अध्यात्म

पुत्रों की दीर्घायु का व्रत सकट चौथ

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)
पति की दीर्घायु के लिए जिस तरह वट सावित्री का व्रत किया जाता है। उसी तरह पुत्र की मंगल कामना के लिए सकट चौथ का उपवास रखने तथा गौरी-गणेश की पूजा का विधान है। सकट चौथ को सकट चतुर्थी, तिलकुटा चौथ, तिलकुट, वक्रतुण्ड चतुर्थी, विनायक चतुर्थी और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत-उपवास माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। तदनुसार इस बार 17 जनवरी को पुत्रवती महिलाएं सकट चौथ का व्रत रखकर अपने पुत्रों की मंगल कामना करेंगी। देश के अलग-अलग भागों में विनायक चतुर्थी को विभिन्न रूप में मनाया जाता है। कुछ महिलाएं गोधूलि वेला में गणपति और गौरी की पूजा कर व्रत का पारण कर लेती हैं जबकि कुछ स्थानों पर चंद्रमा का अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। इस बार 17 जनवरी को चन्द्रोदय का समय रात 9 बजकर 9 मिनट पर होना बताया गया है।
सकट चौथ व्रत का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह व्रत हर वर्ष माघ मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर रखा जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन व्रत 17 जनवरी को रखा जाएगा। इसे तिलकुट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करती हैं। व्रत का समापन चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करने के बाद होता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के माध्यम से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और इससे जुड़ी विधियों के बारे में।
सकट चौथ का व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य, और उन्नति के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और पूरे विधि-विधान से भगवान गणपति की पूजा करती हैं। शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा की पूजा होती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। भगवान गणेश को तिलकुट का भोग अर्पित करना इस व्रत की परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मान्यता है कि गणपति की पूजा और व्रत रखने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
धार्मिक ग्रंथों में सकट चौथ व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन भगवान गणेश के साथ सकट माता की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह व्रत माता और संतान के संबंधों को मजबूत करता है और संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस व्रत को रखने से परिवार में समृद्धि आती है और जीवन के कठिन समय में भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही, चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करने से चंद्रदेव की कृपा प्राप्त होती है, जो मानसिक शांति और समृद्धि का प्रतीक है। सकट का व्रत भगवान गणेश की पूजा को समर्पित होता है। कहा जाता है कि यदि सच्चे भाव से सकट का उपवास रखा जाए तो संतान सुख की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है, लेकिन इस दिन सकट व्रत कथा का पाठ करना बेहद जरूरी होता है, इससे उपवास का संपूर्ण फल प्राप्त होता है, सकट के व्रत की कथा को लेकर कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव जी ने कार्तिकेय और गणेश जी से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है ? शिव जी की यह बात सुनकर दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम समझा।
गणेश जी और कार्तिकेय के जवाब सुनकर महादेव ने कहा कि तुम दोनों में से जो भी पहले इस पृथ्वी की परिक्रमा करके वापिस लोटेगा वहीं देवताओं की मदद करने जाएगा।
शिव जी के इस वचन को सुनकर कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए…लेकिन इस दौरान भगवान गणेश विचारमग्न हो गए कि वे चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इसमें बहुत समय लग जाएगा।
इस समय गणेश जी को फिर एक उपाय सूझा वह अपने स्थान से उठकर अपने माता-पिता की सात परिक्रमा करके वापस बैठ गए। वहीं पृथ्वी की पूरी परिक्रमा करके कार्तिकेय भी लौट आए और स्वयं को विजयी बताने लगे। जब भोलेनाथ ने गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा, तो गणेश जी ने अपने उत्तर मे कहा कि-माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। गणेश जी के जवाब सुनकर शिव जी ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इतना ही नहीं शंकर जी ने कहा कि जो भी साधक चतुर्थी के दिन तुम्हारा श्रद्धा पूर्वक पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
चतुर्थी तिथि के देवता के रूप में सुखकर्ता श्रीगणेश सर्वत्र पूजे जाते हैं। संतानों को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ या माघी चौथ भी कहते हैं। इस दिन तिल का दान और सेवन करने का विशेष महत्व है। धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार इस व्रत और दान से कष्टों का निवारण होता है। सुख-समृद्धि बढ़ती है और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अर्थात, जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से तिल का दान करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार तिल का दान करने से व्यक्ति के सभी जाने-अनजाने पापों का नाश होता है और पितृदोष से मुक्ति मिलती है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के पसीने से उत्पन्न तिल और माता लक्ष्मी के द्वारा प्रकट किए गन्ने के रस से बने गुड़ का तिलकुटा बनाकर उसे दान करना चाहिए। व्रत करने वालों के लिए यदि संभव हो तो दस महादान जिनमें अन्नदान, नमक का दान, गुड का दान, स्वर्ण दान, तिल का दान, वस्त्र का दान, गौघृत का दान, रत्नों का दान, चांदी का दान और दसवां शक्कर का दान करें। ऐसा करके प्राणी दुःख-दरिद्र, कर्ज, रोग और अपमान के विष से मुक्ति पा सकता है। इस दिन गाय और हाथी को गुड़ खिलाने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। (हिफी)

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