साथ संवार कर अंकित किये गये हैं, जिन्हें मुनि देखते हैं तो वे उनके भी चित्त को चुरा लेते हैं।
सुमन बाटिका सबहिं लगाईं, विविध भांति करि जतन बनाईं।
लता ललित बहुजाति सुहाईं, फूलहिं सदा बसंत कि नाईं।
गुंजत मधुकर मुखर मनोहर, मारुत त्रिविध सदा बह सुंदर।
नाना खग बालकन्हि जिआए, बोलत मधुर उड़ात सुहाए।
मोर हंस सारस पारावत, भवननि पर सोभा अति पावत।
जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं, बहु विधि कूजहिं नृत्य कराहीं।
सुक सारिका पढ़ावहिं बालक, कहहु राम रघुपति जन पालक।
राज दुआर सकल विधि चारू, बीथीं चैहट रुचिर बजारू।
अयोध्या में सभी लोगों ने भिन्न-भिन्न प्रकार की फूलों की वाटिकाएं यत्न करके लगा रखी हैं, जिनमें बहुत जातियों की सुन्दर और ललित लताएं सदा बसंत की तरह फूलती रहती हैं। भौंरेे मनोहर स्वर से गुंजार करते हैं। सदैव तीनों प्रकार की वायु बहती रहती है। बालकों ने बहुत से पक्षी पाल रखे हैं जो मधुर बोली बोलते हैं और उड़ने में बहुत सुंदर लगते हैं। मोर, हंस, सारस और कबूतर घरों के ऊपर बड़ी ही शोभा पा रहे हैं वे पक्षी मणियों की दीवारों और छतों में जहां तहां अपनी परछाईं, देखकर बहुत प्रकार से मधुर वाणी बोलते और नृत्यु करते हैं। बालक तोता-मैना को पढ़ाते हैं कि कहो राम, रघुपति जनपालक। राजद्वार सब प्रकार से सुन्दर है। गलियां, चैराहे और बाजार सभी अत्यधिक सुंदर हैं।
बाजार रुचिर न बनइ बरनत वस्तु बिनु गथ पाइए।
जहँ भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए।
बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुं कुबेर तें।
सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर सिसु जरठ जे।
उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गंभीर।
बांधे घाट मनोहर स्वल्प पंक नहिं तीर।
दूरि फराक रुचिर सो घाटा, जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा।
पनिघट परम मनोहर नाना, जहां न पुरुष करहिं अस्नाना।
राजघाट सब विधि सुंदर बर, मज्जहिं तहां बरन चारिउ नर।
तीर तीर देवन्ह के मंदिर, चहुं दिसि तिन्ह के उपवन सुंदर।
कहुं कहुं सरिता तीर उदासी, बसहिं ग्यानरत मुनि संन्यासी।
तीर तीर तुलसिका सुहाई, वृन्द वृन्द बहुं मुनिन्ह लगाई
पुर सोभा कछु बरनि न जाई, बाहेर नगर परम रुचिराई।
देखत पुरी अखिल अघ भागा, बन उपवन बापिका तड़ागा।
अयोध्या में इतना सुन्दर बाजार है कि जो वर्णन करते नहंी बनता। वहां वस्तुएं बिना ही मूल्य मिलती हैं। जहां स्वयं लक्ष्मीपति राजा हों, वहां की सम्पत्ति का वर्णन कैसे किया जाए। कपड़े का व्यापार करने वाले बजाज, रुपये-पैसे का लेन-देन करने वाले सराफ और वणिक (व्यापारी) बैठे हुए ऐसे जान पड़ते हैं मानों अनेक कुबेर हों। स्त्री-पुरुष, बच्चे और बूढ़े जो भी हैं, वे सभी सुखी, सदाचारी और सुंदर हैं। नगर के उत्तर दिशा में सरयू जी बह रही हैं, जिनका जल निर्मल और गहरा है। मनोहर घाट बंधे हुए हैं, किनारों पर जरा भी कीचड़ नहीं है। अलग कुछ दूरी पर वह सुंदर घाट है जहां घोड़ों और हाथियों के समूह जल पिया करते हैं। पानी भरने के लिए बहुत से जनाने घाट हैं, जो बड़े ही मनोहर हैं। वहां पुरुष स्नान नहीं करते। राजघाट सब प्रकार से सुंदर और श्रेष्ठ हैं जहां चारों वर्णों के पुरुष स्नान करते हैं। सरयू जी के किनारे-किनारे देवताओं के मंदिर हैं, जिनके चारों तरफ सुन्दर उपवन (बगीचे) हैं। नदी के किनारे कहीं-कहीं विरक्त और ज्ञान परायण मुनि और संन्यासी निवास करते हैं। सरयू जी के किनारे-किनारे सुन्दर तुलसी जी के झुंड के झुंड बहुत से पेड़ लगा रखे हैं। नगर की शोभा तो कुछ कहीं ही नहीं जाती, नगर के बाहर भी परम सुंदरता है। श्री अयोध्यापुरी के दर्शन करते ही सम्पूर्ण पाप भाग जाते हैं। वहां वन, उपवन, तालाब और बाबलियां (बापी) सुशोभित हैं।
बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं।
सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं।
बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं।
आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं।
रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ।
अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।
अयोध्या की अनुपम बावलियां, तालाब, मनोहर तथा विशाल कुएं शोभा दे रहे हैं, जिनकी सुन्दर रत्नों से बनी सीढ़ियां और निर्मल जल देखकर देवता और मुनिगण भी मोहित हो जाते हैं। तालाबों में अनेक रंगों के कमल खिल रहे हैं और अनेक पक्षी कूज रहे हैं। भौरें गुंजार कर रहे हैं। परम रमणीय बगीचे जिनमें कोयल आदि सुंदर पक्षियों की बोली मानो राह चलने वालों को बुला लेती है। स्वयं लक्ष्मी पति भगवान जहां राजा हों, उस नगर का कहीं वर्णन किया जा सकता है? अणिमा आदि आठों सिद्धियां और समस्त सुख संपत्तियां उस समय अयोध्या में छायी हुई हैं।
जहँ तहंँ नर रघुपति गुन गावहिं, बैठि परस्पर इहइ सिखावहिं।
भजहु प्रनत प्रति पालक रामहिं, सोभा सील रूप गुन धामहिं।
अयोध्या में लोग जहां तहां श्री रघुनाथ जी के गुण गाते हैं और बैठकर एक-दूसरे को यही सीख देते हैं कि शरणागत का पालन करने वाले श्रीराम जी को भजो। शोभा, शील रूप और गुणों के धाम श्री रघुनाथ जी का भजन करो। -क्रमशः (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button