
हिमालय पर्वतमाला में ‘इंद्रकील’ बड़ा पावन और शांत स्थल था। ऋषि-मुनि वहां तपस्या किया करते थे।
एक दिन पांडु पुत्र अर्जुन उस स्थल पर पहुंच गए। अर्जुन को अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित देखकर मुनि कुमारों में सुखर-पुसिर होने लगी। एक मुनि कुमार बोला, ‘‘यह अनजान व्यक्ति कौन है,?’’
‘‘कोई भी क्यों न हो, इसे इस पवित्र स्थान पर अस्त्र-शस्त्र नहीं लाने चाहिए थे।’’ दूसरा बोला।
ऋषि कुमार नदी के किनारे तक अर्जुन के पीछे-पीछे गए और यह देखने लगे कि वह करता क्या है? अर्जुन ने अपने अस्त्र-शस्त्र उतारे और वहां बने शिवलिंग के सामने बैठ गया। उसने बड़े मनोयाग से भगवान शिव की आराधना की, शिवलिंग पर फूल चढ़ाए।
तभी एक मुनि कुमार अर्जुन को पहनान गया। बोला, ‘‘अरे ये तो पांडु पुत्र अर्जुन हैं। मैंने इसके शौर्य के बहुत चर्चे सुने हैं। इस समय वह विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है।’’
‘‘पर यह यहां आया किसलिए है?’’ दूसरे मुनिकुमार ने जिज्ञासा प्रकट की।
‘‘कपटी दुर्योधन के साथ जुए में सब कुछ हारकर पांडव बनवास कर रहे हैं।’’ पहले वाले मुनि कुमार ने बताया।
‘‘तब तो ये भगवान शिव से वरदान मांगने आए होंगे?’’ तीसरे ने कहा।
कई महीने बीत गए। अर्जुन तन्मय होकर -ऊँ नमः शिवाय’ का जाप करते रहे, शिवलिंग के आगे। उनके शरीर से तेज निकलकर वातावरण को गरम करने लगा। इस कारण ऋषि-मुनियों को मंत्र-पूजा करने में बाधा होने लगी। देखते ही देखते सारा जंगल उस ताप से तपने लगा। घबराकर ऋषि-मुनि कैलास गए जहां शिव का वास है। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की, ‘‘हे शिव शंकर, हे अभयंकर, अर्जुन की मनोकामना पूरी करो और हमारी पीड़ा हरो।’’ शिव ने ऋषियों को आश्वस्त किया तो ऋषि-मुनि अपने स्थान को लौट गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने शिव से पूछा, ‘‘स्वामी! अर्जुन को क्या चाहिए?’’
‘‘देवी! उसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र चाहिए।’’
‘‘परंतु क्या वह दिव्यास्त्रों का प्रयोग कर लेगा।?’’
‘‘मैं उसकी परीक्षा लेकर देखूंगा।’’ शिव बोले, ‘‘मैं किरात के भेष में जाकर उससे युद्ध करूंगा।’’ मैं भी साथ चलूंगी।’’ पार्वती बोली।
‘‘चलो, लेकिन भेष बदलकर।’’
‘‘तो ठीक है, मैं किरात-नारी बन जाती हूं।’’
यह बात जब शिव के गणों को मालूम हुई तो उन्होंने शिव से प्रार्थना की, ‘‘प्रभु! हमारी इच्छा है कि हम भी इस युद्ध को देखें। हमें भी साथ ले चलें।’’
‘‘चलो किंतु तुम्हंे किरात-नारियों को भेष धारण करना पड़ेगा।’’ शिव ने कहा। तत्पश्चात सभी किरात के भेष में इंद्रनील की ओर चल पड़े। वे इंद्रनील पहुंचे तो माता पार्वती ने एक ओर संकेत करते हुए भगवान शिव से कहा, ‘‘स्वामी! वह देखिए, कितना बड़ा शूकर।’’
‘‘देख लिया। अभी इसे तीर से मार गिराऊंगा।’’ कहते हुए शिव ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। किंतु शूकर भागने में किरात से तेज था। उसने ऋषियों के आश्रम में जाकर ऐसा उत्पात मचाया कि ऋषि भाग खड़े हुए, ‘बचाओ, रक्षा करो, मूकासुर फिर आ गया शूकर बनकर।’ कहते हुए वे सहायता की गुहार लगाने लगे।
ऋषि-मुनियों की चीख-पुकार से अर्जुन का ध्यान भंग हो गया। उन्होंने आंखें खोलीं और धनुष पर बाण चढ़ा लिया। तभी किरात भेषधारी शिव अपने धनुष पर बाण चढ़ाए उसे आते दिखाई दिए। अर्जुन को शूकर का निशाना बनाते देख शिवच ने कहा, ठहरो! इस शूकर पर बाण मत चलाना। यह शिकार मेरा है। मैंने बहुत देर तक इसका पीछा किया है।’’
‘‘ठीक है तुम इसे मार सको तो ले जाओ।’’ अर्जुन बोले, ‘‘शिकारी भीख नहीं मांगा करते।’’
शूकर के शरीर में एक साथ दो तीर आ घुसे। एक किरात भेषधारी शिव का और दूसरा अर्जुन का। दो-दो तीर खाकर शूकर भेषधारी मूकासुर ढेर हो गया। जमीन पर गिरते ही उसका असली रूप प्रकट हो गया।
