अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

सो हरि भगति काग किमि पाई

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

भगवान शंकर ने पार्वती को श्रीराम जी की कथा सुना दी, तब पार्वती जी बहुत खुश हुईं और कहने लगीं कि हे प्रभु श्रीराम की कथा सुनते हुए मन परिपूर्ण ही नहीं हो रहा अर्थात और आगे सुनने की इच्छा हो रही है। पार्वती जी ने कहा कि हे प्रभु आपने हमें बताया कि पक्षी राज गरुड़ को काग भुशुंडि जी ने यह कथा सुनाई थी तो एक सवाल तो यह है कि कागभुशंुडि ने कौए का शरीर कैसे पाया फिर उस शरीर से उन्होंने प्रभु श्रीराम की भक्ति कैसे प्राप्त की और फिर कागभुशुंडि और गरुड़ जी का संवाद कैसे हुआ ये सब वृत्तांत मुझे सुनाओ। भगवान शंकर ने तब विस्तार से पार्वती को उनके प्रश्नों का समाधान बताया। यह प्रसंग काफी बड़ा है इसे आगे बताया जाएगा। अभी तो पार्वती जी भगवान शंकर से अपनी जिज्ञासा कह रही हैं-
रामचरित जे सुनत अघाहीं, रस विसेष जाना तिन्ह नाहीं।
जीवन मुक्त महामुनि जेऊ, हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ।
भव सागर चह पार जो पावा, रामकथा ता कहं दृढ़ नावा।
विषइन्ह कहं पुनि हरि गुन ग्रामा, श्रवन सुखद अस मन अभिरामा।
श्रवनवंत अस को जग माहीं, जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं।
ते जड़ जीव निजात्मक
धातीं, जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती।
हरि चरित्र मानस तुम्ह गावा, सुनि मैं नाथ अमित सुख पावा।
तुम्ह जो कही यह कथा सुहाई, काग भुशुंडि गरुड़ प्रति गाई।
बिरति ग्यान विग्यान दृढ़ राम चरन अति नेह।
बायस तन रघुपति भगति मोहि परम संदेह।
पार्वती जी कहती हैं कि श्रीराम जी के चरित्र सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं, जो जीवन मुक्त महामुनि हैं वे भी भगवान के गुण निरंतर सुनते रहते हैं। पार्वती जी शंकर जी से कहती हैं कि हे नाथ, जो संसार रूपी सागर को पार करना चाहता है, उसके लिए तो श्रीराम जी की कथा दृढ़ नौका के समान है। श्री हरि के गुण समूह तो विषयी लोगों के लिए भी कानों को सुख देने वाले और मन को आनंद देने वाले हैं। वे कहती हैं जगत में कान वाला ऐसा कौन है जिसे श्री रघुनाथ जी के चरित्र न सुहाते हों जिन्हें श्री रघुनाथ जी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं। हे नाथ, आपने रामचरित मानस का गान किया उसे सुनकर मैंने अपार सुख पाया। आपने जो यह कहा कि यह सुंदर कथा काग भुशुंडि जी ने गरुड़ जी से कही थी-सो कौए का शरीर पाकर भी काग भुशुंडि वैराग्य, ज्ञान और विज्ञान में दृढ़ हैं। उनका श्रीराम जी के चरणों मंे अत्यंत प्रेम है और उन्हें श्री रघुनाथ जी की भक्ति भी प्राप्त है, इस बात पर मुझे परम संदेह हो रहा है।
नर सहस्त्र महं सुनहु पुरारी, कोउ एक होइ धर्म व्रत धारी।
धर्म सील कोटिक महं कोई, विषय विमुख विराग रत होई।
कोटि विरक्त मध्य श्रुति कहई, सम्यक ग्यान सकृत कोउ लहई।
ग्यानवंत कोटिक महं कोऊ, जीवन मुक्त सकृत जग सोऊ।
तिन्ह सहस्त्र महुं सब सुख खानी, दुर्लभ ब्रह्म लीन विग्यानी।
धर्मसील विरक्त अरु ग्यानी, जीवन मुक्त ब्रह्म पर प्रानी।
सबते सो दुर्लभ सुर राया, राम भगति रत गत मद माया।
