अध्यात्म

कलियुग के पहले दिन का मंदिर, जिसके नीचे छिपा है आकूत खजाना!

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत में जगह जगह पर मंदिर मौजूद हैं, इनमें से जहां कुछ अभी कुछ समय पहले ही बने हैं तो कुछ कई हजार साल पुराने भी हैं। इन्हीं में से एक ऐसा मंदिर भी है जिसके संबंध में माना जाता है कि यह मंदिर कलियुग के पहले दिन स्थापित किया गया।
दरअसल आज हम जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं वह मंदिर भारत के दक्षिण में मौजूद है। वहीं इस मंदिर के पास आकूत संपत्ति का खजाना भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है। जिसके चलते इस मंदिर से सरकार की निगरानी में करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। दरअसल ये मंदिर है केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर। 2011 में सरकार की निगरानी में निकाले गए खजाने के बावजूद इस मंदिर का अभी एक तहखाना खुलना और बाकी है। यहां तक की इसे भारत का सर्वाधिक अमीर मंदिर भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि पूर्व में सरकार द्वारा मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। माना जाता है कि मंदिर के तहखानों में कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं और किसी को तहखाने में जाने की इजाजत नहीं है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके चारों ओर रहस्य ही रहस्य ही छिपे हुए हैं। लोक मत है कि इस सुप्रसिद्ध मंदिर का सातवां दरवाजा आज भी एक पहेली है। इसका कारण यह है कि ये दरवाजा आज तक किसी के द्वारा खोला नहीं जा सकता। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि लकड़ी के इस दरवाजे को खोलने या बंद करने के लिए किसी तरह का कोई ताला,जंजीर व नट-बोल्ट नहीं लगा हुआ यानि कि दरवाजा बंद भी कैसे है? इस बारे में भी किसी को कुछ पता नहीं,जो आज तक एक रहस्य ही बना हुआ है। इस मंदिर के मौजूदा स्वरूप को त्रावणकोर राजाओं ने बनवाया। कहा जाता है कि त्रावणकोर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने 1750 में स्वयं को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, जिसके पश्चात मंदिर की सेवा में पूरा शाही खानदान लग गया था। मान्यता के अनुसार मंदिर में त्रावणकोर शाही खानदान की अकूत संपत्ति ही मौजूद है।
कहा जाता है कि त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत उस समय मंदिर में रख दी भारत सरकार जब 1947 में हैदराबाद के निजाम की संपत्ति अपने अधीन कर रही थी। जिसके पश्चात त्रावणकोर रियासत का भी भारत में विलय हो गया। इस दौरान रियासत की संपत्ति तो भारत सरकार के अधीन हो गई, लेकिन मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा। कुल मिलाकर राजघराने ने इस तरह अपनी संपत्ति को बचा लिया, लेकिन इस कहानी का कोई भी प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। वहीं अब यह मंदिर शाही खानदान द्वारा बनाया गया ट्रस्ट चलाता है।
इस मंदिर पर टीपू सुल्तान ने हमला भी किया था। कहा जाता है कि 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे के लिए हमला तो किया था, लेकिन कोच्चि के पास उसे हार का मुंह देखना पड़ा।
यह तो हर कोई मानता है कि यह मंदिर कई हजार साल पुराना है। लेकिन इसकी स्थापना को लेकर हर कोई एकराय नहीं है। इस मंदिर के संबंध में कई जानकारों का मानना है कि यह करीब दो हजार साल पुराना है। जबकि त्रावणकोर के इतिहासकार डॉ. एलए रवि वर्मा दावा करते हैं कि लियुग के पहले दिन इस मंदिर की स्थापना हुई थी। वहीं मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति के संबंध में माना जाता है कि इसकी स्थापना कलियुग के 950वें साल में हुई थी।

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