अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

बायस विसद चरित सब गाए

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

काग भुशुंडि जी गरुड़ जी को रामकथा सुना रहे हैं। उन्होंने सुग्रीव से मित्रता और बालि के बध का प्रसंग सुना दिया है। इसके बाद सुग्रीव के राजतिलक, किष्किंधा पर्वत पर चातुर्मास विश्राम, सीता जी की खोज के लिए जिस प्रकार वानर गये, हनुमान जी ने समुद्र लांघ कर लंका में सीता जी का पता लगाया, लंका को जलाया, श्रीराम जी ने समुद्र पर पुल बंधवाया और निसाचरों से घनघोर लड़ाई हुई। रावण, कुंभकर्ण का वध हुआ और विभीषण को राज देकर प्रभु श्रीराम अयोध्या वापस आ गये। इस सम्पूर्ण कथा को बायस (कागभुशुंडि) ने विस्तार से सुनाया। यही प्रसंग यहां बताया गया है। अभी तो कागभुशुंडि जी बालि के वध की कथा सुना चुके हैं-
कपिहि तिलक करि प्रभुकृत सैल प्रबरषन बास।
बरनन वर्षा सरद अरु राम रोष कपि त्रास।
जेहिं विधि कपिपति कीस पठाए, सीता खोज सकल दिसि
धाए।
बिबर प्रवेस कीन्ह जेहि भांती, कपिन्ह बहोरि मिला संपाती।
सुनि सब कथा समीर कुमारा, नाघत भयउ पयोधि अपारा।
लंका कपि प्रबेस जिमि कीन्हा, पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा।
बन उजारि रावनहिं प्रबोधी, पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी।
आए कपि सब जहं रघुराई, बैदेही की कुसल सुनाई।
सेन समेत जथा रघुवीरा, उतरे जाइ वारिनिधि तीरा।
मिला विभीषन जेहि विधि आई, सागर निग्रह कथा सुनाई।
सेतु बांधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।
गयउ बसीठी वीरबर जेहि
विधि बालि कुमार।
काग भुशुंडि जी ने गरुड़ जी को बताया कि सुग्रीव जी का राजतिलक करके प्रभु ने प्रवर्षण पर्वत पर निवास किया। इसके बाद वर्षा और शरद ऋतु का वर्णन, सुग्रीव के राजपाट में खो जाने पर सुग्रीव के प्रति रोष और सुग्रीव का भय आदि प्रसंग सुनाए। इसके बाद जिस प्रकार सुग्रीव ने वानरों को भेजा और वे सीता की खोज में जिस प्रकार सभी दिशाओं में गये, हनुमान जी के कहने पर प्यास से व्याकुल वानर एक बिबर (गुफा) में घुसे जहां एक तपस्विनी मिली थी उसके कहने पर आंखें बंद कीं और समुद्र के किनारे पहुंच गये और वहां गीधराज जटायु का भाई संपाती मिला, इस कथा को सुनाया। संपाती के माध्यम से सीता जी के लंका में होने की कथा सुनकर पवन पुत्र हनुमान जी जिस तरह अपार समुद्र को लांघ गये फिर हनुमान जी ने जैसे लंका में प्रवेश किया और फिर जैसे सीता जी को धैर्य बंधाया, यह सब कथा सुनाई। सीता जी की आज्ञा लेकर फल खाने के दौरान हनुमान जी ने जिस प्रकार अशोक वाटिका को उजाड़ा और मेघनाद जब उन्हें बांध कर रावण की सभा में ले गया तो हनुमान जी ने जिस प्रकार रावण को समझाया, लंकापुरी को जलाकर फिर जैसे उन्होंने समुद्र को लांघा और जिस प्रकार सभी वानर वहां आए जहां श्री रघुनाथ जी थे और आकर जानकी जी की कुशल सुनाई। फिर जिस प्रकार सेना सहित श्री रघुबीर जाकर समुद्र के तट पर उतरे और जिस प्रकार विभीषण जी आकर उनसे मिले वह सब और समुद्र पर पुल बांधने की कथा सुनाई। पुल बांधकर जिस प्रकार वानरों की सेना समुद्र के पार उतरी और जिस प्रकार वीरश्रेष्ठ बालि पुत्र अंगद दूत बनकर गये, वह सब कहा।
