अध्यात्म

(महासमर की महागाथा-37) सर्वात्मा का अनुभव ही ज्ञान

(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)
इसी प्रकार का, परंतु इससे कहीं बढ़कर सुंदर दृष्टांत युधिष्ठिर का है। राजपाट करने के पश्चात् पाँचों भाइयों ने यह निश्चय किया कि हिमालय की बर्फ में जाकर गल जाएँ। द्रौपदी को साथ लेकर वे सब हिमालय की ओर चल पड़े। उस रास्ते पर चलते हुए पीछे मुड़कर देखना पाप समझा जाता था। सबसे पहले द्रौपदी भूख एवं प्यास के कारण थक गई और गिर पड़ी। उसने प्राण छोड़ दिए। फिर आगे चलते-चलते पहले तो सहदेव और नकुल मृत होकर गिर पड़े, फिर अर्जुन और भीम। अब युधिष्ठिर अकेले रह गए। एक कुत्ता शुरू से उनके साथ चला आ रहा था। अंत में युधिष्ठिर स्वर्गलोक के द्वार पर पहुँच गया। उसके लिए दरवाजा खोला गया। युधिष्ठिर ने कुत्ते को अंदर प्रवेश करने के लिए इशारा किया।
इस पर पहरेदारों ने कहा, नीच कुत्ता स्वर्गलोक में कैसे प्रविष्ट हो सकता है ? युधिष्ठिर बोला, परंतु मैं तो अपने साथी को छोड़कर अकेला इस लोक में पाँव नहीं रखूँगा। बहुत वाद-विवाद के पश्चात् कहा गया, कुत्ता अंदर जा सकता है वह यह कि अपने सारे पुण्यों के फल आप कुत्ते को दे दें। ज्यों ही युधिष्ठिर ने इसे स्वीकार किया त्यों ही सामने से परदा हट गया और दृश्य बदल गया। युधिष्ठिर की जय-जयकार होने लगी। द्रौपदी और चारों भाई युधिष्ठिर के सामने खड़े थे। कुत्ता धर्मराज के रूप में युधिष्ठिर के सामने था।
मजहब का असली और सच्चा तत्त्व तो यह है कि किसी प्रकार मनुष्य सर्वात्मा को अपने अंदर अनुभव करके उसके साथ अपने संबंध को पहचान सके। यही ज्ञान है और यही कर्म, भक्ति आदि का उद्देश्य है। यदि हम मजहब का तथ्य इस अर्थ में जान लें तो मजहब के नाम पर पारस्परिक विद्वेष की अग्नि क्यों भड़के। वस्तुस्थिति यह है कि मजहब का अर्थ कुछ और ही समझा जाता है। संस्कृत या हिंदी में मजहब के लिए कोई शब्द नहीं है। बात यह है कि इस देश में कभी कोई मजहब न था। मजहब का तत्त्व या बीज तो अनादि है और यहाँ वह न केवल मौजूद था, बल्कि यहीं से वह शेष संसार में फैला परंतु विभिन्न मजहब मनुष्य की कल्पनाएँ हैं और वे कुछ ही समय से शुरू हुए हैं। ईसाई मजहब को ही लीजिए। आजकल इसकी सैकड़ों शाखाएँ हैं, यद्यपि आरंभ में यह एक था। इसलाम की सभी शाखाएँ एक ही मजहब से निकली हैं। वृक्ष का तना एक होता है, शाखाएँ असंख्य। इसी प्रकार वर्तमान विभिन्न मजहब वास्तविक मजहब के भिन्न-भिन्न रूप हैं।
मजहब शब्द अरबी भाषा की उसी धातु से निकला है, जिससे तहजीब निकला है। अंग्रेजी शब्द रिलीजन का अर्थ विश्वास है। हिंदी भाषा में इसके लिए या तो मत शब्द इस्तेमाल किया जाता है या धर्म (कर्तव्य के अर्थ में)।
