अध्यात्म

ऋतुराज बसंत व ज्ञान की देवी सरस्वती

या कुंदेन्दु तुषार हार घवला या शुभ्रवस्त्रावृता

हमें आनंद के साथ ज्ञान प्राप्त करना चाहिए यही भारतीय संस्कृति है। बसंत के मौसम में जब पुष्पों से घरती सजी होती है, तभी ज्ञान की देवी माता सरस्वती का जन्म होता है। इसीलिए मां सरस्वती को लेकर कहा गया है –
या कुंदेन्दु तुषार हार घवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वर दण्डमंडित करा या श्वेत पद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृति भिर्देवैः सदा वन्दिता
सामापातु सरस्वती भगवर्ता निःशेषजाड्या पहा
अर्थात जो विद्या देवी कुंद के पुष्प, शीतल चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की हैं और जिन्होंने श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किये हैं, जिनके हाथ में वीणा शोभायमान है और जो श्वेत कमल पर विराजित हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सभी देवता जिनकी नित्य वंदना करते हैं, वही अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाली माँ भगवती हमारी रक्षा करें।

हमारे देश में बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है। इसकी शुरूआत बसंत पंचमी से होती है। यह प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन से सर्दी के महीने का अंत हो जाता है। वसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां सरस्वती ही बुद्धि और विद्या की देवी हैं। वसंत पंचमी को हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
वैसे तो वसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती है लेकिन पूर्वान्ह का समय पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। सभी शिक्षा केंद्रों, विद्यालयो में पूर्वान्ह के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। भारतीय मौसम में 6 ऋतुएं होती हैं। बसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। ऋतुराज वसंत का बहुत महत्व है। ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए बौर, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है। यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है। इंसानों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। यदि हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। यही कारण है कि यह त्योहार हिन्दुओं के लिए बहुत खास है। इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं। इसके साथ ही वसंत मेले आदि का भी आयोजन किया जाता है। प्रयागराज में इसबार कुंभ का आयोजन हो रहा है और बसंत पंचमी भी मुख्य स्नान पर्व होगा।
माना जाता है कि सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की। इसी बीच उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है। इस पर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री, जिसके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वरमुद्रा तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी, प्रकट हुई। ब्रह्माजी ने वीणावादन का अनुरोध किया जिस पर देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जलधारा कोलाहल करने लगी, हवा सरसराहट करने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया। मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है। ब्रह्माजी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति वसंत पंचमी के दिन की थी। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मानकर पूजा-अर्चना की जाती है। वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। प्रातरूकाल सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के उपरांत मां भगवती सरस्वती की आराधना का प्रण लेना चाहिए। इसके बाद दिन के समय यानी पूर्वाह्नकाल में स्नान आदि के बाद भगवान गणेशजी का ध्यान करना चाहिए। स्कंदपुराण के अनुसार सफेद पुष्प, चंदन, श्वेत वस्त्रादि से देवी सरस्वतीजी की पूजा करना चाहिए। सरस्वतीजी का पूजन करते समय सबसे पहले उनको स्नान कराना चाहिए। इसके पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद फूल माला चढ़ाएं। सफेद मिठाई से भोग लगाकर सरस्वती कवच का पाठ करें। आपका बच्चा यदि पढ़ने में कमजोर है तो वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करें एवं उस पूजा में प्रयोग की गई हल्दी को एक कपड़े में बांधकर बच्चे की भुजा में बांध दें। मां सरस्वती को वाणी की देवी कहा जाता है इसलिए मीडिया, एंकर, अधिवक्ता, अध्यापक व संगीत आदि के क्षेत्र से जुड़े लोगों को वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा जरूर करनी चाहिए। माता सरस्वती की पूजा-अर्चना आदि करने से मन शांत होता है व वाणी में बहुत ही अच्छा निखार आता है। यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे परीक्षा में अच्छे नंबर लाएं तो आप अपने बच्चे के कमरे में मां सरस्वती की तस्वीर अवश्य लगाएं। जो लोग बहुत ही तीखा बोलते हैं और जिस कारण से उनके बने-बनाए काम भी बिगड़ जाते हैं, उन लोगों को मां सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
इसीलिए देश के हर कोने में बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की आराधना विशेष रूप से की जाती है। पश्चिम बंगाल में सरस्वती पूजा का ज्यादा महत्व देवी सरस्वती हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी है, धर्मग्रंथों और पुराणों में इनके रूप-रंग को शुक्लवर्णा और श्वेत वस्त्रधारिणी बताया गया है, जो वीणावादन के लिए तत्पर और श्वेत कमल पुष्प पर आसीन रहती हैं।
देवी सरस्वती की आराधना केवल भारत और नेपाल में ही नहीं, बल्कि इंडोनेशिया, बर्मा (म्यांमार), चीन, थाईलैंड, जापान और अन्य देशों में भी होती है। देवी सरस्वती को बर्मा (म्यांमार) में थुयथदी, सूरस्सती और तिपिटका मेदा ), चीन में बियानचाइत्यान , जापान में बेंजाइतेन  और थाईलैंड में सुरसवदी  के नाम से जाना जाता है।इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ज्ञान की पूजा का महत्व सदियों से है और यह आगे भी रहेगा। यही कारण है कि दुनिया के लगभग हर देश ज्ञान की देवी और देवताओं परिकल्पना की गई है। जर्मनी में स्नोत्र को ज्ञान, सदाचार और आत्मनियंत्रण की देवी माना गया है। वहीं फ्रांस, स्पेन, इंग्लैंड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया सहित कई यूरोपीय देशों में ज्ञान और शिल्प की देवी के रूप में मिनर्वा का स्मरण किया जाता है। उसे कताई-बुनाई, संगीत, चिकित्सा शास्त्र और गणित सहित रोजमर्रा के कार्यो में निपुणता की देवी माना गया है। प्राचीन ग्रीस में एथेंस शहर की संरक्षक देवी एथेना को ज्ञान, कला, साहस, प्रेरणा, सभ्यता, कानून-न्याय, गणित, जीत की देवी माना गया. जापान की लोकप्रिय देवी बेंजाइतेन को हिंदू देवी सरस्वती का जापानी संस्करण कहा जाता है। इस देवी के नाम पर जापान में कई मंदिर हैं। इसलिए बसंत पंचमी पर बसंती मौसम का आनंद उठाते हुए मां सरस्वती की आराधना करें। इससे हमें ज्ञान की प्राप्ति होगी। (हिफी)

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