
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
श्रीराम शक्ति लगने से थोड़ा बेचैन हो गये तो विभीषण रावण से युद्ध करने लगा। यह भी श्रीराम का प्रताप है कि जो विभीषण रावण का सामना करने से डरता था, वही अब बराबर का मुकाबला कर रहा है। विभीषण को थका देखकर हनुमान जी युद्ध करने लगे। प्रभु श्रीराम भी अब तक अपने को संभाल चुके थे। उन्होंने वानर-भालुओं को ललकार कर रावण से युद्ध करने को कहा। वानरों की प्रबल सेना देखकर रावण ने पाखंड शुरू किया और जहां-तहां करोड़ों रावण बना दिये। इतने अधिक रावण देखकर देवता भी डर गये, वानर-भालू भी घबड़ा गये तो श्रीराम ने अपने धनुष से उसकी माया को काट डाला और रणभूमि में एक ही रावण को देखकर देवता और वानर-भालू हर्षित हो गये। यही प्रसंग यहां बताया गया है। अभी तो रावण से विभीषण लड़ रहे हैं तो उस कथा को भगवान शंकर पार्वती जी को सुना रहे हैं-
उमा विभीषन रावनहिं सन्मुख चितव कि काउ।
सो अब भिरत काल ज्यों श्री रघुवीर प्रभाउ।
देखा श्रमित विभीषनु भारी, धायउ हनूमान गिरि धारी।
रथ तुरंग सारथी निपाता, हृदय माझ तेहिं मारेसि लाता।
ठाढ़ रहा अति कंपित गाता, गयउ विभीषनु जहँ जनत्राता।
पुनि रावन कपि हतेउ पचारी, चलेउ गगन कपि पूंछ पसारी।
गहिसि पूंछ कपि सहित उड़ाना, पुनि फिरि मिरेउ प्रबल हनुमाना।
लरत अकास जुगल सम जोधा, एकहिं एकु हनत करि क्रोधा।
सोहहिं नभ छल बल बहु करहीं, कज्जल गिरि सुमेरु जनु लरहीं।
बुधि बल निसिचर परइ न पार्यो, तब मारुत सुत प्रभु संभार्यो।
संभारि श्री रघुवीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो।
महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुं जय जय भन्यो।
हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले।
रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचंड भुजबल दल मले।
भगवान शंकर पार्वती जी को श्रीराम की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि हे उमा, विभीषण क्या कभी रावण के सामने आंख उठाकर भी देख सकता था लेकिन अब वही काल के समान उससे भिड़ रहा है। यह श्री रघुवीर जी का ही प्रभाव है। विभीषण को बहुत ही थका हुआ देखकर हनुमान जी पर्वत धारण किये हुए दौड़े। उन्होंने उस पर्वत से रावण को रथ और सारथी का संहार कर दिया और रावण के सीने पर लात मारी। रावण खड़ा रहा लेकिन उसका शरीर जरूर कांपने लगा। उधर, विभीषण जी वहां चले गये जहां सेवकों के रक्षक श्रीराम जी थे। इधर, हनुमान की लात लगने के बाद रावन ने ललकार कर हनुमान को मारा। वे पूंछ फैलाकर आकाश में चले गये। रावन ने पूंछ पकड़ ली। हनुमान जी उसको साथ लिखे हुए ऊपर उड़े, फिर लौटकर महा प्रबल हनुमान जी उससे भिड़ गये। दोनों समान योद्धा आकाश में लड़ते हुए एक-दूसरे को क्रोध करके मारने लगे। दोनों बहुत से छल-बल करते हुए ऐसे शोभित हो रहे हैं मानो कज्जल गिरि और सुमेरु पर्वत आपस में लड़ रहे हों। बुद्धि और बल से जब राक्षस गिराए न गिरा, तब मारुति हनुमान जी ने प्रभु को स्मरण किया। श्री रघुवीर जी का स्मारण करके धीर हनुमान जी ने ललकार कर रावण को मारा। वे दोनों पृथ्वी पर गिरते और फिर उठकर लड़ते हैं। देवताओं ने दोनों की जय-जय पुकारी। हनुमान जी पर संकट देखकर वानर-भालू क्रोध करके दौड़े लेकिन रण में मस्त रावण ने सब योद्धाओं को अपनी प्रचण्ड भुजाओं के बल से कुचल और मसल डाला।
