अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

सीता उर भइ त्रास घनेरी

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

प्रभु श्रीराम रावण से युद्ध कर रहे हैं। रावण के सिर और भुजाएं काटने के बाद भी उसकी मृत्यु नहीं हो रही हैं। रण भूमि का यह समाचार त्रिजटा के माध्यम से जनक नंदिनी सीता को मिलता है तो वह बहुत चिंतित हो जाती हैं। त्रिजटा ही उनकी चिंता को दूर करती है। यही प्रसंग यहां बताया गया है। अभी तो प्रभु श्रीराम ने रावण की माया को नष्ट करके करोड़ों माया से उत्पन्न रावणों को मार डाला तो देवता हर्षित होकर फूल बरसाने लगे। यह देखकर रावण क्रोधित होकर देवताओं की तरफ जाने लगता है-
अस्तुति करत देवतन्हि देखें, भयउं एक मैं इन्ह के लेखें।
सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल, अस कहि कोपि गगन पर धायल।
हाहाकार करत सुर भागे, खलहु जाहु कहं मोरे आगे।
देखि विकल सुर अंगद धायो, कूटि चरन गहि भूमि गिरायो।
गहि भूमि पार्यो, लात मार्यो बालिसुत प्रभु पहि गयो।
संभारि उठि दसकंठ घोर कठोर रव गर्जत भयो।
करि दाप चाप चढ़ाइ दस
संधानि सर बहु बरषई।
किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निजबल हरषई।
तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप।
काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप।
देवतागण प्रभु श्रीराम की स्तुति करने लगे। उन्हें देखकर रावण ने सोचा कि मैं इनकी नजर में एक हो गया हूं लेकिन इन्हें पता नहीं कि मैं अकेला ही इनके लिए बहुत हूं। यह सोचकर वह क्रोधित होकर कहने लगा अरे मूर्खों, तुम तो सदा से मेरी मार खाते रहे हो। ऐसा कहकर वह क्रोध से आकाश में खड़े देवताओं की तरफ दौड़ा। देवता हाहाकार करते हुए भागे, रावण ने कहा अरे दुष्टो, तुम भागकर कहां जाओगे। देवताओं को ब्याकुल देखकर अंगद दौड़े और उछल कर रावण का पैर पकड़ लिया। अंगद ने रावण को पृथ्वी पर गिरा दिया। रावण को पकड़कर, पृथ्वी पर गिराकर और लात मारकर बालिपुत्र अंगद प्रभु श्रीराम के पास चले गये। इस बीच रावण संभल कर उठा और बड़े भयंकर शब्द से गरजने लगा। वह दर्प में आकर दसों हाथों में धनुष चढ़ाकर उन पर बहुत से बाण लेकर बरसाने लगा। उसने सब योद्धाओं को घायल और भय से व्याकुल कर दिया और अपना बल देखकर वह हर्षित होने लगा। तब श्री रघुनाथ जी ने रावण के सिर और भुजाएं बाण और धनुष से काट डाले। काटने के बाद भी वे उसी तरह बढ़ गये जैसे तीर्थ स्थल पर किये हुए पाप बढ़ जाते हैं अर्थात तीर्थ स्थल पर यदि कोई पाप करता है तो उसका बुरा परिणाम कई गुना बढ़ जाता है।
सिर भुज बाढ़ि देखि रिपु केरी, भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी।
मरत न मूढ़ कटेहुं भुज सीसा, धाए कोपि भालु भट कीसा।
बालि तनय मारुति नल नीला, बानर राज द्विबिद बलसीला।
बिटप महीधर करहिं प्रहारा, सोइ गिरि तरु गहि कपिन्ह सो मारा।
एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी, भागि चलहिं एक लातन्ह मारी।
तब नलनील सिरन्हि चढ़ि गयऊ, नखन्हि लिलार विदारत भयऊ।
रुधिर देखि विषाद उर भारी, तिन्हहिं धरन कहुं भुजा पसारी।
गहे न जाहिं करन्हि पर फिरहीं, जनु जुग मधुप कमल बन चरहीं।
कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी, महि पटकट भजे भुजा मरोरी।
