अध्यात्म

सत्-चित्-आनंद का स्रोत ‘शिवयोग’

सात्विकता अपनाओ जो शिवयोग से प्राप्त होगा

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर)

‘शिवयोग’ की शरुआत शिवमय होते ही शुरू हो जाती है। इसाीलिए कहा गया है कि कहो अहम् शिवम्। जो चाहोगे वही मिलेगा। जिस प्रकार की तुम्हारी चेतना जाग्रत होगी उसी के अनुरूप शिव वह सब प्रदान करता है जैसा शिव भक्त चाहता है। तन्मयता से ‘शिवयोग’ मंे तल्लीन व्यक्ति सत् चित् आनंद की अनुभूति कर अपना जीवन सार्थकता के साथ व्यतीत करता है, बशर्ते सात्विकता अपनाओ जो शिवयोग से प्राप्त होगा। बाबा दयालु है, दाता है पहले प्राप्तकर्ता लायक तो बनो….।

मैं सत्य कहता हूं शिव योग की स्थिति अपने जीवन में बनाएं रखो। उस सच्चित आनंद की स्थिति अपने जीवन में बनाये रखो और जो तुम समझते हो कि नहीं हो सकता वो चमत्कार भी तुम्हारे चेहरे पर है जो सहज होगा। सहज चमत्कार तुम्हारे जीवन में होंगे। मान लो मेरी बात को क्योंकि यह सत्य है जब हम उससे दूर हो जाते हैं तभी जीवन में कष्ट आते हैं। जब हम इस परमशाक्ति से दूर होकर के ज्यादा समय हम निगेटिव इमोशन में फंस जाते हैं तभी जीवन में जो हम चाहते नहीं मिलता और जो नहीं चाहते वो हो जाता है। कुछ दिन मेहनत करों तो वही सिर्फ भावना बदलते हैं शिव तुम्हारे भाव को चाहता है। तुम्हारा भाव कैसा है और वो भाव पैदा कर सकते हो तुम मुश्किल नहीं हो, जीवन में जो चाह रहे हो वो पैदा करना मुश्किल है लेकिन जो कुछ भी पैदा होता है पहले भाव पैदा होता है। पहले इन्टैक्शन पैदा होती है, तो कौन सी इन्टेक्शन लाना तो शुद्ध भावना, कैसी शुद्ध भावना जब भावना शुद्ध होगी तो मन मंे खुशी होगी कि दुख होगा।
घूम-फिर के बात वही आ गयी। क्या पैदा करना है? सत्य,चित, आंनद, अगर सत्य, चित आंनद नहीं है तो कुछ नहीं होगा अगर दु़खी होकर तुम कुछ प्राप्त करना चाहते हो वहीं होगा क्योंकि जब दुख है तो जो तुम चाहते हो वो नहीं मिलेगा और अगर दुख है तो जो तुम नहीं चाहते, तो मिल जाएगा और अगर उस परमशिव से जुड़ गए तब इसलिए गुरू ने कहा सेवा सिमरन किजिए सिमरन उसका नाम है। सिमरन करना है उसका धन्यवाद करना है और सेवा क्योंकि परमात्मा ने सब कुछ दिया तो मैं भी तो कुछ दूं। तो अगर कोई कहंे मैं बड़ा से बड़ा गरीब हूं, दरिद्र मेें डूबा हूं। सेवा तब भी वो कर सकता है। ऐसा कोई नहीं होगा जो सेवा न कर सके और एक बार सेवा करके देखें शिव कृपा प्राप्त होगी, उसकी कृपा प्राप्त होगी। मेरे वचन असत्य हो नहीं सकते ये परमसत्य हैं। इसको कोशिश करके देखना जीवन में उतार कर देखना। सेवा का मौका मिले चूकना नहीं, सुमिरन का मौका मिले चूकना नहीं और जब ध्यान आये कि तुम क्या सिमरन कर रहे हो आस्तिक शक्ति का कर रहे हो तो निकल बाहर, निकल तू कैसे घुस आया, चाहिए ही नहीं मुझे तू निकल बाहर ये शरीर मेरा, ये मन मेरा, ये आत्मा मेरी। जो मुझे चाहिए वहीं मैं अपने भीतर हूं इसलिए नकारात्मक शक्ति को नकार दें।
