अध्यात्म

#भक्ति की ताकत

"ॐ भगवते वासूदेवाय नम:"

 

एक औरत रोटी बनाते बनाते “ॐ भगवते वासूदेवाय नम:” का जाप कर रही थी, अलग से पूजा का समय कहाँ निकाल पाती थी बेचारी, तो बस काम करते करते ही ध्यान कर लेती थी।
तभी एकाएक धड़ाम से जोरों की आवाज हुई और साथ मे दर्दनाक चीख। कलेजा धक से रह गया जब आंगन में दौड़ कर झांकी तो आठ साल का चुन्नू चित्त पड़ा था, खुन से लथपथ। मन हुआ दहाड़ मार कर रोये। परन्तु घर मे उसके अलावा कोई था नही, रोकर भी किसे बुलाती, फिर चुन्नू को संभालना भी तो था। दौड़ कर नीचे गई तो देखा चुन्नू आधी बेहोशी में माँ-माँ की रट लगाए हुए है।
अन्दर की ममता ने आँखों से निकल कर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया। फिर 10 दिन पहले करवाये अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बावजूद ना जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी कि चुन्नू को गोद मे उठा कर पड़ोस के नर्सिंग होम की ओर दौड़ी। रास्ते भर भगवान को जी भर कर कोसती रही, बड़बड़ाती रही, “हे कन्हैया क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा, जो मेरे ही बच्चे को..।”
खैर डॉक्टर साहब मिल गए और समय पर इलाज होने पर चुन्नू बिल्कुल ठीक हो गया। चोटें गहरी नही थी, ऊपरी थीं तो कोई खास परेशानी नही हुई।
रात को घर पर जब सब टीवी देख रहे थे तब उस औरत का मन बेचैन था। भगवान से विरक्ति होने लगी थी। एक माँ की ममता प्रभुसत्ता को चुनौती दे रही थी।
उसके दिमाग में दिन की सारी घटना चलचित्र की तरह चलने लगी। कैसे चुन्नू आँगन में गिरा की एकाएक उसकी आत्मा सिहर उठी, कल ही तो पुराने चापाकल का पाइप का टुकड़ा आँगन से हटवाया है, ठीक उसी जगह था जहाँ चिन्टू गिरा पड़ा था। अगर कल मिस्त्री न आया होता तो ? उसका हाथ अब अपने पेट की तरफ गया जहाँ टाँके अभी हरे ही थे, ऑपरेशन के। आश्चर्य हुआ कि उसने 20-22 किलो के चुन्नू को उठाया कैसे, कैसे वो आधा किलोमीटर तक दौड़ती चली गयी ? फूल सा हल्का लग रहा था चुन्नू। वैसे तो वो कपड़ों की बाल्टी तक छत पर नही ले जा पाती।
फिर उसे ख्याल आया कि डॉक्टर साहब तो 2 बजे तक ही रहते हैं और जब वो पहुँची तो साढ़े 3 बज रहे थे, उसके जाते ही तुरन्त इलाज हुआ, मानो किसी ने उन्हें रोक रखा था।
उसका सिर प्रभु चरणों मे श्रद्धा से झुक गया। अब वो सारा खेल समझ चुकी थी। मन ही मन प्रभु से अपने शब्दों के लिए क्षमा माँगी।
तभी टीवी पर ध्यान गया तो प्रवचन आ रहा था:- प्रभु कहते हैं, “मैं तुम्हारे आने वाले संकट रोक नहीं सकता, लेकिन तुम्हें इतनी शक्ति दे सकता हूँ कि तुम आसानी से उन्हें पार कर सको, तुम्हारी राह आसान कर सकता हूँ। बस धर्म के मार्ग पर चलते रहो।”
उस औरत ने घर के मन्दिर में झाँक कर देखा, कन्हैया मुस्कुरा रहे थे।

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