
‘शिव’ समान दाता नहीं…
(हिन्दुस्तान समाचार फीचर)
मैं तो यही कहता फिरता हूँ, तूने मेरे लिए क्या किया वो क्या करेगा जब उसने मुझे सभी कुछ दे रखा है। जब मैं ही अपने लिए कुछ नहीं कर सकता तो मैं किससे क्या कहूंगा। तेरा हक ले लिया कोई तेरा कुछ ले ही नहीं सकता क्योंकि तू अनंत है तू ही अनंत है और अनंत से कुछ ले लो तो वो खाली नहीं होता। जब अज्ञानी हो जाता है तब कहता है अरे मेरा ले गया कितना मूर्खता वाली बात हो गयी। हुयी कि नहीं हुयी। कृतज्ञता की भावना सबमें होनी चाहिए। कल मैंने क्या बताया मैं अपने को क्या करता हूं क्षमा करता हूं। अपने आपको माफ करो और वैसे ही स्वीकारो जैसे तुम हो और अपने आप से प्यार करो। हाँ और जब मेरे मन मंे यह भाव आता है। तब सबको माफ करो और सबको स्वीकारो और सबसे प्यार करो। उसके बाद भगवान में जरा ध्यान से देखों तुम्हें सब कुछ दिया, क्या तुमने कभी उसको धन्यवाद दिया है। -शिवानंद जी
मानव को दिन में थोड़ा समय उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए जरूर निकालना चाहिए। वो तो चैबीस घंटे कृपा देने के लिए तैयार है। हमारे पास समय नहीं है लेने के लिए तो कुछ समय तो लगाओ। कुछ समय ऐसा कर लो जब तुम उसकी कृपा लेने के लिए तैयार हो। क्योंकि जब शिव का ध्यान करते हो उसकी कृपा तुम पर आनी शुरू हो जाती है। उसका ध्यान करो, अनुभव करो तुम्हें आनंद की अनुभूति होती है। तुम लोगों को ये मालूम होगा कि तुलसीदास जी शिवभक्त थे। भगवान शिव की स्तुति की थी। उन्होंने यही प्रार्थना की थी कि कुछ ऐसा मार्ग दिखाओ जिससे जन कल्याण हो सके और जब रामायण पढ़ते हो तो शुरुआत तुलसीदास जी शिव स्तुति से ही करते हैं और जब ध्यानस्थ हुए तो उस समय उनके भगवान शिव-शिवा के दर्शन प्राप्त हुए हैं माहकालेश्वर उज्जैन में जो भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग हैं ये वो स्थान है जहां तुलसी दास जी ने इस स्तुति को गाया था। कागभुशुन्डी जिन्होंने कई प्रलय और कई युगों को देखा था। उन्होंने जब भगवान राम का जन्म हुआ था तो महाकालेश्वर में आकर के स्तुति की थी। अगर आप जाओ कभी उज्जैन तो जहां महाकाल विराजमान हैं उसके पीछे एक गुफा है जो थोड़ी सी खुली हुयी है थोड़ा ध्यान करना वहां बहुत ऊर्जा आएगी शिव की कृपा तुम्हें अनुभव होगी। वहां बैठ करके दर्शन तो करते हो जब भी किसी ज्यार्तिलिंग में जाओ तो एक कोना जरूर ढूढ़ना जहां बैठ कर तुम थोड़ी देर ध्यान करना क्योंकि एक ज्योर्तिलिंग में यदि आप कुछ समय ध्यान करते हैं तो कई शहस्त्र गुना, कई कोटि गुना फल आपको प्राप्त होता है क्योंकि शिव नाम औषधि, शिव नाम ही इतनी बड़ी दवा है कि वो सारी दवाओं को पीछे छोड़ देती है।
