हिन्दू धर्म में वल्लभाचार्य जयंती का है विशेष महत्व

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
वैशाख माह में कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को वरूथिनी एकादशी के साथ ही श्री वल्लभ आचार्य जयंती भी मनाई जाती है। आचार्य वल्लभ एक दार्शनिक थे। इन्हें पुष्य संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। लोकप्रचलित मान्यातओं के अनुसार वल्लभाचार्य ही वे व्यक्ति थे जिन्हें श्रीनाथ जी के रूप में भगवान श्री कृष्ण से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। इन्हें अग्नि देवता का पुर्नजन्म माना जाता है।
वल्लभ संप्रदाय वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत आता है। 16वीं शातब्दी में इस संप्रदाय की स्थापना वल्लभ आचार्य के द्वारा की गई थी। इस दिन श्रीनाथ जी के मंदिरों में प्रसाद चढ़ाया जाता है और वितरण भी किया जाता है। वल्लभ आचार्य जयंती एकादशी तिथि को पड़ती है इसलिए इस तिथि का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
वल्लभाचार्य का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम इल्लमागारू और पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था। ऐसा कहा जाता है कि वल्लभाचार्य जी का जन्म माता इल्लमागारू के गर्भ से अष्टमास में हुआ था। उन्हें मृत जानकर उनके माता पिता ने छोड़ दिया था। जिसके बाद श्री नाथ जी माता इल्लमागारू के सपने में आए और कहा कि जिस शिशु को तुम मृत जानकर छोड़ आए हो वह जीवित है। वह स्वंय ही श्री नाथ जी हैं जिन्होंने आपके गर्भ से जन्म लिया है जिसके बाद वल्लभाचार्य जी के माता पिता फिर से उसी स्थान पर गए और देखा कि अग्निकुंड के बीच में वह अंगूठा चूस रहे थे।
श्री कृष्ण भक्ति के भक्तिकालीन प्रणेता श्री वल्लभाचार्य जी की जयंती भारत में किसी लोकप्रिय त्योहार से कम नहीं है। श्री वल्लभाचार्य की जंयती पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। लोकप्रिय पौराणिक धारणा है कि इस दिन भगवान कृष्ण को श्रीनाथजी के रूप में वल्लभाचार्य ने देखा था, जिन्हें पुष्ती संप्रदाय के संस्थापक कहा जाता है। इसलिए, श्रीनाथजी के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा की गई और जिसे वल्लभाचार्य ने उचित ठहराया, जो वैष्णव संप्रदाय के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक थे। इस तथ्य के कारण, वल्लभाचार्य जयंती हर साल श्री वल्लभाचार्य और भगवान कृष्ण के भक्तों द्वारा बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था। इस वर्ष महाप्रभु वल्लभाचार्य की जंयती 26 अप्रैल (मंगलवार) को मनाई जा रही है।
वल्लभाचार्य का चिंतन आदि शंकराचार्य के सिद्धांत से पृथक है। शंकाराचार्य के अनुसार ब्रह्म सत्य एवं जगत मिथ्या है। जगत केवल प्रतीती मात्र है। वल्लभाचार्य का दर्शन इससे भिन्न है यहां अस्तित्व और अस्तित्वहीन की लड़ाई में न पड़कर संसार को खेल है। अपने इन सिद्धांतों की स्थापना के लिए वल्लभाचार्य ने तीन बार भारत का भ्रमण किया। यह यात्राएं सिद्धांतों के प्रचार के लिए थीं जो करीब 19 सालों में पूरी हुईं।
श्री वल्लभाचार्य अपनी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी प्रमुख सोलह रचनाओं को षोडष ग्रंथ के नाम से भी जाना जाता है। इन रचनाओं में प्रमुख है यमुनाष्टक, बालबोध, सिद्धांत मुक्तावली, पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद, सिद्धांत रहस्य, नवरत्न स्तोत्र, अंतःकरण प्रबौध, विवेक धैर्याश्रय, श्री कृष्णाश्रय, चतुःश्लोकी, भक्तिवर्धिनी, जलभेद, पन्चपद्यानि, सन्यास निर्णय, निरोध लक्षण, सेवाफल इत्यादि।
हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण को पूजने वाले और वल्लभाचार्य जयंती को मनाने वाले बहुत ही हर्षोल्लाल के साथ वल्लभाचार्य जंयती मनाते हैं। भक्त लोग इस दिन श्री नाथ जी के मंदिर में जाकर विशेषतौर पर पूजा अर्चना करते हैं। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, चेन्नई और महाराष्ट्र में इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है। साथ ही श्री नाथ जी के मंदिर में इस दिन को बहुत ही उत्साहपूर्वक पर्व की भांति मनाया जाता है।