अध्यात्म

(महासमर की महागाथा-36) कर्त्तव्य ही सबसे बड़ा योग

(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)
महाभारत में ऐसी कई कथाएँ पाई जाती हैं, जो कर्म के महत्त्व को जतलाती हैं। उनमें से एक यों है-एक नवयुवक योगी वृक्ष के नीचे बैठा था। ऊपर से एक पक्षी ने बीट कर दी। योगी ने क्रोधपूर्ण दृष्टि से ऊपर देखा। वह पक्षी जलता हुआ नीचे आ गिरा। वही योगी एक दिन भिक्षा माँगता हुआ किसी गृहस्थ के घर पहुँचा । गृहिणी उस समय अपने रुग्ण पति की सेवा में संलग्न थी। भिक्षा लाने में उसे कुछ देर हो गई। जब वह भिक्षा देने लगी तब योगी उसकी तरफ भी लाल आँखों से देखने लगा। स्त्री ने देर का कारण बताकर क्षमा माँगी परंतु योगी शांत न हुआ। इस पर वह बोली, महाराज, यहाँ कोई चील-कौए नहीं हैं, जो आपके इस प्रकार देखने से जल जाएँगे। योगी हैरान रह गया। देवी से उसने ज्ञान सीखना चाहा। स्त्री ने काशी में एक कसाई का पता बताया, जो प्रकट में नीच कर्म करने पर भी वास्तव में ज्ञानी था।
अपना-अपना कर्म ही सबसे बड़ा योग है।
स्त्री के लिए सबसे बड़ा योग उसका पातिव्रत्य धर्म है, यह बात सावित्री की कथा से भलीभाँति प्रकट होती है। सावित्री एक राजा की अत्यंत रूपवती व गुणवती कन्या थी। राजा को उसके लिए वर की आवश्यकता हुई। वह अपनी कन्या को साथ लेकर उसकी खोज में निकला। सब जगह ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वे वन के अंदर द्युमत्सेन नामक एक राजर्षि की कुटिया में पहुँचे। द्युमत्सेन का बेटा सत्यवान बहुत सुंदर और सब प्रकार से योग्य था। सावित्री ने मन-ही-मन उसे अपना पति मान लिया। जब राजा अपने राज्य में वापस आए तो ज्योतिषियों ने बताया कि चाहे सब गुण सत्यवान में हैं, किंतु एक बड़ा दोष है कि उसकी आयु का केवल एक वर्ष शेष है। पिता ने सावित्री को बहुत समझाया, परंतु वह अपने प्रण से नहीं टली।
दोनों का विवाह हो गया। सावित्री अपनी कुटिया में रहने लगी। सत्यवान प्रतिदिन जंगल में लकड़ियाँ लाने जाया करता था। जब उसका मृत्यु-दिवस आया तो उस दिन सावित्री भी उसके साथ वन में गई। संध्या का समय हुआ और सत्यवान बीमार हुआ। सावित्री उसके सिर को गोद में लेकर बैठ गई। वैसे ही लेटे हुए उसने प्राण त्याग दिए। यमदूत लेने आए। सावित्री का तेज इतना था कि वे उसके निकट नहीं जा सकते थे। लाचार होकर वे वापस लौट गए और यमराज स्वयं आए। उनका भी साहस नहीं हुआ कि सावित्री के सामने जाएँ। आखिर उन्होंने दूर से सावित्री को समझाना शुरू किया कि सत्यवान मर चुका है, अब वह जीवित नहीं हो सकता, उसे गोद से परे रख दे। सावित्री ने मृत शरीर रख दिया और यमराज के पीछे-पीछे चल दी। यमराज उसके तप से घबराए और उसे लौट जाने के लिए बहुत समझाया। उन्होंने उसे कई वरदान भी दिये परंतु सावित्री ने पीछा तब तक न छोड़ा जब तक उन्होंने उसके पति को जीवनदान न दे दिया। इस प्रकार सावित्री ने सत्यवान को पुनर्जीवित करा लिया।
