अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता(384) जब-जब राम मनुज तनु धरहीं

 

 

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

काग भुशुण्डि जी पक्षीराज गरुड़ को अपने मोह की कथा सुना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब प्रभु श्रीराम मनुष्य का शरीर धारण कर अयोध्या में जन्म लेते हैं, तब-तब मैं अयोध्या में जाकर उनकी बाल लीलाओं को देखता था। इसका मतलब है कि हमारे सनातन धर्म में सृष्टि और प्रलय की जो कथा बतायी गयी है, वह सत्य है। मन्वन्तर और युगों के 27 चक्र पूरे हो चुके हैं। काग भुशुंडि को किस तरह मोह हुआ था उसी प्रसंग को यहां बताया जा रहा है। अभी तो काग भुशुंडि जी गरुड़ जी को समझा रहे हैं-
सुनहु राम कर सहज सुभाऊ, जन अभिमान न राखहिं काऊ।
संसृत मूल सूल प्रद नाना, सकल सोक दायक अभिमाना।
ताते करहिं कृपानिधि दूरी, सेवक पर ममता अति भूरी।
जिमि सिसु तन ब्रन होइ गोसाईं, मातु चिराव कठिन की नाई।
जदपि प्रथम दुख पावइ रोवइ बाल अधीर।
ब्याधि नास हित जननी गनति न सो सिसु पीर।
तिमि रघुपति निज दास कर हरहिं मान हित लागि।
तुलसिदास ऐसे प्रभुहिं कस न भजहु भ्रम त्यागि।
कागभुशुण्डि जी कहते हैं कि गरुड़ जी, श्रीराम चन्द्रजी का सहज स्वभाव सुनिए। वे भक्त में अभिमान कभी नहीं रहने देते क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूपी संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों तथा समस्त शोकों को देने वाला है। इसीलिए कृपानिधि उसे दूर कर देते हैं। क्योंकि सेवक पर उनकी बहुत ही अधिक ममता है। हे गोसाईं, जैसे बच्चे के शरीर में फोड़ा हो जाता है तो माता उसे कठोर हृदय की भांति चिरा डालती है। यद्यपि बच्चा फोड़ा चिरते समय दुख पाता है और अधीर होकर रोता है तो भी रोग के नाश के लिए माता बच्चे की उस पीड़ा की तरफ ध्यान नहीं देती और फोड़े को चिरवा ही डालती है। उसी प्रकार श्री रघुनाथ जी अपने दास का अभिमान उसके हित के लिए हर लेते हैं, भले ही दास को पीड़ा का अनुभव होता रहे। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसे प्रभु को सभी प्रकार के भ्रम त्याग कर क्यों नहीं भजते।
राम कृपा आपनि जड़ताई, कहउँ खगेस सुनहु मन लाई।
जब जब राम मनुज तनु
धरहीं, भक्त हेतु लीला बहु करहीं।
तब तब अवधपुरी मैं जाऊँ, बाल चरित बिलोकि हरषाऊँ।
जन्म महोत्सव देखउँ जाई, बरष पांच तहं रहउँ लोभाई।
इष्टदेव मम बालक रामा, सोभा वपुष कोटि सत कामा।
निज प्रभु बदन निहारि निहारी, लोचन सुफल करउँ उरगारी।
लघु बायस बपु धरि हरि संगा, देखउँ बाल चरित बहु रंगा।
लरिकाईं जहं जहं फिरहिं तहं तहं संग उड़ाउँ।
जूठनि परइ अजिर महँ सो उठाइ करि खाउँ।
एक बार अतिसय सब चरित किए रघुबीर।
सुमिरत प्रभु लीला सोइ पुलकित भयउ सरीर।