निसिचर कीस लराई, बरनिसि विविध प्रकार।
कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघार।
निसिचर निकर मरन विधि नाना, रघुपति रावन समर बखाना।
रावन वध मंदोदरि सोका, राज विभीषन देउ असोका।
सीता रघुपति मिलन बहोरी, सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी।
पुनि पुष्पक चढ़ि कपिन्ह समेता, अवध चले प्रभु कृपा निकेता।
जेहि विधि राम नगर निज आए, बायस बिसद चरित सब गाए।
कहेसि बहोरि राम अभिषेका, पुर बरनत नृप नीति अनेका।
कथा समस्त भुसुंड बखानी, जो मैं तुम्ह सन कही भवानी।
सुनि सब राम कथा खगनाहा, कहत बचन मन परम उछाहा।
गयउ मोर संदेह सुनेउं सकल रघुपति चरित।
भयउ राम पद नेहु तव प्रसाद बायस तिलक।
इसके बाद काग भुशुंडि जी ने राक्षसों और वानरों के युद्ध का अनेक प्रकार से वर्णन किया, फिर कुंभकर्ण और मेघनाद के बल, पुरुषार्थ और संहार (वध) की कथा कही। इसके बाद नाना प्रकार के राक्षसों के मरण तथा श्री रघुनाथ जी और रावण के बीच अनेक प्रकार के युद्ध का वर्णन किया। रावण का वध और मंदोदरी का शोक, विभीषण का राज्याभिषेक और देवताओं का शोक रहित होना कहकर फिर सीता जी और रघुनाथ जी के मिलाप की कथा सुनाई। इसके बाद जिस प्रकार देवताओं ने हाथ जोड़कर स्तुति की और फिर जैसे वानरों समेत श्रीरामचन्द्र जी अपने नगर अयोध्या में आए, वे सब उज्ज्वल चरित्र काग भुशुंडि जी ने विस्तार के साथ वर्णन किये। इसके बाद उन्होंने श्रीराम जी के राज्याभिषेक की कथा सुनाई। शिव जी पार्वती से कहते हैं कि अवधपुरी का और अनेक प्रकार की राजनीति का वर्णन करते हुए काग भुशुंडि जी ने वह सब कथा सुनाई जो मैंने तुमसे कही है। सारी रामकथा सुनकर पक्षीराज गरुड़ जी मन में बहुत उत्साहित होकर कहने लगे श्री रघुनाथ जी के सब चरित्र मैंने सुने, जिससे मेरा संदेह जाता रहा। हे काक शिरोमणि, आपके अनुग्रह से श्रीराम जी के चरणों में मेरा प्रेम हो गया है।
मोहि भयउ अति मोह, प्रभु बंधन रनमहुं निरखि।
चिदानंद संदोह, राम बिकल कारन कवन।
देखि चरित अति नर अनुसारी भयउ हृदयं मम संसय भारी।
सोइ भ्रम अब हित करि मैं माना, कीन्ह अनुग्रह कृपा निधाना।
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जानइ सोई।
जौं नहि होत मोह अति मोही, मिलतेउं तात कवन विधि तोही।
गरुड़ जी अब बताते हैं कि लंका मेें युद्ध के समय प्रभु का नागपाश में बंधना देखकर मुझे अत्यंत मोह हो गया कि श्रीराम जी तो सच्चिदानंद धन है, वे किस कारण व्याकुल हैं? बिल्कुल ही लौकिक मनुष्यों का चरित्र देखकर मेरे हृदय में भारी संदेह हो गया। मैं अब उस संदेह को अपने लिए हितकर समझता हूूं। कृपा निधान ने यह मुझ पर बड़ा अनुग्रह किया है। उन्होंने
कहा कि जो धूप में बहुत व्याकुल
होता है, वही वृक्ष की छाया का सुख जानता है। हे तात, यदि मुझे अत्यंत मोह न होता, तो मैं आपसे किस प्रकार मिलता? -क्रमशः (हिफी)

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