अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

प्रभु श्रीराम के अपने धाम जाने की कथा गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में नहीं बतायी है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रभु श्रीराम सरयू के जल मार्ग से अपने धाम को गये थे। रामचरित मानस में भी इस तरह का संकेत मिलता है। ‘हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई’ अर्थात जो सभी प्रकार की थकावट को दूर कर देते हैं, वे भी थक गये-इससे उनके प्रस्थान का अवसर समझा जाता है। उस समय नारद मुनि आकर स्तुति भी करते हैं और भगवान शंकर पार्वती जी को कथा सुनाते हुए कहते भी है कि ‘गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा, मैं सब कही मोरि मति जथा।’ इसलिए यह माना जा सकता है कि प्रभु श्रीराम अयोध्या से अपने धाम को चले
गये। भगवान शंकर ने श्रीराम के विविध चरित्रों और इस कथा को सुनने का फल बताया। यही प्रसंग यहां प्रस्तुत किया गया है। अभी तो भगवान शंकर हनुमान जी की प्रशंसा कर रहे हैं-
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई, बार बार प्रभु निज मुख गाई।
तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन।
गावन लगे रामकल कीरति सदा नवीन।
मामवलोकय पंकज लोचन, कृपा बिलोकनि सोच विमोचन।
नील तामरस स्याम काम अरि, हृदय कंज मकरंद मधुप हरि।
जातुधान बरूथ बल भंजन, मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन।
भूसुर ससि नव वृंद बलाहक, असरन सरन दीनजन गाहक।
भुज बल विपुल भार महि खंडित, खूर दूषन विराध बध पंडित।
रावनारि सुख रूप भूपबर, जय दसरथ कुल कुमुद
सुधाकर।
सुजस पुरान विदित निगमागम, गावत सुर मुनि संत समागम।
कारुनीक ब्यलीक मद खंडन, सब विधि कुसल कोसला मंडन।
कलिमल मथन नाम ममताहन, तुलसीदास प्रभु पाहि प्रनत जन।
प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम।
सोभा सिंधु हृदयं धरि गए जहां विधि धाम।
भगवान शंकर कहते हैं कि हे पार्वती हनुमान जी की प्रीति की तारीफ तो प्रभु श्रीराम ने अपने मुख से बार-बार की है। शंकर जी कहते हैं कि उसी समय नारद मुनि हाथ में वीणा लिये हुए आये। वे श्रीराम जी की सुंदर और नित्य नवीन रहने वाली कीर्ति गाने लगे। नारद जी कहते हैं कि कृपा पूर्वक देख लेने मात्र से शोक को छुड़ाने वाले हे कमल नयन, मेरी ओर देखिए अर्थात मुझ पर भी कृपा दृष्टि कीजिए। हे हरि, आप नील कमल के समान श्याम वर्ण हैं और कामदेव के शत्रु महादेव जी के हृदय कमल के मकरंद (प्रेमरस) का पान करने वाले भ्रमर हैं आप राक्षसों की सेना के बल को तोड़ने वाले हैं। मुनियों और संतजनों को आनंद देने वाले और पापों का नाश करने वाले हैं। ब्राह्मण रूपी खेती के लिए आप नवीन मेघ स्वरूप हैं और शरणहीनों को शरण देने वाले तथा दीन जनों को अपने आश्रय में ग्रहण करने वाले हैं। अपने बाहुबल से पृथ्वी के बड़े भारी बोझ को नष्ट करने वाले, खर-दूषण और
विराध का वध करने में कुशल, रावण के शत्रु, आनंद स्वरूप, राजाओं में श्रेष्ठ और दशरथ के कुलरूपी कुमुदिनी के चन्द्रमा श्रीराम जी आपकी जय हो। आपका सुंदर यश पुराणों, वेदों और तंत्र आदि शास्त्रों में प्रकट है। देवता, मुनि और संतों के समुदाय उसे गाते हैं। आप करुणा करने वाले और झूठे मद का नाश करने वाले, सब प्रकार से कुशल और अयोध्या के भूषण हैं। आपका नाम कलियुग के पापों को मथ डालने वाला है। हे तुलसीदास के प्रभु, शरणागत की रक्षा कीजिए। इस प्रकार श्रीरामचन्द्र जी के गुण समूहों का प्रेम पूर्वक वर्णन करके मुनि नारद जी शोभा के समुद्र प्रभु को हृदय में धर कर जहां ब्रह्मलोक है, वहां चले गये।
गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा, मैं सब कही मोरि मति जथा।
राम अनंत अनंत गुनानी, जन्म कर्म अनंत नामानी।
जल सीकर महि रज गनि जाहीं, रघुपति चरित न बरनि सिराहीं।
बिमल कथा हरिपद दायनी, भगति होइ सुनि अनपायनी।
उमा कहिउं सब कथा सुहाई, जो भुसुंडि खग पतिहि सुनाई।
कछुक रामगुन कहेउं बखानी, अब का कहौं सो कहहु भवानी।
सुनि प्रभु कथा उमा हरषानी, बोली अति विनीत मृदु बानी।
शिव जी कहते हैं कि हे गिरिजे सुनो मैंने वह उज्ज्वल कथा जैसी मेरी बुद्धि थी, वैसी पूरी कह डाली। श्रीराम जी के चरित्र सौ करोड़ अर्थात अपार हैं। वेद और शारदा भी उनका वर्णन नहीं कर सकते। भगवान श्रीराम अनंत हैं, उनके गुण अनंत हैं जन्म, कर्म और नाम भी अनंत हैं। जल की बूंदें और धूल के कण भले ही गिन लिये जाएं लेकिन श्री रघुनाथ जी के चरित्र वर्णन करने से खत्म नहीं हो सकते। यह पवित्र कथा भगवान के परम पद को देने वाली है। इसको सुनने से अविचल भक्ति प्राप्त होती है। हे उमा, मैंने वह सब सुंदर कथा कही है जो काग भुशुण्डि जी ने
गरुड़ जी को सुनाई थी। मैंने श्रीराम जी के थोड़े से गुण बखान कर
कहे हैं। हे भवानी, बताओ अब और क्या कहूं। श्रीराम जी की मंगल मयी कथा सुनकर पार्वती जी हर्षित हुईं और अत्यंत विनम्र और कोमल वाणी बोलीं-
धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी, सुनेउं राम गुन भव भय हारी।
तुम्हरी कृपा कृपायतन अब कृतकृत्य न मोह।
जानेउं राम प्रताप प्रभु चिदानंद संदोह।
नाथ तवानन ससि स्रवत कथा सुधा रघुबीर।
श्रवन पुटन्हि मन पान करि नहिं अघात मति धीर।
पार्वती जी ने कहा हे त्रिपुरारि मैं धन्य हूं, धन्य-धन्य हूं, जो मैंने जन्म-मृत्यु के भय को हरण करने वाले श्रीराम जी के गुण चरित्र सुने। हे कृपा के धाम, अब आपकी कृपा से मैं कृतकृत्य हो गयी। अब मुझे मोह नहीं रह गया। हे प्रभु, मैं सच्चिदानंद घन प्रभु श्रीराम जी के प्रताप को जान गयी। हे नाथ, आपका मुख रूपी चन्द्रमा, श्री रघुवीर की
कथा रूपी अमृत बरसाता है। हे
मतिधीर, मेरा मन कानों के माध्यम (कर्ण पुटों) से उसे पीकर तृप्त नहीं होता। -क्रमशः (हिफी)

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