
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
कागभुशुंडि जी पक्षीराज गरुड़ को बता रहे हैं कि भगवान को किस प्रकार प्रसन्न किया जा सकता है। वे कहते हैं श्रीराम के प्रति जब तक विश्वास नहीं होगा, तब तक उनकी भक्ति नहीं मिलेगी और भक्ति के बिना वे द्रवित नहीं होते। श्रीराम के गुण तो ऐसे सागर के समान हैं जिसकी थाह अर्थात् गहराई का किसी को पता नहीं है, इसलिए संतों के सत्संग में मैंने जो कुछ सुना है, वही तुमको सुना दिया है। करुणा धाम भगवान प्रेम के भाव के वश में रहते हैं। यही प्रसंग यहां बताया गया है-
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु।
अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल।
भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद।
कागभुशुंडि जी कहते हैं कि हे गरुड़ जी, बिना विश्वास के भक्ति नहीं होगी, भक्ति के बिना श्रीरामजी पिघलते नहीं हैं और श्रीराम जी की कृपा के बिना जीव स्वप्न मंे भी शांति नहीं पाता। हे धीर बुद्धि गरुड़ जी, ऐसा बिचार कर सम्पूर्ण कुतर्कों और संदेहों को छोड़कर करुणा की खान सुंदर और सुख देने वाले श्री रघुबीर जी का भजन कीजिए।
निज मति सरिस नाथ मैं गाई, प्रभु प्रताप महिमा खगराई।
कहेउँ न कछु करि जुगुति बिसेषी, यह सब मैं निज नयनन्हि देखी।
महिमा नाम रूप गुन गाथा, सकल अमित अनंत रघुनाथा।
निज निज मति मुनि हरि गुन गावहिं, निगम सेष सिव पार न पावहिं।
तुम्हहि आदि खग मसक प्रजंता, नभ उड़ाहिं नहिं पावहिं अंता।
तिमि रघुपति महिमा अवगाहा, तात कबहुँ कोउ पाव कि थाहा।
रामु काम सत कोटि सुभग तन, दुर्गा कोटि अमित अरिमर्दन।
सक्र कोटि सत सरिस बिलासा, नभ सत कोटि अमित अवकासा।
मरुत कोटिसत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास।
ससि सत कोटि सुसीतल सभन सकल भव त्रास।
काल कोटि सत सरिस अति दुस्तर दुर्ग दुरंत।
धूमकेतु सत कोटि सम दुराधरष भगवंत।
कागभुशुंडि जी कहते हैं कि हे पक्षीराज, हे नाथ, मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार प्रभु के प्रताप और महिमा का गान किया। मैंने इसमें कोई बात युक्ति से बढ़ाकर नहीं कही है। यह सब अपनी आंखों से देखी कही है। श्री रघुनाथ जी की महिमा, नाम, रूप और गुणों की कथा सभी अपार और अनंत है तथा श्री रघुनाथ जी स्वयं भी अनंत हैं। मुनिगण अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार श्री हरि के गुण गाते हैं। वेद, शेष और शिव जी भी उनका पार नहीं पाते। आप से लेकर मच्छर पर्यन्त सभी छोटे-बड़े जीव आकाश में उड़ते हैं लेकिन आकाश का अंत कोई नहीं पाते। इसी प्रकार हे तात, श्री रघुनाथ जी की महिमा भी अथाह है, क्या कोई कभी उसकी थाह पा सकता है? श्री रामजी का अरबों कामदेवों के समान सुंदर शरीर है। वे अनंत कोटि दुर्गाओं के समान शत्रुनाशक हैं। अरबों इन्द्रों के समान उनका बिलास अर्थात ऐश्वर्य है। अरबों आकाशों के समान उनमें अनंत स्थान -अवकाश है। अरबों पवन के समान उनमें महान बल है और अरबों सूर्यों के समान प्रकाश है। अरबों चंद्रमाओं के समान वे शीतल और संसार के समस्त भयों का नाश करने वाले हैं। अरबों कालों के समान वे अत्यन्त दुस्तर, दुर्गम और दुरंत हैं। वे भगवान अरबों धूमकेतुओं (पुच्छल तारों) के समान अत्यंत प्रबल हैं।