पुनि सकोप दस धनु कर लीन्हे, सरन्हि मारि घायल कपि कीन्हे।
हनुमदादि मुरुछित करि बंदर, पाइ प्रदोष हरष दसकंधर।
मुरुछित देखि सकल कपि वीरा, जामवंत धायउ रनधीरा।
संग भालु भूधर तरु
धारी, मारन लगे पचारि पचारी।
भयउ क्रुद्ध रावन बलवाना, गहि पद महि पटकइ भट नाना।
देखि भालु पति निज दल घाता, कोपि माझ उर मारेसि लाता।
शत्रु के सिर और भुजाओं की बढ़ती देखकर रीछ-वानरों को बहुत ही क्रोध हुआ। वे सोचने लगे कि यह मूर्ख भुजाओं और सिरों के कटने पर भी नहीं मरता ऐसा कहकर भालू और वानर योद्धा क्रोध करके दौड़े। बालि पुत्र अंगद, मारुति हनुमान जी, नल-नील, वानर राज सुग्रीव जी आदि बलवान उस पर पेड़ और पर्वतों का प्रहार करने लगे। रावण उन्हीं वृक्षों और पहाड़ों को पकड़कर वानरों को मारने लगा, तब कोई वानर नाखूनों से शत्रु के शरीर को चीरकर भाग जाते हैं तो कोई उसे लातों से मारकर। तभी नल-नील रावण के सिरों पर चढ़ गये और नखांे से उसके माथे को फाड़ने लगे। खून देखकर रावण को बहुत कष्ट हुआ। उसने उनको पकड़ने के लिए हाथ फैलाए पर वे पकड़ में नहीं आ रहे हैं हाथों के ऊपर-ऊपर ही फिरते हैं मानो दो भौंरे कमलों के ऊपर विचरण कर रहे हों। रावण ने क्रोध में उछल कर दोनों को पकड़ लिया। पृथ्वी पर पटकते समय वे दोनों उसके हाथ मरोड़ते हुए भाग निकले। रावण ने क्रोध करके हाथांे मंे दस धनुष लिये और वानरों को वाणों से मारकर घायल कर लिया। हनुमान जी आदि सभी वानरों को मूच्र्छित करके और संध्या का समय पाकर रावण हर्षित हो गया। सभी वानरों को मूच्र्छित देखकर युद्ध में कुशल जाम्बवान दौड़े। जाम्बवान के साथ जो भालू थे वे भी वृक्ष और पहाड़ लेकर रावण को ललकारने लगे। वे रावण पर प्रहार करने लगे। इससे बलवान रावण क्रोधित हुआ और पैर पकड़-पकड़ कर अनेक योद्धाओं को पृथ्वी पर पटकने लगा। जाम्बवान ने अपने दल का बिध्वंस देखकर रावण की छाती में जोरदार लात मारी।
उर लात धात प्रचण्ड लागत विकल रथ ते महि परा।
गहि भालु बीसहुं कर मनहुं कमलन्हि बसे निसि मधुकरा।
मुरुछित बिलोकि बहोरि पद हति भालुपति प्रभु पहिं गयो।
निसि जानि स्यंदन घालि तेहि तब सूत जतन करत भयो।
मुरुछा विगत भालु कपि सब आए प्रभु पास।
निसिचर सकल रावनहि घेरि रहे अति त्रास।
छाती में लात का अति प्रचण्ड आघात लगते ही रावण व्याकुल होकर रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसने बीसों हाथों से भालुओं को पकड़ रखा था। उस समय लगता था कि रात के समय भौरें कमलांे के अंदर बसे हुए हैं। रावण को मूच्र्छित देखकर फिर लात मारकर रीछराज जाम्बवान प्रभु श्रीराम के पास आ गये। उधर, रात देखकर सारथी रावण को रथ में डालकर होश में लाने का प्रयास करने लगा। मूच्र्छा दूर होने पर वानर-रीछ प्रभु के पास आए। वहां राक्षसों ने भयभीत होकर रावण को घेर लिया।
तेही निसि सीता पहिं जाई, त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।
सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी, सीता उर भइ त्रास घनेरी।
उसी रात त्रिजटा ने सीता जी के पास जाकर युद्ध की सब कथा
सुनाई। शत्रु के सिर और भुजाओं
की वृद्धि का संवाद सुनकर सीता
जी के हृदय में बहुत भय उत्पन्न
हुआ। -क्रमशः (हिफी)

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