
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
प्रभु श्रीराम महर्षि अगस्त्य के सुझाव पर दण्डक वन में स्थित पंचवटी में आश्रम बनाकर रहने लगते हैं। वर्तमान में यह स्थान महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है। वहां गोदावरी नदी आज भी बह रही है। इसी नदी के तट पर आश्रम बना था। प्रभु श्रीराम से एक बार लक्ष्मण ने ईश्वर और जीव में भेद के बारे में जानकारी चाही तो भगवान ने उन्हें संक्षेप में बताया। इस प्रसंग में विशेष रूप से यही बताया गया है। इसी के बाद रावण की बहन शूर्पणखा वहां पहुंचती है। अभी तो गोदावरी के तट पर कैसा वातावरण है, इस बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी बता रहे हैं।
खग मृग वृंद अनंदित रहहीं, मधुप मधुर गंुजत छवि लहहीं।
सो बन बरनि न सक अहिराजा, जहां प्रगट रघुवीर बिराजा।
एक बार प्रभु सुख आसीना, लछिमन बचन कहे छल हीना।
सुर नर मुनि सचराचर साईं, मैं पूछउं निज प्रभु की नाई।
मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा, सब तजि करौं चरन रज सेवा
कहहु ग्यान विराग अरू माया, कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया।
ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।
जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ।।
पंचवटी के आसपास पक्षी और पशुओं के समूह आनंदित रहते हैं और भौंरे मधुर गंुजार करते हुए शोभा पा रहे हैं। स्वाभाविक है कि जहां प्रत्पक्ष रूप से श्रीराम जी विराज मान हैं, उस वन का वर्णन सर्पराज शेष नाग जी भी नहीं कर सकते। ऐसे ही वातावरण में एक बार श्रीराम जी सुख से बैठे हुए थे, उस समय लक्ष्मण जी ने उनसे छल रहित (सरल) वचन कहे – हे देवता.. मनुष्य, मुनि और चराचर के स्वामी। मैं अपने प्रभु की तरह अर्थात आपको अपना स्वामी समझकर आपसे कुछ पूछ रहा हूं। हे देव, मुझे समझाकर वही कहिए जिससे सब कुछ छोड़कर मैं आपकी चरणों की धूल की ही सेवा करूं। लक्ष्मण जी नेे कहा आप ज्ञान, वैराग्य और माया का वर्णन कीजिए और उस भक्ति के बारे में भी बताइए जिसके कारण आप दया करते हैं। लक्ष्मण ने कहा हे प्रभो ईश्वर और जीव का भेद भी सब समझा कर कहिए, जिससे आपके चरणों में मेरी प्रीति हो तथा शोक, मोह और भ्रम नष्ट हो जाए। (क्रमशः) (हिफी)