वर्तमान सभी मजहब, जो वास्तव में मत ही हैं, पुरातनकाल में तहजीब या उन्नति प्राप्त हो चुकने के बाद उत्पन्न हो सकते थे। सेमेटिक मत पहले विशिष्ट प्रश्नों पर अपना निश्चित विश्वास ठहरा लेते हैं, बाद में उन्हीं को जानने या सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। इसके विपरीत, हिंदू दार्शनिक या ऋषि मजहब के तत्त्व को ज्ञान का नाम देते हैं। वे किसी काल्पनिक परमात्मा अथवा आत्मा को लेकर नहीं चलते। वे जिस ब्रह्मांड को अपने चारों ओर देखते हैं, उसे समझने की कोशिश करते हैं और केवल उन्हीं बातों पर विश्वास करते हैं, जिनको वे अपनी खोज के द्वारा अच्छी तरह जान लेते हैं।
वेदों तथा उपनिषदों का अध्ययन बहुत शिक्षाप्रद है। इनसे मालूम होता है कि किस प्रकार मनुष्य सृष्टि के आदि ऋषि-जिनकी बुद्धि तथा हृदय शीशे की तरह साफ थे, क्योंकि उनमें विषय-वासना की बू तक पैदा नहीं हुई थी- अनंत ब्रह्मांड को अपने सामने फैला देखकर महान् आश्चर्य अनुभव करते हैं और किस प्रकार उसके अंदर खोज करते-करते वे अंत में ब्रह्म तक पहुँचते हैं। वेद में कई मंत्र इस प्रकार मिलते हैं, कस्मै देवाय हविषा विधेम? अर्थात् हम किस देवता के लिए आहुति दें?
उपनिषदों के अंदर प्रश्नोत्तर का सिलसिला बड़ा उत्तम और मनोरंजक है। ऋषि सबसे पहले बाह्य संसार से चलकर अंत में उसके अंदर काम करती हुई शक्ति ब्रह्मा तक पहुँचे। उनके दार्शनिक विचार साधारण होकर विशेष सिद्धांतों के रूप में संसार में फैल गए।
यह मजहब क्या है ? प्रायः हर एक मजहब इन पाँच अंगों से बनता है- राजनीति, दर्शन, आचार नीति, व्यक्तिगत किस्से और कुछ अज्ञात बातों पर विश्वास । सब मजहबों के एक हिस्से का संबंध राजनीतिक और सामाजिक तथ्यों से होता है। इंग्लिश चर्च तो केवल राजनीतिक संस्था सी है, जिसका प्रधान इंग्लैंड का सम्राट् है। दूसरे हिस्से में नैतिक उपदेश इत्यादि होते हैं, जिनको बताकर उस मजहब की उत्तमता को प्रकट करने का प्रयत्न किया जाता है। हर एक मजहब ने आत्मा के आरंभ और अंत के विषय में अपना मत बना रखा है। यह उसका दर्शन है। इनके अतिरिक्त प्रत्येक मजहब में उसके प्रवर्तक तथा नेताओं के बारे में किस्से-कहानियाँ, सच्चे या अतिरंजित भी पाए जाते हैं।
किसी जाति या राष्ट्र की राष्ट्रीयता या जातीयता उसकी भाषा, साहित्य, इतिहास, दर्शन आदि अंगों से बनी होती है। पेगन’ कही जानेवाली प्राचीन जातियों की सभ्यता और वर्तमान मजहबों-यहूदियों के मजहब, ईसाइयत और इसलाम में इतना अंतर है कि ये मजहब अज्ञेय बातों में विश्वास पर बहुत जोर देते हैं और प्राचीन जातियाँ अपनी रीतियों पर। इस फर्क को छोड़कर देखें तो पेगन सभ्यता और वर्तमान मजहब के अर्थ एवं प्रयोग एक जैसे मालूम पड़ते हैं।
एक नीति-शास्त्र कहता है, जो मनुष्य धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है। जो मनुष्य धर्म को मारता है, धर्म उसका नाश कर देता है। राष्ट्र का धर्म भी राष्ट्र का रक्षक है। मजहब और सभ्यता भी राष्ट्र के
रक्षक हैं। वास्तव में धर्म, मजहब,
तहजीब या सभ्यता का अर्थ एक ही है। -क्रमशः (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button