‘‘सरदार की जय।’’ किरात नारियां बने शिवगणों ने जय-जयकार करनी शुरू कर दी।
‘‘यह तुम्हारे बाण से मरा है, स्वामी।’’ किरात नारी बनीं पार्वती मुदित स्वर में बोलीं।
किरात-नारियों के हर्षोंल्लास पर अर्जुन मुस्कराए। शिव के सामने जाकर बोले, ‘‘किरात! इस घने वन में इन स्त्रियों को भय नहीं लगता? अकेले तुम्हीं पुरुष इनके साथ हो।’’
‘‘युवक! हमें किसी का भय नहीं। पर तुम शायद डरते हो। हो भी तो कोमल।’’ शिव ने मुस्कराकर कहा।
‘‘मैं कोमल हूं? तुमने देखा नहीं मेरे बाण ने कैसे शूकर को वेधा है?’’ अर्जुन बोले।
‘‘शूकर हमारे सरदार के बाण से मरा है।’’ किरात नारियों ने चीखकर कहा।
‘ये सच कहती हैं, युवक।’’ किरात ने कहा, ‘‘तुम्हारा बाण शूकर के शरीर में तब लगा, जब वह मेरे बाण से मरकर नीचे गिर गया।’’
‘‘तब तो स बात का निर्णय हो ही जाना चाहिए, किरात, कि हम दोनेां में कौन श्रेष्ठ धनुर्धर है।’’ अर्जुन ने गर्व भरे स्वर में चुनौती दी।
बस, फिर क्या था, दोनों ने अपने अस्त्र-शस्त्र एक दूसरे की ओर चलाने शुरू कर दिए। देखते ही देखते भयंकर बाण-वर्षा शुरू हो गई लेकिन कुछ ही देर बाद अर्जुन का तूणीर बाणों से खाली हो गया। तब वह विस्मय से बड़बड़ाया, मेरे सभी बाणों को इस किरात ने काट डाला, मेरा बाणों से भरा सारा तूणीर खाली हो गया किंतु किरात को खरोंच तक नहीं लगी।
तभी किरात का व्यंग्य-भरा स्वर गूंजा, ‘‘धनुर्धारी वीर। क्या मैं कुछ बाण तुम्हें उधार दे दूं। किरात की व्यंग्य भरी बात सुनकर अर्जुन को क्रोध आ गया। उसने झपटकर किरात को अपने धनुष क प्रत्यंचा में फांस लिया, किंतु एक ही क्षण में किरात ने अर्जुन से धनुष छीनकर दूर फेंक दिया यह देख किरात-स्त्रियां हर्ष ने नाच उठीं। ‘‘तपस्वी हार गया, तपस्वी हार गया।’’ वे जोर-जोर हर्षनाद करने लगीं।
अर्जुन और भी चिढ़ गए। इस बार वह तलवार लेकर किरात की ओर झपटे और बोले, ‘‘किरात! भगवान का स्मरण कर लें, तेरा अंतकाल आ गया।’’
किंतु जैसे ही अर्जुन ने तलवार किरात के सिर पर मारी, तलवार टूट गई। अर्जुन निहत्थे हो गया तो उन्होंने एक पेड़ उखाड़ लिया और उसे किरात पर फंेका। लेकिन उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्योंकि किरात के शरीर से टकराते ही पेड़ किसी तिनके की भांति टूटकर नीचे जा गिरा। जब कोई और उपाय न रहा तो अर्जुन निहत्थे ही किरात पर टूट पड़े। किंतु किरात पर इसका कोई असर न हुआ। उसने अर्जुन को पकड़कर ऊपर उठाया और उन्हें धरती पर पटक दिया। अर्जुन बेबस हो गया। तब अर्जुन ने वहीं रेत का शिवलिंग बनाया और भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। इससे उनके शरीर में नई शक्ति आ गई। उन्होंरने उठकर फिर से किरात को ललकारा, ‘‘किरात! अब तेरा काल आ गया।’’ वह चीखे।
लेकिन जैसे ही अर्जुन की नजर किरात के गले में पड़ी फूलमाला पर पड़ी, वह स्तब्ध होकर खड़े के खड़े रह गए। अरे ये पुष्पमाला तो मैंने भगवान शिव के लिंग पर चढ़ाई थी तुम्हारे गले में कैसे आ गई?’
पल मात्र में ही अर्जुन का सारा भ्रम जाता रहा। वे समझ गए कि किरात के भेष में स्वयं शिवशंकर ही उनके सामने खड़े हैं।
अर्जुन किरात के चरणों में गिर पड़े, रूंधे गले से बोले, ‘‘मेरे प्रभु, आराध्य देव। मुझे क्षमा कर दो। मैंने गर्व किया था।’’
तब शिव अपने असली रूप में प्रकट हुए पार्वती भी अपने असली रूप में आ गई। शिव बोले ‘‘अर्जुन! मैं तेरी भक्ति और साहस से प्रसन्न हूं। मैं पाशुपत अस्त्र का भेद तुझे बताता हूं। संकट के समय यह तेरे काम आएगा।’’
शिव का वचन सत्य हुआ। महाभारत के युद्ध में अर्जुन अपने परम प्रतिद्वंद्वी कर्ण को पाशुपत अस्त्र से ही मारने में सफल हो सके थे। (हिफी)
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