अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

सब मम प्रिय सब मम उपजाए

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

भगवान श्रीराम कागभुशुंडि जी को मनचाहा वर देकर कहते हैं कि अब तुम्हें माया जनित भ्रम नहीं होंगे। इसके साथ ही प्रभु श्रीराम ने कागभुशुंडि जी को बताया कि इस संसार में चर और अचर सभी मेरी माया से ही उत्पन्न हुए हैं। इस प्रकार सभी मुझे प्रिय हैं क्योंकि मेरे ही द्वारा उत्पन्न हुए हैं, फिर भी सबसे अधिक मनुष्य मुझे अच्छे लगते हैं। मनुष्य में भी भगवान को कौन ज्यादा प्रिय हो जाता है, यही इस प्रसंग में बताया गया है। अभी तो प्रभु श्रीराम कागभुशुंडि जी को भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के बारे में बता रहे हैं-
भगति ग्यान विग्यान बिरागा, जोग चरित्र रहस्य विभागा।
जानब तैं सबहीं कर भेदा, मम प्रसाद नहिं साधन खेदा।
मायासंभव भ्रम सब अब न व्यापिहहिं तोहि।
जानेसु ब्रह्म अनादि अज अगुन गुनाकर मोहि।
मोहि भगत प्रिय संतत अस विचारि सुनु काग।
कायँ बचन मन मम पद करेसु अचल अनुराग।
प्रभु श्रीराम कहते हैं कि भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, विज्ञान, योग, मेरी लीलाएं और उनके रहस्य तथा इन सबके भेद को तू मेरी कृपा से ही जान जाएगा। तुझे साधन का कष्ट नहीं होगा। माया से उत्पन्न सब भ्रम अब तुझको नहीं व्यापेंगे। मुझे अनादि, अजन्मा, प्राकृतिक गुणों से रहित और सब गुणों की खान अर्थात् ब्रह्म समझना। हे काक, सुन, मुझे भक्त निरंतर प्रिय हैं, ऐसा विचार कर शरीर, बचन और मन से मेरे चरणों में अटल प्रेम करना।
अब सुनु परम विमल मम बानी, सत्य सुगम निगमादि बखानी।
निज सिद्धांत सुनावउँ तोही, सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही।
मम माया संभव संसारा, जीव चराचर विविध प्रकारा।
सब मम प्रिय सब मम उपजाए, सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।
तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुति धारी, तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।
तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी, ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।
तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा, जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।
पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं, मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।
भगति हीन विरंचि किन होई, सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई।
भगति वंत अति नीचउ प्रानी, मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।
प्रभु श्रीराम ने काग भुशुंडि जी से कहा कि अब मेरी सत्य, सुगम वेदादि द्वारा वर्णित परम निर्मल वाणी सुन। मैं तुझको यह अपना (निजी) सिद्धांत सुनाता हूं। सुनकर मन में धारण कर और सब तजकर मेरा ही भजन कर। यह सारा संसार मेरी माया से उत्पन्न है। इसमें अनेक प्रकार के चराचर जीव हैं वे सभी मुझे प्रिय हैं क्योंकि सभी मेरे ही उत्पन्न किये हैं, फिर भी मनुष्य मुझको सबसे अधिक अच्छे लगते हैं। उन मनुष्यों में भी द्विज (ब्राह्मण) द्विजों में भी वेदों को कण्ठ में धारण करने वाले, उनमें भी वेदों के बताये