सो हरि भगति काग किमि पाई, विस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई।
राम परायन ग्यानरत गुनागार मति धीर।
नाथ कहहु केहि कारन पायउ काक सरीर।
पार्वती जी कहती हैं कि हे त्रिपुरारि सुनिए, हजारों मनुष्यों में कोई एक धर्म के व्रत को
धारण करने वाला होता है और करोड़ों धर्मात्माओं में से कोई एक विषय से विमुख (विषयों का त्यागी) और वैराग्य परायण होता है। वेद कहते हैं कि करोड़ों विरक्तों में कोई एक ही सम्यक अर्थात यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करता है और करोड़ों ज्ञानियों में कोई एक ही जीवनमुक्त होता है। पार्वती ने कहा कि जगत में कोई बिरला ही ऐसा (जीवनमुक्त) होगा। हजारों जीवनमुक्तों में भी सब सुखों की खान ब्रह्म में लीन विज्ञान पुरुष और भी दुर्लभ है। धर्मात्मा वैराग्य वान, ज्ञानी, जीवनमुक्त और ब्रह्मलीन इन सबमें भी हे देवाधिदेव महादेव जी, वह प्राणी अत्यंत दुर्लभ है जो मद और माया से रहित होकर श्रीराम जी की भक्ति में परायण हो। हे विश्वनाथ ऐसी दुर्लभ हरि भक्ति को कौआ कैसे पा सका, मुझे समझा कर कहिए। हे नाथ कहिए ऐसे श्रीराम परायण, ज्ञाननिरत, गुण धाम और धीर बुद्धि भुशुंडि जी ने कौए का शरीर किस कारण पाया?
यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा, कहहु कृपाल काग कहं पावा।
तुम्ह केहि भांति सुना मदनारी, कहहु मोहि अति कौतुक भारी।
गरुड़ महा ज्ञानी गुन रासी, हरि सेवक अति निकट निवासी।
तेहिं केहि हेतु काग सन जाई, सुनी कथा मुनि निकर बिहाई।
कहहु कवन विधि भा संवादा, दोउ हरि भगत काग उरगादा।
गौरि गिरा सुनि सरल सुहाई, बोले सिव सादर सुख पाई।
धन्य सती पावन मति तोरी, रघुपति चरन प्रीति नहिं थोरी।
सुनहु परम पुनीत इतिहासा, जो सुनि सकल लोक भ्रम नासा।
उपजइ रामचरन विस्वासा, भवनिधि तर नर विनहिं प्रयासा।
ऐसिअ प्रस्न बिहंग पति कीन्हि काग सन जाइ।
सो सब सादर कहिहउं सुनहु उमा मन लाइ।
पार्वती जी कहती हैं कि हे कृपालु (शिवजी) बताइए, उस कौए ने प्रभु का यह पावन और सुंदर चरित्र कहां पाया? और हे कामदेव के शत्रु (शंकर जी) यह भी बताइए कि आपने उसे किस प्रकार सुना? मुझे बड़ा भारी कौतूहल हो रहा है। उन्होंने कहा, गरुड़ जी तो महान ज्ञानी, सदगुणों की राशि, श्री हरि के सेवक और उनके अत्यंत निकट रहने वाले (उनके वाहन) हैं। उन्होंने मुनियों के समूह को छोड़कर कौए से जाकर हरिकथा किस कारण सुनी? यह भी कहिए कि कागभुशुंडि जी और गरुड़ जी इन दोनों हरि भक्तों की बातचीत किस प्रकार हुई?
पार्वती जी की सरल और सुंदर वाणी सुनकर शिव जी सुख पाकर आदर के साथ बोले-हे सती, तुम धन्य हो, तुम्हारी बुद्धि अत्यंत पवित्र है। श्री रघुनाथ जी के चरणों में तुम्हारा अत्यधिक प्रेम है। अब वह परम पवित्र इतिहास सुनो, जिसे सुनने से सारे लोक के भ्रम का नाश हो जाता है तथा श्रीराम के चरणों में विश्वास उत्पन्न होता है। मनुष्य बिना ही परिश्रम के संसार रूपी समुद्र से पार हो जाता है। शंकर जी ने कहा हे पार्वती, पक्षीराज गरुड़ ने भी इसी प्रकार जाकर काग भुशुंडि जी से ऐसे ही प्रश्न किये थे। हे उमा, मैं वह सब आदर के साथ कहूंगा, तुम मन लगाकर सुनो। -क्रमशः (हिफी)

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