अगर तुम्हें जीवन में कोई कष्ट है और उसकी दवा खोज रहे हो। कोई रोग है, कोई कष्ट है तो खाली शिवः शिवः शिवः जपो शिवा तो साकार और निराकार है क्योंकि मैं साकार हूं मंै ही निराकार हंू वो भी सकार है वो भी निराकार है। मैं आत्मा हूं, वो परमात्मा है और मैं उसी का एक भाव हूँ अद्वैत्व हूं अदैत्व द्वैत्व कुछ भी नहीं है अद्वैत्व है और वही चर चराचर में है। सब जगह वही व्याप्त हैं ऊँ शिवाए ऊँ से उत्पन्न हुआ हर चीज तुम भी ऊँ से उत्पन्न हुए और जो भी तुम इच्छाएं कर रहे हो वो भी इस ऊँ से उत्पन्न होंगी। तुम कितना चिल्ला लो कितना रो लो उससे कुछ उत्पन्न होगा ही नहीं। जो तुमको चाहिए वह कहां से उत्पन्न होगा। शिव नाम औषधि तुम्हारे हर कष्ट की दवा है। ऊॅ शिवाय हर समय सोचते हो मैं दुखी हूं। हर समय सोचते हो मेरा सुगर लैबल 300 हो गया हर समय सोचते हो मुझे 5 काॅम्पीलीकेशन और हो गयी तो कुछ नहीं मिलने वाला न शुगर कम होगी न काॅम्लीकेशन कम होगी क्योंकि वो अश्रविशक्ति से जुड़ रहे हो और अगर इसे ठीक करना है तो ऊँ शिवाय और जीते जी ये मेरे जीवन में आ गया तो आनंद और अगर मर गया तो जहां जाऊंगा अगर ये मेरे जीवन में होगा तो आनंद बोलो क्या चाहिए? क्या सोचना है ऊँ शिवाय शिव अन्नत शिव कृपा अनंत जो सब कुछ दे उसको याद करना जो सब कुछ दे उसी को बोलना जो तुमसे छीन ले उसको क्यों याद करना, जो तुमसे छीन ले उसकों क्यों याद
करना जो तुमसे छीन ले उसको क्यों बोलना, जो माया है जो हमको छीन लेता है हमसे छीन लेता है उसी दुख को हम ज्यादा सोचते हैं जब कि शिव को सोचना है तो तुलसीदास जी ने वहीं पर कहा है नमामी समीशंन निर्वाण रूपं….।
दिल से उसको याद करो और तुम्हारा जीवन न बदले तो मेरे पास आकर कहना बाबा सब बेकार बोलते हो। संजीवनी जब तुमको मिल गयी उससे तुम जुड़ गए। शिव योग तुम्हारे जीवन में हो गया। शिव अन्नत योग उससे जुड़ना शिव से जुड़ के तो देखो अभी तक तुम मुसीबत से जुड़ रहे थे अभी तक तुम अपने दुखों से जुड़ रहे थे अभी तक तुम अपनी बीमारियों से जुड़ रहे थे। एक बार उसको छोड़कर शिव योग स्तुति में तो आओ शिव अन्नत योग से जुड़ जाना शिव ऊॅ शिव ऊँ शिव ऊँ, एक बार अपनी सोच में सिर्फ उसी को लेकर के आओ किसी भी समय या दिन से प्रयोग करके देखो। अपनी सोच में शिव हो, तुम्हारे भाग्य में शिव हो तुम्हारे बात में शिव हो, तुम्हारे सपने में शिव हो, और जीवन न बदल जाए दस दिन में तो मुझे कहना नहीं बदला पांच दिन में अभी बदल जाएगा सब बदल जाएगा। नया जीवन, नया मन, नयी उमंग, नयी खुशी, आनंद ही आनंद सत्चित आनंद जो कभी अनुभव नहीं किया था। उस आनंद को जैसे जैसे तुम अनुभव करोगे वैसे वैसे रोग भागता जाएगा वैसे-वैसे कष्ट जीवन के भागते जाएंगे। चेहरे पर जिस व्यक्ति