यह एक दृष्टांत है। इसके महत्त्व को पहचानना आवश्यक है।
कई अन्य स्थानों में भी हमको कर्म के अच्छे उदाहरण मिलते हैं। अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। एक दिन घोड़े पर सवार होकर वह अकेले जा रहे थे तभी रास्ते में उन्होंने एक सूअरी को कीचड़ में फँसा हुआ देखा। यह निकलने की कोशिश तो करती थी, परंतु निकल नहीं पाती थी। लिंकन घोड़े से उतर पड़े। बड़ी मुश्किल से उन्होंने सूअरी को निकाला। इस प्रयत्न में उनके कपड़ों पर कीचड़ के दाग लग गए। फिर घोड़े पर सवार होकर वह राष्ट्रसभा में चले गए। कुछ सदस्यों ने कीचड़ लगने का कारण पूछा। इस पर उन्होंने सारी बात बताई। इसे सुनकर वे सदस्य कहने लगे, आप बड़े दयालु हैं, जो सूअर को भी दुःख में न देख सके। लिंकन ने उत्तर दिया, मैंने यह प्रयत्न उसका दुःख दूर करने के लिए नहीं किया था। इसमें मेरा स्वार्थ था। मैं अपने मन के क्लेश को दूर करना चाहता था। उसका दुःख मुझे आ लगा। उससे छुटकारा पाना मेरे लिए जरूरी था।
मौलाना रूम ने एक शेर लिखा है, जिसका अर्थ यह है, दिल को काबू में कर, यह बड़ा हज है। हजारों काबों की निस्वत एक दिल को काबू में करना कहीं बेहतर है। मौलवियों ने मौलाना रूम को काफिर करार दिया। फलतः उसके खिलाफ फतवा जारी करने की तैयारी होने लगी। अपनी सफाई में उसने इस शेर का कारण बतलाते हुए यह कथा सुनाई, श्एक बार मैं हज करने के लिए काबा गया लेकिन वहाँ मैंने काबा को मौजूद नहीं पाया। इधर-उधर से पता किया। जिधर काबा गया था उधर मैं भी चल पड़ा। रास्ते में काबा मिल गया। मैंने जब उसके उधर जाने की वजह पूछी तो उसने बताया कि एक बुढ़िया के स्वागत के लिए गया था। इस पर मुझे उस बुढ़िया को देखने का शौक पैदा हुआ। उसकी सेवा में उपस्थित होकर मैंने उससे पूछा, क्या कारण है कि वह काबा, जिसके पास लाखों आदमी जाते हैं, आपके स्वागत के लिए आया था? वृद्धा ने उत्तर दिया, मुझे इसका कुछ भी ज्ञान नहीं। तब मैंने कहा, श्आखिर आपने बड़े पुण्य का कोई काम किया होगा। वृद्धा बोली, मुझसे और तो कुछ नहीं हुआ। हाँ, अभी आते हुए रास्ते से मैंने एक कुत्ते को कुएँ के मुँह के गिर्द फिरते देखा। वह प्यास से हाँफ रहा था। कुआँ बहुत गहरा था। मैंने पत्तों का एक दोना तैयार किया और अपने कपड़े फाड़कर डोरी बनाई। परंतु डोरी छोटी निकली दोना पानी तक न पहुँचा। जब कोई कपड़ा न रहा तब मैंने सिर के बालों को उखाड़कर एक रस्सी बनाई और पानी निकालकर कुत्ते को पिलाया। यह कथा सुनकर मैंने अपने दिल में सोचा कि जब एक तुच्छ पर दया करने से काबा ने बुढ़िया का इतना मान किया तब आदमी का दिल हासिल कर लेना निश्चय ही काबा के हजों से बेहतर है।-क्रमशः (हिफी)

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