हे पक्षीराज गरुड़ जी, श्री रामचन्द्र जी की कृपा और अपनी मूर्खता की बात सुना रहा हूं, मन लगाकर सुनिए। जब-जब श्री रामचन्द्र जी मनुष्य शरीर धारण करते हैं और भक्तों के लिए बहुत सी लीलाएं करते हैं, तब तब मैं अयोध्यापुरी जाता हूं और उनकी बाललीला देखकर हर्षित होता हूं। वहां जाकर मैं जन्म महोत्सव देखता हूं और भगवान की शिशुलीला में लुभाकर पांच वर्ष तक वहां रहता हूं। बालक रूप श्रीराम मेरे इष्टदेव हैं। जिनके शरीर में अरबों कामदेवों की शोभा है। हे गरुड़ जी, अपने प्रभु का मुख देखकर मैं नेत्रों को सफल करता हूं। छोटे से कौए का शरीर धरकर और भगवान के साथ-साथ फिरकर मैं उनके भांति-भांति के बाल चरित्रों को देखा करता हूं। लड़कपन में वे जहां जहां फिरते हैं, वहां वहां मैं साथ-साथ उड़ता हूं और आंगन में उनकी जो जूठन पड़ती है, वही उठाकर खाता हूं। एक बार श्री रघुबीर ने सब चरित्र बहुत अधिकता से किये। प्रभु की उस लीला का स्मरण करते ही काग भुशंुडि जी का शरीर प्रेमानंद से पुलकित हो गया।
कहइ भसुंड सुनहु खग नायक, राम चरित सेवक सुखदायक।
नृप मंदिर सुंदर सब भांती, खचित कनक मनि नाना जाती।
बरनि न जाइ रुचिर अंगनाई, जहं खेलंहिं नित चारिउ भाई।
बाल विनोद करत रघुराई बिचरत अजिर जननि सुखदाई।
मरकत मृदुल कलेवर स्यामा, अंग अंग प्रति छबि बहु कामा।
नव राजीव अरुन मृदु चरना, पदज रुचिर नख ससि दुति हरना।
ललित अंक कुलिसादिक चारी, नूपुर चारु मधुर रवकारी।
चारु पुरट मनि रचित बनाई, कटि किंकिनि कल मुखर सुहाई।
रेखा त्रय सुंदर उदर नामी रुचिर गंभीर।
उर आयत भ्राजत विविध बाल विभूषन चीर।
काग भुशुंडि जी कहने लगे कि हे पक्षीराज सुनिए, श्री रामचन्द्र जी का चरित्र सेवकों को सुख देने वाला है। अयोध्या का राजमहल सब प्रकार से सुंदर है। सोने के महल में नाना प्रकार के रत्न जड़े हुए हैं। सुंदर आंगन का वर्णन नहीं किया जा सकता, जहां चारों भाई नित्य खेलते हैं। माता को सुख देने वाले बाल विनोद करते हुए श्री रघुनाथ जी आंगन में विचर रहे हैं। मरकत मणि के समान हरिताभ श्याम और कोमल शरीर है। अंग-अंग में बहुत से कामदेवों की शोभा छायी हुई है। नवीन (लाल) कमल के समान, लाल-लाल कोमल चरण है। सुंदर अंगुलियां हैं और नाखून अपनी ज्योति से चन्द्रमा की कांति को भी हरने वाले हैं। उनके पैरों के तलवे में बज्र आदि (बज्र, अंकुश, ध्वजा और कमल) के चार सुंदर चिह्न हैं। चरणों में मधुर शब्द करने वाले सुन्दर नूपुर, मणियों, रत्नों से जड़ी हुई सोने की बनी हुई सुंदर करधनी का शब्द सुहावना लग रहा है। उदर पर सुंदर तीन रेखाएं (त्रिवली) है और नाभि सुंदर और गहरी है। विशाल वक्षस्थल पर अनेक प्रकार के बच्चों के आभूषण और वस्त्र सुशोभित हैं।
अरुन पानि नख करज मनोहर, बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर।
कंघ बाल केहरि दर ग्रीवा, चारु चिबुक आनन छबि सींवा।
कल बल बचन अधर अरुनारे, दुइ दुइ दसन बिसाद बरबारे।
ललित कपोल मनोहर नासा, सकल सुखद ससि कर समहासा।
उनकी लाल-लाल हथेलियां, नख और अंगुलियां मन को हरने वाली हैं बिशाल भुजाओं पर सुंदर आभूषण हैं। सिंह के बच्चे के समान कंधे और शंख के समान (तीन रेखाओं से युक्त) गला है। सुन्दर ठुड्डी है और मुख तो छवि की सीमा से परे है। कलबल (तोतले) बचन बोलते हैं। लाल-लाल ओंठ हैं। उज्ज्वल, सुन्दर और छोटी-छोटी
ऊपर और नीचे दो-दो दंतुलियां हैं। सुन्दर गाल, मनोहर नासिका और
सब सुखों को देने वाली कलापूर्ण
चन्द्रमा की किरणों के समान मधुर मुस्कान है। -क्रमशः (हिफी)

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