
(हिन्दुस्तान समाचार फीचर)
‘शिवयोग’ के द्वारा सारा संसार अपना लगने लगता है। जब ‘शिव’ स्वयं अपने को समझोगे तब समभाव पैदा हो जाएगा।
आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। यह भाव लाना कि मैं बड़ा वह छोटा, ऐसा सोचना मूर्खता है। यह हमेशा के लिये, हर एक के लिये गौरतलब है कि -‘तुम में राम, मुझमें राम समाया है, करले सब स्वीकार जगत में कोई नहीं पराया है….।
जब सेवा करो तो उसके पास पलट कर भी न जाना अगर कुछ करो तो उसके पहचान में ये मत कहने जाना कि ये मैंने किया है। बल्कि उसको धन्यवाद देना कि मुझे इतना सक्षम बनाया कि मैं कुछ कर सका। हे प्रभु मुझे इतना सक्षम बना कि मैं कुछ कर सकूं। नमामि शमीशांम् निर्वाण रूप…..ं नमः शिवाय, नमः शिवाय…।
लेकिन ये तुम्हारी सेवा तब मानी जाएगी जब सेवा जड़ से शुरू करोगे। जड़ यानी अपने घर से सास बहू की सेवा करे, बहू, सास की सेवा करे, बेटा पिता की सेवा करे, पिता बेटा की सेवा करे उस समय भूल जाए उस अहंकार को। मंै पिता हूं, मैं सास हूं, मैं बहू हूं, शरीर कितने दिन का है किस जन्म में तुम क्या थे तुम्हंे मालूम ही नहीं तो इस जन्म मैं तुम क्या पकड़ के बैठे हो। (आइ एम नाॅट दिस बाॅडी, आइ एम दा शोल, शिवो नमः आइ एम शिवाय)। तो भगवान शिव सबकी सेवा करता है, वो परमात्मा वो शिव हर छण तुम्हेें जो चाहिए, तुम्हे पानी प्यास लगी है, तुम्हें पानी देता है। तुम्हें भूख लगी है वो तुम्हें भोजन देता है। वस्त्र चाहिए, तो वस्त्र देता है। तुम्हें मिनिस्टर बनना है तुम्हें मिनिस्टर देता है क्या नहीं देता, वो कहता है मैं भगवान हूं मैं नहीं दूंगा बस तुम ही मेरे पर जल चढ़ाते जाओ, दूध चढ़ाते जाओ मैं सास हूं, तुम्हें नहीं दूगीं, तुम मुझे दोगी। जब तुम कुछ हो जाते हो तब तुम कुछ भी नहीं रहतें बेकार हो जाते हो जब तुम कुछ नहीं होते तब तुम शिव हो जाते हो।
आइ एम दिस बाॅडी, आइ एम दा शोल, आइ एम शिवः……..सेवा सिमरण किजिए। सिमरन कहा करते हो अपने घर में कि बाहर, घर में करते हो, घर में स्थान बनाते हो तो सिमरण करने के लिए साधना स्थली घर में बनाते हो तो सेवा करने के लिए भी निष्काम सेवा से शुरुआत करो, अहंकार तुम्हारे मन में न रहे। एक अम्मा आ के बोली अरे मैं कितना खाना बनाती हूं मैं उस घर में बहू बन के गयी और ससुर जी बिमार हुए मैंने कितना बढ़िया बढ़िया उनको खाना बनाकर खिलाया उन्होंने मेरा ध्यान ही नहीं रखा। अरे पगली जो तूने बनाया तुझे कितनी कृपा मिली और अब उसका मोल मांग लिया। अनमोल का मोल मांग लिया तो क्या लिया। सेवा अनमोल है। सेवा करने का मौका मिले कही भी तो चूकना नहीं , उसमें ये न लाना ये मर्यादा है। ये विधि विधान है आत्मा जब अन्नत होती है, जब सर्वत्र होती है जब निगुण निराकार होती है। तब कौन सी विधी अपनाओगे। कोई विधि होती है। कोई