अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

देवताओं को दिया बचन पूरा करने के लिए प्रभु श्रीराम वन में आ गये। इस बीच रानी कैकेयी को अपयश मिलना था और राजा दशरथ को श्रवण कुमार के माता-पिता का श्राप भोगकर पुत्र वियोग में प्राण त्यागने थे। प्रभु किस तरह से नर लीला कर रहे हैं यह कोई समझ नहीं पा रहा। भरत जी चित्रकूट आए और संतुष्ट होकर अयोध्या वापस चले गये। वहां श्रीराम की पादुका सिंहासन पर रखकर मुनियों का आचरण करके चैदह वर्ष की अवधि व्यतीत कर रहे हैं। अयोध्या काण्ड के बाद तीसरा सोपान अरण्य काण्ड है और अरण्य का अर्थ ही वन होता है। वन में रहकर प्रभु जो पावन चरित्र करेंगे यही इस काण्ड में बताया गया है। अभी तो गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान शंकर और वनगमन करते श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण की वंदना कर रहे हैं-
मूलं धर्म तरोर्विवेक जलधेंः पूर्णोन्दुमानन्ददं।
वैराग्याम्बुज भास्करं ह्याघघन
ध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधर पूग पाटन बिधौ स्वः सम्भवं शंकरं।
वन्दे ब्रह्म कुलं कलंकशमनं श्रीराम भूप प्रियम्।
अर्थात धर्म रूपी वृक्ष के मूल, विवेक रूपी समुद्र को आनंद देने वाले पूर्ण चन्द्र, वैराग्य रूपी कमल को विकसित करने वाले सूर्य, पाप रूपी घोर अंधकार को निश्चय ही मिटाने वाले, तीनों तापों को हरने वाले मोहरूपी बादलों के समूह को छिन्न-भिन्न करने की विधि अर्थात क्रिया में आकाश से उत्पन्न पवन स्वरूप, ब्रह्मा जी के वंशज तथा कलंक नाशक महाराज श्रीरामचन्द्र जी के प्रिय श्री शंकर जी की मैं वंदना करता हूं।
सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरंसुंदरं।
पाणौ बाण शरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।
राजीवायतलोचनं
धृतजटाजूटेन संशोभितं।
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभि रामं भजे।
अर्थात जिनका शरीर जल भरे मेघों के समान सुंदर (श्यामवर्ण) और आनंद धन है जो सुंदर वल्कल पीत वस्त्र
धारण किये हैं जिनके हाथों में वाण और धनुष हैं कमर उत्तम तरकस के भार से सुशोभित है कमल के समान विशाल नेत्र हैं और मस्तक पर जटाजूट धारण किये हैं, उन अत्यंत शोभायमान श्री सीता जी और लक्ष्मण जी सहित मार्ग में चलते हुए आनंद देने वाले श्रीरामचन्द्र जी का मैं भजन कर रहा हूं। -क्रमशः (हिफी)

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