
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
प्रभु श्रीराम की इस कथा में गोस्वामी तुलसीदास ने बार-बार यह बात कही है कि आस्था और विश्वास मंे तर्क घातक होता है। इसलिए श्रीराम का भजन और उनकी कथा में तर्क न किया जाए। इस प्रसंग में विशेष रूप से यही बताया गया। भगवान शंकर ने पार्वती जी को कथा सुनाते हुए यही बताया कि प्रभु श्रीराम की सगुण लीला में बुद्धि और वाणी के बल से निर्णय नहीं किया जा सकता। पक्षीराज गरुड़ को यही तर्क परेशन कर रहा था। वे सोच रहे थे कि एक निशाचर ने भगवान को नाग पाश में कैसे बांध लिया? काग भुशंडि के आश्रम में पहुंचते ही उनका भ्रम दूर हो गया था। अभी तो मेघनाद युद्ध कर रहा है और शंकर जी पार्वती जी को समझा रहे हैं-
चरित राम के सगुन भवानी, तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी।
अस विचारि जे तग्य विरागी, रामहिं भजहिं तर्क सब त्यागी।
ब्याकुल कटकु कीन्ह धननादा, पुनि भा प्रगट कहइ दुर्बादा।
जामवंत कह खल रहु ठाढ़ा, सुनि करि ताहि क्रोध अति बाढ़ा।
बूढ़ जानि सठ छांडेउं तोही, लागेसि अधम पचारै मोही।
अस कहि तरल त्रिसूल चलायो, जामवंत कर गहि सोइ धायो।
मारिसि मेघनाद कै छाती, परा भूमि घुर्मित सुरधाती।
पुनि रिसान गहि चरन फिरायो, महि पछारि निज बल देख रायो।
बर प्रसाद सो मरइ न मारा, तब गहि पद लंका पर डारा।
इहां देवरिषि गरुड़ पठायो, राम समीप सपदि सो आयो।
खगपति सब धरि खाए, माया नाग बरूथ।
माया विगत भए सब हरषे बानर जूथ।
गहि गिरि पादप उपल नख धाए कीस रिसाइ।
चले तमीचर विकलतर गढ़ पर चढ़े पराइ।
मेघनाद ने जब प्रभु श्रीराम को नाग पाश (सर्पों के बंधन) में बांध दिया तब वानर-भालु व्याकुल हो गये। भगवान शंकर पार्वती जी को यह प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं कि हे भवानी, श्रीरामचन्द्र जी की इन सगुण लीलाओं के विषय में बुद्धि और वाणी के बल से तर्क नहीं किया जा सकता। ऐसा विचार कर जो तत्व ज्ञानी और विरक्त पुरुष हैं वे सब शंकाएं छोड़कर श्रीराम जी का भजन ही करते हैं। शंकर जी कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि इस प्रकार मेघनाद ने वानर सेना को व्याकुल कर दिया फिर वह प्रकट हो गया और दुर्वचन कहने लगा। इस पर जाम्बवान ने कहा-अरे दुष्ट खड़ा रह। यह सुनकर मेघनाद को ज्यादा गुस्सा आ गया और वह कहने लगा अरे मूर्ख मैंने तुझे बूढ़ा जानकर छोड़ दिया था। अरे अधम अब तू मुझे ही ललकारने लगा है। ऐसा कहकर उसने चमकता हुआ त्रिशूल चलाया। जाम्बवान ने उसी त्रिशूल को पकड़ लिया और मेघनाद की छाती पर जोर से प्रहार किया। देवताओं का वह शत्रु (मेघनाद) तब चक्कर खाकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। जाम्बवान ने फिर क्रोध में आकर उसके पैर पकड़कर घुमाया और पृथ्वी पर पटककर उसे अपना बल दिखलाया। वरदान के प्रताप से मेघनाद की मृत्यु नहीं हो रही है तब जाम्बवान ने उसका पैर पकड़कर उसे लंका के किले के अंदर फेंक दिया। इधर, देवर्षि नारद ने गरुड़ को भेजा। वे तुरंत श्रीराम जी के पास पहुंचे। पक्षीराज गरुड़ ने तब माया रूपी सर्पों के समूह को पकड़कर खा डाला। प्रभु श्रीराम भी बंधन रहित हो गये और सब वानरों के झुंड माया के नष्ट होने से हर्षित हो गये। वे पर्वत, वृक्ष, पत्थर और नाखून धारण किये क्रोधित होकर दौड़े। निशाचर व्याकुल होकर भागे और भागकर किले पर चढ़ गये।
मेघनाद कै मुरछा जागी, पितहि बिलोकि लाज अति लागी।
तुरत गयउ गिरिबर कंदरा, करौं अजय मख असमन धरा।
इहां विभीषन मंत्र विचारा, सुनहु नाथ बल अतुल उदारा।
