मोहब्बत की दुकान से तुष्टिकरण का आगाज?

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
कर्नाटक में कथित मोहब्बत की दुकान खोलने वाली कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता पर काबिज हुई तो इनके असली रंग सामने आ गए हैं। जिस धर्मांतरण और लवजेहाद से कर्नाटक कराह रहा था उस पर नियंत्रण के लिए पिछली भाजपा नीत सरकार द्वारा बनाए गए धर्मांतरणरोधी कानून को पहली कैबिनेट बैठक में ही रद्द कर जो तुष्टीकरण का संदेश दिया है उससे मुहब्बत के पीछे छिपा नफरत बढ़ाने वाला एजेंडा जाहिर हो गया है। बता दें कि कर्नाटक के शिक्षा मंत्री ने दावा किया है कि कर्नाटक मंत्रीमंडल ने वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए राज्य में कक्षा छह से दस तक की कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के पाठ्यक्रम में संशोधन को मंजूरी दे दी और इसके तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और हिंदुत्व विचारक वीर दामोदर सावरकर सहित अन्य लोगों पर केंद्रित अध्यायों को हटा दिया गया है। इसके साथ ही मंत्रिमंडल ने सभी विद्यालयों और कॉलेजों में प्रतिदिन संविधान की प्रस्तावना के पाठ को अनिवार्य बनाने का फैसला किया। कैबिनेट की बैठक में यह भी फैसला किया गया कि समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले, इंदिरा गांधी को लिखे गए नेहरू के पत्रों और डॉ। बीआर आंबेडकर पर कविता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पिछली सरकार द्वारा किए गए परिवर्तनों को हटाया जाएगा। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि वह स्कूली पाठ्यपुस्तकों में भाजपा सरकार द्वारा किए गए बदलावों को हटा देगी। कांग्रेस ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को भी खत्म करने का वादा किया था। कर्नाटक मंत्रिमंडल ने भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण रोधी कानून को निरस्त करने का भी फैसला किया।
भाजपा और राष्ट्रवादी संगठनों ने सरकार के इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और एम। मल्लिकार्जुन खड़गे नीत कांग्रेस को ष्नवी मुस्लिम लीगश् करार दिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बीआर पाटिल ने ट्विटर पर सवाल किया, राहुल गांधी, क्या यह मोहब्बत की दुकान है? उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया का हिंदू विरोधी एजेंडा सामने आ गया है। कर्नाटक की सरकार ने डा। हेडगेवार और वीर सावरकर तथा धर्मांतरण संबंधी कानून को निरस्त करने का जो निर्णय लिया है वह केवल और केवल मुस्लिम मतदाता को खुश करने के लिए लिया है। तुष्टिकरण की राह पर चलते हुए कांग्रेस ने पहले भी अल्पमत और बहुमत समाज में एक अविश्वास की भावना को बढ़ा ही दिया है।
आप को बता दें कि कर्नाटक कैबिनेट ने धर्मांतरण रोधी कानून को रद्द करने का फैसला किया है। इस कानून को राज्य की पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने लागू किया था। इस कानून को रद्द करने के लिए सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में प्रस्ताव लेकर आएगी। कर्नाटक विधानसभा सत्र तीन जुलाई से शुरू हो रहा है।
कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने कैबिनेट बैठक के बाद कहा कि कैबिनेट में धर्मांतरण विरोधी कानून पर चर्चा हुई। हमने 2022 में बीजेपी सरकार द्वारा लाए गए इस बिल को रद्द करने का फैसला किया है।
कर्नाटक धर्मांतरण विरोधी कानून 2022 को कांग्रेस के विरोध के बावजूद बीजेपी सरकार ने लागू किया था। इस कानून के तहत एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरन, किसी के प्रभाव में या बहकाकर धर्म परिवर्तन
कराना गैरकानूनी बताया गया है। इसके तहत तीन से पांच साल की कैद और 25000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
इस कानून के तहत धर्म परिवर्तन कराने वाले शख्स पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है। सामूहिक तौर पर धर्म परिवर्तन के लिए तीन से दस साल तक की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। यह भी कहा गया कि कोई भी शादी जो धर्म परिवर्तन
के इरादे से ही की गई है, उसे फैमिली कोर्ट द्वारा अवैध मान जाएगा। इसे गैरजमानती अपराध बताया
गया है।
कर्नाटक कैबिनेट की बैठक में सर्वसम्मति से कक्षा छह से दस तक की कक्षाओं में कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की टेक्स्टबुकों में संशोधन को मंजूरी दी गई है। मौजूदा एकेडमिक सत्र में आरएसएस संस्थापक हेडगेवार और हिंदूवादी नेता सावरकर के अध्यायों को हटाया जाएगा।
इसके साथ ही समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले, इंदिरा गांधी को लिखे नेहरू के पत्रों और बीआर आंबेडकर पर लिखी गई कविताओं से जुड़े अध्यायों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
जाहिर है कि सिद्धारमैया सरकार एक बार फिर कर्नाटक में कथित मौहबबत के नाम पर राष्ट्रीय हितों की व लवजेहाद को सुनियोजित तरीके से चला रहे समाज कंटको की कारस्तानी की अनदेखी कर एक विशेष समुदाय के तुष्टिकरण की कोशिश कर रही है। यह तरीका निश्चित तौर पर आगामी समय में भारी साबित होगा यदि कांग्रेस इसी तरह मोहब्बत की दुकान से नफरत व तुष्टिकरण का सामान बनाने की कोशिश करेगी तो देश भर में उसे फिर मुंह की खानी पडेगी।
जिस देश में 80 प्रतिशत से अधिक हिन्दू धर्म को मानने वाले हो तो उस देश में तुष्टिकरण की नीति अपनाकर राजनीति करना और चुनावों में विजय प्राप्त करना अपने आप में एक बड़ी बात है। विभाजित हिन्दू समाज का लाभ केवल राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि हिन्दू विरोधी भी उठाते हैं। इसी कारण आये दिन हिन्दू समाज व धर्म को लेकर नित्य नया विवाद सामने आता है।
समय की मांग हिन्दुओं में एकता व राजनीतिक जागरुकता की आवश्यकता है। अगर हिन्दू नहीं जागता तो आने वाला समय
हिन्दू समाज के लिए कठिन हो सकता है। आज कांग्रेस समेत कई अन्य दल सत्ता की खातिर देश और बहुसंख्यक समाज के अस्तित्व को
भी गिरवीं रखने के लिए आगे आ सकते हैं इन से सावधान रहने की जरूरत है। (एजेंसी)