सिस्टम होता है कुछ नहीं, अन्नत शाश्वत में हूं। बस आइ एम देट आइ एम, वाट वेयर आइ केन डू, आइ वुड लव टू डू बीकाॅम आइ एम दा अनकन्डीशनर लव आॅफ शिवा। तुम्हारा अपना है ही क्या तुम्हारा वास्तव में मैं अपना है। प्रेम अनकंडिशनर लव। तुम कहते हो धन कमा के लाए हो धन किसी ओर के हाथ में था कुछ छण पहले किसी और के हाथ में था अब तुम्हारे हाथ में आया, कुछ छण बाद किसी और का हो जाएगा। लेकिन जो प्रेम बना है चक्र से तुम्हारे में निकलता है वो अन्नत है वो तुम्हारा है अगर तुम्हें देना है तो गिव अनकंडिशनर अपने परिवार में देना शुरू करो तो तुम्हारे रोग खतम हो जाएंगे। जब ये अनाहद चक्र बंद हो जाता है क्यों बंद हो जाता है भय से, भय क्यों होता है जब मुझे किसी से अटैचमैन्ट होता है, मुझे ये डर है कि छिन न जाए यानि कि विश्वास नहीं है। इसलिए भय पैदा होता है। घृणा पैदा होती है क्यों होती है क्योंकि मैं किसी से कुछ उम्मीद करता हूं।
वो मुझे प्राप्त नहीं होती। आइ हेट डैट परशन, वाई शुड आइ एक्सपेट ऐनीथिंग एनीवन इनफाइनाइट एनर्जी, वेन आइ एम दा र्सोस आफ इनफाइनाइट एनर्जी। उसकी कृपा मेरे भीतर अनंत बह रही है। तुम मुझे कुछ देने के बदले मैं देने की चेष्ठा करता हूं अगर परिवार का सभी सदस्य सभी से प्रेम करने लगा और यही इच्छा करने लगे कि मैं इनको क्या दे दूं। परिवार सुखी हो जाएगा और जिस परिवार में हर सदस्य खुश होता है। वहां लक्ष्मी का स्थायी वास होता है। याद रखो उस बात को। सम्पन्नता चाहते हो, स्वास्थ्य चाहते हो तो प्रसन्नता जितना हो सके उसे परिवार में लेकर आना, लव एवरीवन, क्योंकि तुम प्यार का सागर हो……… उनको प्यासे क्यों रखना क्योंकि तुम्हारे पास अन्नत भण्डार है जितना तुम दोंगे उतना अध्यात्म में तुम ऊपर होगे। किसी ने पूछा मैं अध्यात्म में उन्नति कैसे करूं। मैं बोला जितना प्यार तुम कर सकते हो उतना करो और शत्रु जिसको समझते हो उसको शत्रु न समझना उसको भी प्यार करना उतना ही जितना सब को करते हो अगर समभाव आ गया तो उसका मतलब तुम्हारी अध्यात्मिक उन्नति हो गयी। अगर समभाव नहीं आया तो तुम्हारी……।
तो ये मैं तुमको याद कराना चाहता हूं। तुम्हारा अस्तित्व क्या है? तुम कौन हो? तुम प्यार का सागर हो तेरी धूल के प्यासे हैं ऊं नमः शिवाय,ऊं नमः शिवायऊं नमः शिवाय,…….
तुम सबको प्यार करना और दान की शुरुआत होती है सबसे पहले घर से होती है और अपने पूरे परिवार को पूरे सदस्य को प्यार करों जो ज्यादा आश्रित है जो ज्यादा कमजोर हैं उसका ज्यादा ध्यान रखना सभी में वहीं हैं जो तुम में है। जो तुम में है ,वो सभी में है तो ये भाव लाना मुर्खता की बात है कि मंै बड़ा वो छोटा, या वो बड़ा मै छोटा। जब सभी में वही राम है। तुम में राम मुझमे राम समाया है कर ले सब स्वीकार जगत में कोई नहीं पराया है। (हिफी)