
(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
श्री हनुमान जी प्रभु को भगवान श्रीरामचन्द्र का आदर्श भक्त होने का गौरव प्राप्त है। पवन तनय का जन्म माता अंजनी के गर्भ में हुआ। उन्हें बालब्रह्मचारी, महावीर, बल बुद्धिनिधान, चतुर शिरोमणि, विद्वान, सेवा धर्म के आचार्य, सत्यवादी, स्वामिभक्त, भगवान के तत्व रहस्यगुण और प्रभाव को भली प्रकार से जानने वाले महाविरक्त सिद्ध परमप्रेमी भक्त और सदाचारी महात्मा की उपाधि प्राप्त है। यह युद्ध विद्या में परम निपुण, इच्छानुसार रूप बदलने की क्रिया में तीर्थ प्रभु के नाम, गुण, स्वरूप और लीला रूबड़ेरसिक है। इसी कारण ऐसी जन धारणा है कि जहां प्रभु श्रीराम की कथा संकीर्तन होता है वहां प्रभु के आदर्श भक्त हनुमान जी किसी न किसी रूप में अवश्यक उपस्थित हो जाते हैं। इसी तमाम कारणों से उन्हें गुणातीत भी कहा जाता है। उनके महान गुणों का वर्णन करना मानव के वश की बात नहीं है। महाकवियों द्वारा रचित रामायण, तुलसीकृत मानस के आधार पर उनके महान समर्थ चरित्र की चर्चा की जा सकती है।
मानस में वनगमन के समय सीताहरण के बाद प्रभु के लीलाकाल में पम्पा सरोवर पर श्रीराम लक्ष्मण से श्री हनुमान जी की औचक मुलाकात हुइ्र उस कथा का उल्लेख करते हुए महाकवि तुलसीदास जी मानस में लिखते हैं-
को तुम स्यामल गौर सरीरा।
क्षत्रिय रूप फिरहु बन बीरा।।
कठिन भूमि कोमल पद गामी।
कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।।
अध्यात्म रामायण में भी नारायण रूप श्रीराम अपने अनुज लखन से हनुमान जी की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए दिखते हैं। महाकवि बाल्मीकी जी लिखते हैं कि श्रीराम ने कपिवर हनुमान को वेदपाठी बताया है।
तुलसीकृत मानस में ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्रभु अपना पूरा परिचय प्रदान करते हुए हनुमान जी से स्वयं प्रश्न करते हैं कि हे ब्राह्मण, बतलाइये आप कौन हैं। प्रभु के मुंह से इतना सुनकर हनुमान जी भावविभोर हो उठते हैं और बहुत सम्भल कर उत्तर देते हैं-
मोर न्याउ मैं पूडा सांई।
तुम्ह पूछहु कस नर की नाई।।
तब माया बस फिरउं भुलाने।
ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना।।
सीता की खोज के अवसर पर श्रीराम चन्द्र जी को हनुमान के पराक्रम पर भारी भरोसा एवं विश्वास है जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण ने इस प्रकार किया-
न भूमौ नान्तरिक्षे वा नाम्बरेनामरालये।
नाप्सु वा गतिभंग ते पष्यामि हरिपंुगवः।।
त्वथ्येव हनुमन्नस्ति बलं बुद्धिः पराक्रमः।
देशकालानुवृतिश्म नयश्च नयापंडितः।।
(किश्किंधा काण्ड-443/3/2)
‘अध्यात्म रामायण’ में भी प्रभु श्रीराम ने आदर्श चरित्र हनुमान के गुणों की सराहना की और सीता माता की खोज के लिए अपनी मुद्रिका देकर भेजा-
अस्मिन् कार्ये प्रमाणं हि त्वमेप कपिसत्तमः।
जानामि स्तवं ते सर्व गच्छ पन्थाः शुभस्तवः।।
भक्त हनुमान के पराक्रम की चर्चा करते हुए वर्णित किया-
कवन सो काज कठिन जगमाही।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाही।।
भगवान श्रीराम के प्रति अनन्त भक्ति के साथ अद्भुत पराक्रम का सहज वर्णन ‘मानस’ में देखने को मिलता है-
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम।
राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम।।