धर्म पर चलने वाले और उनमें भी बिरक्त अर्थात बैराग्यवान मुझे प्रिय है। बैराग्यवानों में भी ज्ञानी और ज्ञानियों में भी अत्यंत प्रिय विज्ञानी है। विज्ञानियों से भी प्रिय मुझे अपना दास है, जिसे मेरा ही आश्रय रहता है, कोई दूसरी आशा नहीं है। मैं तुझसे बार-बार सत्य (निज सिद्धांत) कहता हूं कि मुझे अपने सेवक के समान प्रिय कोई भी नहीं है। भक्तिहीन ब्रह्मा ही क्यों न हो, वह मुझे सब जीवों के समान ही प्रिय है लेकिन मेरी भक्ति करने वाला अत्यंत नीच प्राणी भी मुझे प्राणों के समान प्रिय है, यही मेरी घोषणा (वचनबद्धता) है।
सुचि सुसील सेवक सुमति प्रिय कहु काहि न लाग।
श्रुति पुरान कह नीति असि सावधान सुनु काग।
एक पिता के बिपुल कुमारा, होहिं पृथक गुन सील अचारा।
कोउ पंडित कोउ तापस ग्याता, कोउ धनवंत सूर कोउ दाता।
कोउ सर्वग्य धर्मरत कोई, सब पर पितहि प्रीति सम होई।
कोउ पितु भगत बचन मन कर्मा, सपनेहुँ जान न दूसरा धर्मा।
सो सुत प्रिय पितु प्रान समाना, जद्यपि सो सब भांति अयाना।
एहि विधि जीव चराचर जेते, त्रिजग देव नर असुर समेते।
अखिल बिस्व यह मोर उपाया, सब पर मोहि बराबरि दाया।
तिन्ह महँ जो परिहरि मदमाया, भजै मोहि मन बच अरु काया।
पुरुष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोइ।
सर्व भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ।
प्रभु श्रीराम कागभुशंुडि जी से कहते हैं कि पवित्र, सुशील और सुंदर बुद्धि वाला सेवक किसको प्यारा नहीं लगता? वेद और पुराण ऐसी ही नीति कहते हैं। हे काक, सावधान होकर सुन। एक पिता के बहुत से पुत्र पृथक-पृथक गुण, समूह, स्वभाव और आचरण वाले होते हैं। कोई पंडित होता है, कोई तपस्वी, कोई ज्ञानी, कोई धनवान, कोई शूरवीर और कोई दानी, कोई सर्वज्ञ और कोई धर्म परायण होता है। पिता का प्रेम इन सभी पर समान होता है लेकिन इनमें से यदि कोई मन, वचन और कर्म से पिता का ही भक्त होता है, स्वप्न में भी दूसरा धर्म नहीं जानता, वह पुत्र पिता को प्राणों के समान प्रिय होता है। भले ही वह सब प्रकार से अयाना (मूर्ख) हो। इसी प्रकार तिर्यक (पशु-पक्षी), देव मनुष्य और असुरों समेत जितने भी चेतन और जड़ जीव हैं, उनसे भरा हुआ यह सम्पूर्ण
विश्व मेरा ही पैदा किया हुआ है, अतएव सब पर मेरी बराबर दया रहती है लेकिन इनमे जो मद और माया छोड़कर मन, बचन और शरीर से मुझको भजता है, वह पुरुष हो, नपुंसक हो, स्त्री हो अथवा चर-अचर कोई भी जीव हो, कपट छोड़कर जो भी सर्व भाव से मुझे भजता है, वही मुझे परम प्रिय है।
सत्य कहउँ खग तोहि सुचि सेवक मम परमप्रिय।
अस बिचारि भजु मोहि परिहरि आस भरोस सब।
कबहूं काल न व्यापिहि तोही, सुमिरेसु भजेसु निरंतर मोही।
भगवान ने कहा, हे पक्षी (कागभुशुंडि) मैं तुझसे सत्य कहता हूं पवित्र, अनन्य एवं निष्काम सेवक मुझे प्राणों के समान प्यारा है। ऐसा बिचार कर सब आशा-भरोसा छोड़कर मुझी को भज। तुझे काल कभी नहीं व्यापेगा अर्थात् तू अमर है। निरंतर मेरा स्मरण और भजन करते रहना। -क्रमशः (हिफी)

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