श्री बागनाथ मंदिर बागेश्वर

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बागनाथ मंदिर, भारत के उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह उत्तर भारत में एक मात्र प्राचीन शिव मंदिर है, जो कि दक्षिण मुखी है, जिसमें शिव शक्ति की जलहरी पूरब दिशा को है । यहां शिव-पार्वती एक साथ स्वयंभू रूप में जलहरी के मध्य विद्यमान हैं३
भगवान शिव के दुनिया में हजारों मंदिर हैं और हर मंदिर की अपनी विशेष कथा है। वहीं देश में भगवान शिव का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भगवान शिव बाघ रूप में विराजमान हैं। बागनाथ मंदिर, भारत के उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह उत्तर भारत में एक मात्र प्राचीन शिव मंदिर है, जो कि दक्षिण मुखी है, जिसमें शिव शक्ति की जलहरी पूरब दिशा को है। यहां शिव-पार्वती एक साथ स्वयंभू रूप में जलहरी के मध्य विद्यमान हैं। यह बागेश्वर जिले का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और बागेश्वर जिले का नाम भी इसी मंदिर के नाम पर पड़ा है। यह सरयू तथा गोमती नदियों के संगम पर बागेश्वर नगर में स्थित है। इस मंदिर की नक्काशी अत्यंत प्रभाशाली है। बागेश्वर को मार्कंडेय ऋषि की तपोभूमि कहा जाता है। भगवान शिव के बाघ रूप में इस स्थान में निवास करने से इसे व्याघ्रेश्वर नाम से जाना गया, जो बाद में बागेश्वर हो गया। बहुत पहले भगवान शिव के व्याघ्रेश्वर रूप का प्रतीक देवालय इस जगह पर स्थापित था, जहां बाद में एक भव्य मंदिर बना। जो कि बागनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। कुछ स्रोत बताते हैं कि बागनाथ मंदिर 7वीं शताब्दी से ही अस्तित्व में था और वर्तमान नगरी शैली का निर्माण 1620 में चंद शासक लक्ष्मी चंद ने कराया था। मंदिर के नजदीक बाणेश्वर मंदिर है। यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से बागनाथ मंदिर के समकालीन लगता है। इसके पास में ही भैरवनाथ का मंदिर बना हुआ है। बताया जाता है कि बाबा काल भैरव इस मंदिर में द्वारपाल के रूप में निवास करते हैं और यहीं से पूरी दुनिया पर नजर रखते हैं। इस जगह पर ब्रह्मकपाली के पास महर्षि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। वशिष्ठ जी को उनकी तपस्या के भंग होने का खतरा सताने लगा। कहा जाता है धीरे-धीरे वहां जल भराव होने लगा। सरयू नदी आगे नहीं बढ़ सकी। उन्होंने शिवजी की आराधना की। महादेव ने बाघ का रूप धार कर माता पार्वती को गाय बना दिया। कहा जाता है कि महादेव ने ब्रह्मकपाली के पास गाय पर झपटने का प्रयास किया। गाय के रंभाने से महर्षि मार्कंडेय की आंखें खुल गई। इसके बाद ऋषि गाय को बाघ से मुक्त कराने के लिए दौड़े, तो बाघ ने महादेव और गाय ने माता पार्वती का रूप धारण कर लिया। मार्कंडेय को दर्शन देकर इच्छित वर दिया और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद दिया। इसके बाद सरयू आगे बढ़ सकी। बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र की पूजा होती है। यहां कुमकुम, चंदन और बताशे चढ़ाने की परंपरा है। इसके साथ ही महादेव को खीर और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। बागनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी रावल जाति के लोग होते हैं। इस मंदिर में चारों और शांति का अनुभव होता है।