देवताओं ने उनके बुद्धि बल की परीक्षा लेने के लिए सुरसा को भेजा, उसने पूरी सतर्कतापूर्वक परीक्षा ली, उसे भी हार मानकर बल, बुद्धि
निधान की उपाधि से विभूषित किया-
रामकाज सब करिहउ तुम बल बुद्धि निधान।
आसिस देइ गई सो हरसि चलेउ हनुमान।।
अध्यात्म रामायण, हनुमान जी के प्रियभाषी मधुर भाषाी होने का कुछ इस प्रकार वर्णन करता है-
येन में कर्ण पीयुशं बचनं समुद्रीरितम्।
स दुष्यतां महाभागः प्रियवादी ममाग्रतः।।
भगवान श्रीराम जी ने हनुमान को अपना सच्चा जन मानकर माता जानकी के पास भेजा, मां जानकी ने भी उनकी सच्चे ‘हरिजन’ के रूप में पहचान की-
हरिजन जानि प्रीती अति गाढ़ी।
सजल नयन पुलकावलि वाढ़ी।।
भक्त हनुमान भगवान के गुणों के सच्चे ज्ञाता के साथ ही उसके सच्चे प्रचारक और भक्त हैं जिसका प्रमाण ‘मानस’ में इस तरह देखने को मिलता है।
प्रनत पाल रघुनायक करूना सिंधु खरारि।
गए सरन प्रभु राखिहैं सब अपराध विसारि।
महावीर हुनमान जी के अदभुत पराक्रम का वर्णन मानस मंे तुलसी ने अपने पाठकों को कराते हुए जिस चतुराई से लंका दहन के संदर्भ को प्रस्तुत किया-
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा मुनि सिंधु मझारी।।
अध्यात्म रामायण लंका दहन के बाद सीता के सम्मुख हनुमान के आने की घटना की चर्चा करते हुए महाकवि वाल्मिकी जी लिखते हैं-
यद्येवं देवि में स्कं धमारोह क्षममात्रतः।
रामेण योजयिश्यामि मन्यसे यदि जानकि।।
लंका से रामदल में वापसी के बाद उनके गुणों का बखान जिस तरह रामा दल में हुआ, स्वयं जामवंत जी मानस में कहते हैं-
नाथ पवन सुत कीन्हि जो करनी।
सहसहुं मुंख न जाइ सो बरनी।।
माता सीता की खोज का कार्य हनुमान जी ने जिस पराक्रम से किया उससे उनके ‘महावीर’ होने का प्रमाण विश्व में प्रचलित सभी रामायणों में राम के मुख से उनकी सराहना की गई है। अध्यात्म रामायण ने भी इस घटना के संदर्भ में लिखा-
हनुमंस्ते कृतं कार्यदैवरिप सुदुश्करम।
उपकारं न पश्यामि तव प्रत्युपकारिणः।।
लंका विजय के बाद सबको श्रीराम ने मनोवांछित फल दिया। भक्तवात्सल्य हनुमान जी ने प्रभु से उनकी भक्ति का वरदान मांग कर सदैव के लिए अमर हो गये।
आज भी राम के स्वर्गरोहण के समय श्रीराम ने जो वरदान आदर्श भक्त हनुमान को दिया उसका सीधा उल्लेख पद्म पुराण में मिलता है, वाल्मीकि रामायण में लिखा है-कि श्रीराम परमधाम पधारते हुए कहते हैं-
मत्कथाः प्रचरिष्यन्ति यावल्लोके हरीश्वरः।
तात रमस्य सुपीतो मद्वाक्यतननुपालयन्।।
अर्थात ‘बान श्रेष्ठ! संसार में जब तक मेरी कथाओं का प्रचार रहे तब तक तुम भी मेरी आज्ञा का पालन करते हुए प्रसन्नतापूर्वक बिचरते रहो।’
धर्म नगरी ऋषिकेश में श्रीजयराम आश्रम अन्नक्षेत्र के पीठाधीश्वर व अनन्य हनुमान भक्त ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी हनुमान जयंन्ती पर अपने संदेश में कहते हैं कि श्रीराम नाम का संकीर्तन कलिकाल में लोक मंगलकारी है। इस कीर्तन से मानव आदर्श भक्त हनुमान की सहज कृपा प्राप्त करता है। ब्रह्मचारी जी का मानना है कि महावीर का चरित्र लोक मंगलकारी है। उनका मानना है कि महान पराक्रम से परिपूर्ण हनुमान जी सदैव धरा पर लोकमंगल के लिए ही विचरण करते हैं, इसीलिए गगन बिहारी सामथ्र्य के बावजूद आज भी उनकी शक्ति का प्रयोग लोक कल्याण के लिए है। (हिफी)