मेघनाद मख करइ अपावन, खल मायावी देव सतावन।
जौं प्रभु सिद्ध होइ सो पाइहि, नाथ बेगि पुनि जीति न जाइहि।
सुनि रघुपति अतिसय सुख माना, बोले अंगदादि कपि नाना।
लछिमन संग जाहु सब भाई, करहु विधंस जग्य कर जाई।
तुम्ह लछिमन मारेहु रन ओही, देखि सभय सुर दुख अति मोही।
मारेहु तेहि बल बुद्धि उपाई, जेहि छीजै निसिचर सुनु भाई।
जामवंत, सुग्रीव विभीषन, सेन समेत रहेउ तीनिउ जन।
जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन, कटि निषंग कसि साजि सरासन।
प्रभु प्रताप उर धरि रनधीरा, बोले धन इव गिरा गंभीरा।
जौं तेहि आजु बधे बिनु आवौं, तौ रघुपति सेवक न कहावौं।
जौं सत संकर करहिं सहाई, तदपि हतउं रघुवीर दोहाई।
रघुपति चरन नाइ सिरू चलेउ तुरंत अनंत।
अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत।
जाम्बवान जी ने मेघनाद को लंका के अंदर फेंका था। वह मूच्र्छित हो गया उसकी जब मूच्र्छा खत्म हुई तो सामने अपने पिता रावण को देखकर उसे बहुत शर्म लगी क्योंकि एक दिन पहले ही उसने रावण के सामने डींग मारते हुए कहा था कि कल मेरा विशेष पौरुष देखना। इसलिए मेघनाद अजेय होने का यज्ञ करने के लिए एक श्रेष्ठ पर्वत की गुफा में चला गया। यहां विभीषण जी ने यह सलाह विचारी और श्रीराम जी से कहा कि हे अतुलनीय बलवान? उदार प्रभो, देवताओं को सताने वाला दुष्ट मायावी मेघनाद अपवित्र यज्ञ कर रहा है। हे प्रभो यदि वह यज्ञ सिद्ध हो जाएगा तो हे नाथ फिर मेघनाद को जल्दी जीता न जा सकेगा। यह सुनकर श्री रघुनाथ जी को बहुत सुख मिला। उन्होंने अंगद आदि बहुत से वानरों को बुलाया और कहा हे भाइयो, सब लोग लक्ष्मण के साथ जाओ और जाकर यज्ञ को विध्वंस कर दो। हे लक्ष्मण संग्राम में तुम मेघनाद को मारना, देवताओं को भयभीत देखकर मुझे बड़ा दुख है। श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा हे भाई सुनो, उसको ऐसे बल और बुद्धि के उपाय से मारना, जिससे निशाचर का नाश हो। हे जाम्बवान सुग्रीव और विभीषण तुम तीनों लोग सेना समेत लक्ष्मण के साथ रहना।
इस प्रकार जब श्री रघुनाथ जी ने आज्ञा दी जब कमर में तरकस कसकर और धनुष सजाकर रणधीर लक्ष्मण जी प्रभु के प्रताप को हृदय में धारण करके मेघ के समान गंभीर वाणी बोले-यदि मैं आज उसे (मेघनाद) बिन मारे आऊं तो श्री रघुनाथ जी का सेवक न कहलाऊं। यदि सैकड़ों शंकर भी उसकी सहायता करे तो भी श्री रघुनाथ जी की दुहाई है आज मैं उसे मार ही डालूंगा। इस प्रकार कहते हुए लक्ष्मण जी ने श्री रघुनाथ के चरणों में सिर नवाया और शेषावतार लक्ष्मण जी तुरंत युद्ध करने चल पड़े। उनके साथ अंगद, नील, मयंद, नल और हनुमान आदि उत्तम योद्धा थे।
जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा, आहुति देत रुधिर और भैंसा।
कीन्ह कपिन्ह सब जग्य विधंसा, जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा।
तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई, लातन्हि हति हति चले पराई।
लै त्रिसूल धावा कपि भागे, आए जहं रामानुज आगे।
वानर सेना वहां पहुंच गयी जहां मेघनाद अपावन यज्ञ कर रहा है। वानरों ने वहां देखा कि मेघनाद रक्त और भैंसे की आहुतियां डाल रहा है। वानरों ने यज्ञ को विध्वंस कर दिया फिर भी जब मेघनाद नहीं उठा तो उसकी प्रशंसा करने लगे। इतने पर भी वह नहीं यज्ञ से उठा तो वानरों ने जाकर उसके बाल पकड़े और लातें मार-मारकर भाग चले। इससे मेघनाद क्रोधित हुआ वह
त्रिशूल लेकर दौड़ा तब वानर भागे और वहां आ गये जहां आगे लक्ष्मण जी खड़े थे। -क्रमशः (हिफी)