Uncategorizedराजनीतिलेखक की कलम

भारद्वाज का सियासी सौदा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने राजनीति में भी सौदा करने की बात कही है। उनकी यह बात कुछ लोगों को अप्रिय लग सकती है लेकिन विपक्षी एकता की दृष्टि से उचित है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी ऐसा ही संकेत दिया था लेकिन व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं दिख रहा है। ममता बनर्जी ने विपक्षी एकता का फार्मूला दिया था कि जिस राज्य में जो भी विपक्षी दल भारी है, उसको सभी लोग सपोर्ट करें। इसका पैमाना वर्तमान से ही तय किया जाना है वरना कांग्रेस अपना इतिहास दोहराने लगेगी कि पूरे भारत मंे दो बैलों की जोड़ी चला करती थी। अब न तो बैल रहे गये हैं और न जोड़ी, इसलिए कांग्रेस को भी कहीं न कहीं तो समझौता करना ही पड़ेगा। मौजूदा समय मंे कांग्रेस चार राज्यों में सरकार चला रही है और चार राज्यों मंे ही सरकार मंे साझीदार है। अन्य कोई भी विपक्षी दल इतना साम्राज्य नहीं रखता, इसलिए कांग्रेस को अपना साम्राज्य बरकरार रखने मंे भी सफलता मिल जाए तो भविष्य उसका बेहतर हो सकता है। आप नेता सौरभ भारद्वाज ने राजस्थान और मध्य प्रदेश का ही नाम क्यों लिया? यह बात समझ में नहीं आती। दिल्ली के साथ पंजाब में भी कांग्रेस चुनाव न लड़े इस पर कांग्रेस कैसे तैयार होगी। ममता बनर्जी भी तब पश्चिम बंगाल से आगे
बढ़ने की बात कहेंगी। विपक्षी दलों को गठबंधन भी भाजपा से सीखना पड़ेगा।
दिल्ली के बाद पंजाब में प्रचंड बहुमत के साथ मिली जीत और सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी इस साल के अंत में राजस्थान और मध्य प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव लड़ेगी लेकिन विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को ‘ऑफर’ किया है कि अगर वो दिल्ली और पंजाब में चुनाव नहीं लड़ती है, हम मध्य प्रदेश और राजस्थान में आगामी चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। अहम बात यह है कि आप पार्टी का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब वह दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस से समर्थन पाने की उम्मीद कर रही है। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस पार्टी को दिल्ली में 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में शून्य सीटें मिली थीं। अगर कांग्रेस कहती है कि वे दिल्ली-पंजाब में चुनाव नहीं लड़ेंगे, तो हम भी कहेंगे कि हम मध्य प्रदेश-राजस्थान में चुनाव नहीं लड़ेंगे।
सौरभ भारद्वाज ने कटाक्ष भी किया और कहा कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र की चोरी कर रही हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है लेकिन, आज यह सी-सी-सी, कॉपी-कट-कांग्रेस हो गई है। ये अरविंद केजरीवाल का सब कुछ लूट रहे हैं। इन्हें खुद का कुछ पता नहीं है। अब यह सामने आ रहा है कि कांग्रेस में न केवल नेतृत्व की कमी है बल्कि विचारों की भी कमी है। हमने दिल्ली में मुफ्त बिजली देने की बात की, तो कांग्रेस ने हमारा मजाक उड़ाया था लेकिन, उसने हिमाचल प्रदेश में अरविंद केजरीवाल की गारंटी की नकल की और 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया। उसने पंजाब में महिलाओं को मुफ्त बिजली देने का भी मजाक उड़ाया। लेकिन बाद में खुद हिमाचल और कर्नाटक में इसकी घोषणा की। उन्होंने अध्यादेश के मुद्दे पर आप का समर्थन करने या नहीं करने का फैसला नहीं कर पाने के लिए भी कांग्रेस पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी में फैसलों में अक्सर देरी होती है। वे समय पर गोवा में सरकार नहीं बना सके और भाजपा ने पार्टी को तोड़कर विधायक छीन लिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल 23 मई से केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों से समर्थन लेने के लिए देशव्यापी दौरे कर रहे हैं। पार्टी ने अध्यादेश के खिलाफ 11 मई को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक मेगा रैली भी की थी। इस अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए आप के राष्ट्रीय संयोजक अब तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सुप्रीमो शरद पवार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात कर चुके हैं।
केंद्र सरकार की ओर से 19 मई को ‘ट्रांसफर-पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों’ के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के लिए नियमों को अधिसूचित करने के लिए एक अध्यादेश लाया गया। यह अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन करने के लिए लाया गया था और यह केंद्र बनाम दिल्ली मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करता है।
उधर, 2024 के चुनाव के लिये बीजेपी ने बिहार का फार्मूला लगभग सेट कर लिया है। ये सवाल बिहार बीजेपी के कोर ग्रुप की बैठक गत दिनों दिल्ली में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के आवास पर हुई थी। दरअसल इस बैठक में बीजेपी के बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े भी मौजूद थे। प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चैधरी और प्रदेश के और बड़े नेताओं की मौजूदगी में हुई बैठक में गठबंधन के स्वरूप को बड़ा करने पर भी चर्चा हुई। बीजेपी चाहती है कि बिहार में नीतीश कुमार के अलग होने के बाद दलित, महादलित, पिछड़े, अति पिछड़े समाज के लोगों को अपने साथ जोड़ा जाए। लिहाजा उस समाज के नेताओं और उन नेताओं से जुड़ी पार्टियों को बीजेपी अपने पाले में लाना चाहती है। उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू से अलग होकर राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम की अलग पार्टी बना ली। अब कुशवाहा अमित शाह और जेपी नड्डा से मिल चुके हैं। उम्मीद है कि जल्दी कुशवाहा एनडीए का दामन थामेंगे। जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन बिहार सरकार में मंत्री थे। उन्होंने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। अगले हफ्ते मांझी भी एनडीए के साथ आने का संकेत दे सकते हैं। दूसरी तरफ राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी पहले से ही एनडीए में है। रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस नरेंद्र मोदी का गुणगान करते नहीं थकते, अब लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान जो पहले अपने आपको नरेंद्र मोदी का हनुमान बता चुके हैं, उन्हें भी पूरी तरह से बीजेपी साधने की कोशिश कर रही है। चिराग पासवान और पशुपति पारस पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त एक साथ थे तो उस वक्त 6 लोकसभा सीटें उनके खाते में थी जबकि एक सीट पर बीजेपी ने रामविलास पासवान को राज्यसभा में भेजा था, लिहाजा बीजेपी चाहती है कि इस बार भी दोनों को मिलाकर 6 से ज्यादा सीटें दी जाए। बीजेपी की कोशिश है लगभग 30 सीटों पर चुनाव में उतरे जबकि बाकी 10 सीटें सहयोगी को जाए। विपक्षी दल इस प्रकार का गठबंधन करने मंे असमर्थ नजर आते हैं। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button