तब रघुवीर पचारे, धाए कीस प्रचंड।
कपि बल प्रबल देखि तेहिं कीन्ह प्रगट पाषंड।
अन्तरधान भयउ छन एका, पुनि प्रगटे खल रूप अनेका।
रघुपति कटक भालु कपि जीते, जहं-तहं प्रगट दसानन तेते।
देखे कपिन्ह अमित दससीसा, जहं जहं भजे भालु अरु कीसा।
भागे बानर धरहि न धीरा, त्राहि त्राहि लछिमन रघुबीरा।
दहँ दिसि धावहिं कोटिन्ह रावन, गर्जहिं घोर कठोर भयावन डरे सकल सुर चले पराई, जय कै आस तजहु अब भाई।
सब सुर जिते एक दसंकधर, अब बहु बहे तकहु गिरि कंदर।
रहे बिरंचि संभु मुनि ग्यानी, जिन्ह जिन्ह प्रभु महिमा कछु जानी।
जाना प्रताप ते रहे निर्भय कपिन्ह रिपु माने फुरे।
चले बिचलि मर्कट भालु सकल कृपाल पाहिं भयातुरे।
हनुमंत अंगद नील नल अतिबल लरत रन बांकुरे।
मर्दहिं दसानन कोटि कोटिन्ह कपट भू भट अंकुरे।
वानर-भालुओं को इस हालत में देखकर श्री रघुवीर जी ने उनमें जोश भरते हुए ललकारा। प्रचण्ड वीर वानर दौड़े। वानरों के प्रबल दल को देखकर रावण ने माया प्रकट की। वह क्षण भर के लिए अदृश्य हो गया, फिर उस दुष्ट ने अनेक रूप प्रकट किये। श्री रघुनाथ जी की सेना में जितने रीछ-वानर थे उतने ही रावण जहां-तहां प्रकट हो गये। वानरों ने असंख्य रावण देखे। भालू और वानर सब जहां-तहां भाग चले। वानर धैर्य नहीं धारण करते वे लक्ष्मण जी, हे रघुवीर जी, हमें बचाइए, ऐस पुकारते हुए भागे जा रहे हैं। दसों दिशाओं में करोड़ों रावण दौड़ रहे हैं। और घोर भयावन गर्जन कर रहे हैं। सभी देवता डर गये और ऐसा कहते हुए भाग चले कि हे भाई, अब विजय की उम्मीद छोड़ दो। एक ही रावण ने सब देवताओं को जीत लिया था, अब तो बहुत से रावण हो गये हैं। इससे अब पहाड़ की गुफाओं का आश्रय लो अर्थात् उनमें छिप जाओ। इस प्रकार देवता घबड़ा रहे हैं वहां सिर्फ ब्रह्मा, शिवजी और ज्ञानी मुनि ही खड़े रहे जिन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा को समझा हुआ है। प्रभु का प्रताप जो जानते थे, वे वहां डटे रहे। उन्हें कोई डर नहीं था। वानरों ने बहुत से शत्रुओं (रावणों को) सच्चा ही मान लिया इससे सभी वानर-भालू बिचलित हो गये और यह कहते हुए कि हे कृपालु रक्षा कीजिए, भय से व्याकुल होकर भाग चले। अत्यंत बलवान रणबांकुरे हनुमान जी अंगद, नील और नल लड़ रहे हैं और कपट रूपी भूमि से अंकुर की भांति उपजे हुए कोटि-कोटि योद्धा रावणों को मसलते हैं क्योंकि वे तो माया के रावण हैं।
सुर बानर देखे विकल हंस्यो कोसलाधीस।
सजि सारंग एक सर हते सकल दससीस।
प्रभु छन महुं माया सब काटी, जिमि रबिउएं जाहिं तम फाटी।
रावनु एकु देखि सुर हरषे, फिरे सुमन बहुत प्रभु पर बरषे।
भुज उठाइ रघपुति कपि घेरे, फिरे एक एकन्ह तब टेरे।
प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए, तरल तमकि संजुग महि आए।
देवताओं और वानरों को विकल देखकर कोशलपति श्रीराम जी हंसे और शारंग धनुष पर एक बाण चढ़ाकर माया के बने हुए सब रावणों को मार डाला। प्रभु ने क्षण भर में सब माया काट डाली जैसे सूर्य के उदाय होते ही अंधकार पूरी तरह दूर हो जाता है, उसी तरह एक ही रावण को देखकर देवता हर्षित हुए और उन्होंने लौटकर प्रभु पर बहुत से फूल बरसाए। श्री रघुनाथ जी ने हाथ उठाकर सभी वानरों को
वापस लौटने को कहा। तब वे एक दूसरे को पुकार-पुकार कर लौट आए। प्रभु का बल पाकर रीछ-बानर दौड़ पड़े और जल्दी से कूटकर वे रणभूमि में आ गये। -क्रमशः ़(हिफी)