प्रभु अगाध सत कोटि पताला, समन कोटि सत सरिस कराला।
तीरथ अमित कोटिसम पावन, नाम अखिल अघ पूग नसावन।
हिमगिरि कोटि अचल रघुबीरा, सिंधु कोटि सत सम गंभीरा।
कामधेनु सत कोटि समाना, सकल कामदायक भगवाना।
सारद कोटि अमित चतुराई, विधि सत कोटि सृष्टि निपुनाई।
बिष्नु कोटि सम पालनकर्ता, रुद्र कोटि सत सम संहर्ता।
धनध कोटि सत सम धनवाना, माया कोटि प्रपंच निधाना।
भार धरन सत कोटि
अहीसा, निरवधि निरुपम प्रभु जगदीसा।
कागभुशंुडि जी कहते हैं, हे गरुड़ जी, अरबों पातालों के समान प्रभु अथाह हैं, अरबों यमराजों के समान भयानक हैं। अनंत कोटि तीर्थों के समान वे पवित्र करने वाले हैं। उनका नाम ही सम्पूर्ण पाप समूह क नाश करने वाला है। श्री रघुबीर करोड़ों हिमालयों के समान अचल (स्थिर) हैं और अरबों समुद्रों के समान गहरे हैं। भगवान अरबों कामधेनुओं के समान मनचाहा पदार्थ देने वाले हैं। उनमंे अनंत कोटि सरस्वतियों के समान चतुरता है, अरबों ब्रह्माओं के समान सृष्टि रचना की निपुणता है। वे करोड़ों विष्णुओं के समान पालन करने वाले और अरबों रुद्रों के समान संहार करने वाले हैं। वे अरबों कुबेरों के समान धनवान और करोड़ों मायाओं के समान सृष्टि के खजाने हैं। बोझ (भार) उठाने में वे अरबों शेषनाग के समान हैं। उनके बारे में अधिक क्या कहें, जगदीश्वर प्रभु श्रीराम जी सभी बातों में सीमा रहित और उपमा रहित हैं।
निरुपम न उपमा आन राम समान रामु निगम कहै।
जिमि कोटि सत खद्योत सम रबि कहत अति लघुता लहै।
एहि भांति निजनिज मति बिलास मुनीस हरिहि बखानहीं।
प्रभु भाव गाहक अति कृपाल सप्रेम सुनि सुखमानहीं।
रामु अमित गुनसागर थाह कि पावइ कोइ।
संतन्ह सन जस किछु सुनेउँ तुम्हहि सुनायउँ सोइ।
भाव बस्य भगवान सुख
निधान करुना भवन।
तजि ममता मदमान भजिअ सदा सीता रवन।
प्रभु श्री राम जी सभी उपमाओं से रहित है, उनकी कोई दूसरी उपमा है ही नहीं। श्रीराम के समान तो श्रीराम ही हैं- ऐसा वेद कहते हैं जैसे अरबों जुगनुओं को सूर्य के समान कह दें तो सूर्य की यह प्रशंसा नहीं बल्कि सूर्य को लघुता ही प्राप्त होती है। इसी प्रकार अपनी-अपनी बुद्धि के विकास के अनुसार मुनिगण श्री हरि का वर्णन करते हैं। लेकिन भगवान तो भक्तों के भाव मात्र को ग्रहण करने वाले और अत्यंत कृपालु हैं। वे उस वर्णन को प्रेम सहित सुनकर सुख मानते हैं। श्रीराम जी अपार गुणों के समुद्र हैं। क्या कोई उनके गुणों की थाह पा सकता है? संतों से मैंने जैसा कुछ सुना था, वहीं मैंने आपको सुनाया है। सुख के भंडार, करुणाधाम भगवान भाव (प्रेम) के वश में रहते हैं अतएव ममता, मद (घमंड) और मान को छोड़कर सदा जानकीनाथ जी का ही भजन करना चाहिए। -क्रमशः (हिफी)