नमामि शमीशाम ्…ऊं नमः शिवायः, ऊं नमः शिवायः,ऊं नमः शिवायः, ये बोलते ही भीतर से सतचित आंनद की अनुभूति होनी शुरू हो गयी और यही सतचित आनंद है यही वो परमशक्ति है। जहां से अकाश तत्व की उत्पति होती है और उस अकाश से वायु की, वायु से अग्नि की, अग्नि से जल की, जल से पृथ्वी की और तुम्हारे को संसार में क्या खोजते हो क्या मांगते हो पृथ्वी तत्व ही खोजते हो तुरन्त मिल सकता है। सबसे पहले चीज ही मिलती है पृथ्वी तत्व। जब शिव योग में अवस्थित होते हैं तो पहली चीज मिलती है पृथ्वी तत्व यानी कि जैसा शरीर चाहिए वैसा मिलेगा, जैसी संपन्नता चाहिए वैसी मिलेगी। ये पृथ्वी तत्व है ये भोग है इसी को खोज रहे हो धीरे-धीरे ऊपर उठोगे पृथ्वी तक तो हो गया साधना। करे शिव योग की साधना को जल में विलीन हो जाएगी ऐश्वर्य रहेगा, नाम रहेगा, इच्छा नहीं रहेगी और भी शुद्धि होगी जल अग्नि में विलीन हो जाएगा, तेजस्वी हो जाओगे तुम आगे आगे अष्टसिद्धि नवनिधि पीछे-पीछे और ये अग्नि वायु में विलीन हो जाएगी तो अब मैं कहता हूं। सेवा सिमरण कीजिए तब तो तुम भी अनुरूप हो जाओगे। आइ एम नाॅट दिस बाॅडी आइ एम दा सोल। अपने आप तुम्हें लगेगा कि तुम वो हो ही नहीं जो तुम थे, तुम वो नहीं और वायु जब आकाश में मिल जाएगी तो शिव ऊं अब किसी से क्या लेना क्योंकि जो कुछ भी ब्रह्म है वहीं मैं हूं। शिवम् सोऽम हंसा शिवा सोऽम, सोऽम….।
जब कहते हैं अहंम् ब्रह्मास्मि मैं ही ब्रह्म हूं शिव अहम् मैं ही शिव हूं तो शिव योग की शुरुआत होती है। पहले मुझे बताओ, तुम चाहते क्या हो कि जो भी तुम चाहते हो तुम्हारी चेतना के अनुरुप सही है। उसका नकारना नहीं है खोजना है कि मैं वास्तव में चाहता हूं और उसके साथ जुड़ जाना है। अपने भीतर आनंद की स्थिति को पैदा करना है। वो कैसे होगा सेवा सिमरण कीजिए।
सेवा से मत चूकना सेवा से शुरुआत करना, सेवा होती शरीर से शरीर तो भगवान ने दे ही दिया तो ये शरीर सेवा के काम आये इससे कुछ पुण्य का काम हो सके वो काम हो सके जिससे मुझे वापसी में कुछ नहीं चाहिए। तेरा मुझको अर्पण मेरा क्या लागे। और जब सेवा शुरू करिए तो कृपा शुरू हो जाएगी और तुम्हें यह ज्ञान हो जाएगा कि तुम चाहते क्या हो। तो पहले मैंने बताया कि पृथ्वी मिलेगी शरीर में शक्ति मिलेगी। मेंरे पास एक अम्मा आयीं, बोली मेरे शरीर में इतना दर्द है बाबा कि रोम-रोम हर जोड़ मेरा दुखता है। तो मै बताना चाहता था कि हिलिंग कैसी होती है। मैं बोला अम्मा हिलिंग मैं बाद में करूंगा तू पहले मेरा एक काम करेगी तो बोली क्या बाबा। बाहर जो लोग जूता उतार के आये हैं, उसे जरा ढंग से लगा दे। अब पता नहीं उसने कैसे किया कैसे नहीं किया। बाबा से हिलिंग कराने आयी थी बाबा ने दाम पहले मांग लिया। तो बेचारी तुरन्त चली गयी। आकर खड़ी हुयी बोली मैं झुक भी नहीं सकती, मुझे बहुत दर्द हो रहा है। वहां बहुत सारे जूते थे। आप सोच सकते हो कितना जूता होगां मॅने बोला सब अच्छे से लगाना। बहुत देर बाद आयी मैंने बोला जूते लगा दिया, हां! मैंने बोला अच्छे से लगाया उसने कहा हां। बोला ठीक ठाक लगाया, बोली हां! मैंने बोला झुक के लगाया, बोली हां! वो ठीक हो गयी मेरे से हिलिंग कराने को लिए आयी हों क्योंकि हिलिंग कृपा तेा बरसती है मैं तुमसे बात कर रहा हूं मैं कुछ नहीं कर रहा हूं। लेकिन वो बहुत कुछ कर रहा है। मैं कुछ नहीं करता वो करता है। मैं तुमसे बात कर रहा हूं मेरा सिर्फ एक ही प्रयास है तुमको खोलूं। जो तुम बंद हुए हो उसको तुम खोल लो, अपने आपको खोलो, उसकी कृपा उसकी शक्ति को स्वीकार करो। उसको प्राप्त करों और जो व्यक्ति निष्काम सेवा प्रतिदिन करता है। आप अजमा के देख लेना उसका रोग गायब हो जाएगा। शिवयोग वह स्रोत है जो जीवन में सत् चित् आनन्द की अनुभूति ही नहीं कराता है अपितु इहलोक और परलोक का मार्ग सात्विक मार्ग देता है। (हिफी)

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