के खुशी होगी वो तेजस्वी हो जाएगा उसका भाग्य बदल जाएगा। जिस का चिर हृदय से उदास होगा उसका भाग्य पाताल से जुड़ जाएगा और पाताल कौन सा लोक है, यातना लोक, यातना ही जीवन में आती है और अगर उससे जुड़ गये, भोग और मोक्ष दोनों शिव देता है तो चलिए पूरे दिल के साथ अभी यहां बैठें मन कहीं और लगा है तो खींच के ले आओ अगर मन चिंता में है उसको शिव से जोड़ दो। अगर मन बीमारी में हैं तो उसको शिव से जोड़ दो क्योंकि कल मैंने क्या बताया था भावना इमोशन्स अगर उसमें सुख होगा तो पाॅजिटिव एनर्जी होगी और तुम किससे जुड़ोंगे यूनीवर्सल एनर्जी से, परमात्मा से और अगर इमोशनल निगेटिव होगा दुख होगा निगेटिव एनर्जी आएगी तो तुम किससे जुड़ोंगे पाताल के लोकों से अद्योगति होगी और वहां से यातना लोक है यातनाएं जीवन में आएंगी, जीवन में बीमारी ही जीवन में आएगी तो उमंग तो लेकर के आओ ’नमामी’ मैं उसको प्रणाम करता हूं क्योंकि अभी तक तो शिव से ये कहा क्या मुसीबत में डाल रखा है, क्या कर रखा है मेरे पिता जी बोले खराब है। उन्होंने मेरे साथ चिटिंग ही की जीवन में अरे तुम्हारे साथ कौन चिटिंग करता है मैं ही अपना बैरी हूँ,ं कोई नहीं करता ये कर्म मैंने पैदा किये ये प्रारब्द्ध भोग ही मैंने पैदा किये या तो भोग के कटेगा या शिव योग से कटेगा। शिव योग भला कि भोगना भला। ’शिव योग’ उसी से जुड़ जाना ’नमामी’ मैं उसको प्रणाम करता हूं। मैं महान हूं, मैं महान क्यूं हूँ।
क्योंकि किसी को एक हाथ दिये, मुझे दोनों हाथ दिये, दोनों पैर दिये, दो आंखें दीं दो कान दिये शरीर दिया जिसमें पांच इन्द्रियां दी जिससे मैं अनुभव कर सकूं फूलों के रंग देख सकूं इस सुगंध को सूंघ सकूं उत्तम भोजन ग्रहण कर सकूं यहां आनंद से बैठ सकूं मेरे को दिया की नहीं दिया। क्या तुमने
धन्यवाद किया ’नमामी समीशंन निर्वाण रूपं……… इसके रूप को देखकर आनंद किया, नहीं किया मैं कितना भाग्यशाली हूं मुझे माता-पिता मिले, मुझे पति-पत्नी मिले मुझे भाई-बहन मिले मुझे संतान मिली मुझे दो बात करने वाला मिला मुझे प्यार करने वाला भी मिला, भले ही बुराई करने वाले सुख देने वाले मिले लेकिन वो भी तो मिले जो दुख देने वाला था। उससे मैं तुरंत जुड़ गया। उससे नहीं जुड़ा मैं किससे जुड़ा यातना लोक से जुड़ा मेरा ज्ञान है जब कि शिव ने मुझे भेजा है इस पृथ्वीलोक पर जो कुछ भी उत्तम तुझे अनुभव करना है जो भी तुझे अच्छा लगे उसको अनुभव करना है और माया में फंस कर जो मुझे अच्छा नहीं लगता मैं उसका अनुभव पकड़ लेता हूं। जीवन में सौ घटनाएं बड़ी आनंदमय होती हैं और चार,पांच घटना दुखमय होती हंै लेकिन सौ प्रतिशत जीवन में मैं आनंदमय घटनाओं को न लाकर के मैं कितना मुर्ख मैं ही अपना बैरी हुआ। (हिफी)