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देश की छवि के प्रतिकूल आचरण

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)

देश के भीतर सत्ता पक्ष का विरोध करना विपक्ष का दायित्व है लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रति कांग्रेस का विरोध राजनीतिक मर्यादा तक कभी सीमित नहीं रहा। बल्कि नरेंद्र मोदी के लिए उसमें शुरू से पूर्वाग्रह रहा है। इसकी शुरुआत मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के साथ हो गई थी।यूपीए सरकार ने तब मोदी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनको मौत का सौदागर तक कहा गया लेकिन गुजरात में कांग्रेस नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का कभी मुकाबला नहीं कर सकी। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार हुआ। वह प्रधानमंत्री बने। इसी के साथ उनके प्रति कांग्रेस की कुंठा भी राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच गई। इसके बाद नरेंद्र मोदी विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन गए। उनके प्रति कांग्रेस की नफरत भी सीमा पार तक चली गई। राहुल गांधी की पहले ब्रिटेन और अब अमेरिका यात्रा में यही नफरत उजागर हो रही है।
यह बात नरेंद्र मोदी तक ही सीमित रहती तब भी गनीमत थी। लेकिन राहुल गांधी की मोदी के प्रति निजी नफरत देश की छवि से भी बेपरवाह हो गई है। सत्ता पक्ष पर हमलों में उन्होंने कभी कसर नहीं छोड़ी। अमर्यादित शब्दों का निरन्तर प्रयोग करते रहे। पता नहीं राहुल गांधी अब अमर्यादित शब्दों की किस सीमा तक पहुंचना चाहते हैं। विदेश में वह कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो गया है। संवैधानिक संस्थाओं पर हमले हो रहे हैं। राहुल विदेश में भारत की ऐसी छवि पेश करते हैं जैसे यहां के हालात पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरियाई, लेबनान फलस्तीन जैसे हो गए हैं। जहां निरन्तर हिंसक तनाव बना रहता है।राहुल के अनुसार मुसलमान, ईसाई, दलित और आदिवासी यह महसूस कर रहे हैं कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।एक तरफ नरेंद्र मोदी विदेशों में भारत को राष्ट्रीय स्वाभिमान और गरिमा के अनुरूप प्रतिष्ठित करते हैं। वह वसुधैव कुटुंबकम का विचार देते हैं। विश्व शांति और सौहार्द का संदेश देते हैं। भारत की विरासत से दुनिया को अवगत कराते हैं। भारत को लोकतंत्र की जननी प्रमाणित करते हैं। मोदी की यह सभी बातें तथ्यों पर आधारित होती हैं। विगत नौ वर्षों के दौरान देश में जाति मजहब का भेदभाव नहीं किया गया। सभी को सैकड़ों की संख्या में संचालित योजनाओं का लाभ दिया गया। अपने को सेक्युलर और मुसलमानों की हमदर्द बताने वाली पार्टियों की इस मुद्दे पर अपनी सरकारों का ब्यौरा देना चाहिए। उन्हें मोदी सरकार के नौ वर्षों के मुकाबले अपनी उपलब्धियां बतानी चाहिए। भारत ही नहीं दुनिया को पता चलना चाहिए कि मुसलमानों के लिए किस सरकार ने कितना किया। यह भी बताना चाहिए कि आज मोहब्बत की बात करने वालों की सरकारों के समय कितने दंगे होते थे। राहुल जानते हैं कि विकास और बिना भेदभाव के सभी को योजनाओं के लाभ के मुद्दे पर वह भाजपा सरकारों का मुकाबला नहीं कर सकते लेकिन मोदी के प्रति जो नफरत और कुंठा है, उसका क्या करें। वह बेचैन करती है। इसके चलते कई बार प्रधानमंत्री और देश की छवि में अन्तर समझना कठिन हो जाता है। मोदी पर हमला करने के चक्कर में वह भारत में आंतरिक कलह, लोकतंत्र की समाप्ति आदि का प्रलाप करने लगते हैं।
यहां एक तथ्य और विचारणीय हैं। देश को यह जानने का अधिकार है कि विदेशों में राहुल के कार्यक्रमों के आयोजक कौन हैं, और किस प्रकार के श्रोता उनको सुनने पहुँचते हैं। ब्रिटेन में राहुल के कार्यक्रम में पाकिस्तानी मूल के प्रोफेसर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करने वाले कमल मुनीर मौजूद रहते हैं। अमेरिका में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल उनके कार्यक्रमों का आयोजन करती है। वही राहुल के कार्यक्रमों में शामिल होने वालों की व्यवस्था करती है। किस प्रकार के लोग वहां पहुँचते हैं, यह भी परिलक्षित हुआ। ये वह लोग थे जिनके दिलों में भारतीय राष्ट्रगान के प्रति कोई सम्मान नहीं था। राष्ट्रगान होता है। लोग इससे बेपरवाह बैठे रहते है, बातें करते है। राष्ट्रगान को बीच में ही बंद कर दिया जाता है। बेशर्मी के साथ यह बताया जाता है कि माइक चेक किया जा रहा था। इन लोगों को माइक चेक के लिए अन्य कोई शब्द नहीं मिलते हैं। खालिस्तान समर्थक नारेबाजी करते हैं। भारत विरोधी नारेबाजी होती है। राहुल को मोहब्बत की दुकान कुछ देर के लिए रोकनी होती है। रजिस्ट्रेशन के बाद ही ये लोग कार्यक्रम में पहुँचे थे। सैन फ्रैंसिस्को कार्यक्रम के आयोजकों और श्रोताओं की मानसिकता का अनुमान लगाया जा सकता है। इसके बाद दुकान फिर शुरू होती है तो उसमें भारत की छवि के प्रतिकूल विचार सुनाई देते है।
राहुल कहते हैं कि राजनीति में जिसकी जरूरत थी, उन्हें भाजपा और संघ ने कंट्रोल कर रखा था। लोगों को डराया जा रहा था। एजेंसी का इस्तेमाल किया जा रहा था। हमें राजनीति करने में मुश्किल आ रही थी। ऐसे में श्रीनगर तक यात्रा का फैसला किया। सरकार के पास जितनी भी ताकत थी, उन्होंने यात्रा को रोकने में लगा दी। भारत के लोग जानते है कि राहुल की यात्रा रोकने के लिए सरकार ने कुछ भी नहीं किया था। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यह आवश्य कहा था कि यहां व्यवस्था में सुधार के चलते ही राहुल की यात्रा सम्भव हो सकी। लेकिन राहुल विदेश में कहते है कि भारत में लोकतंत्र पर हमले हो रहे हैं। राजनीति करना मुश्किल हो गया है। अमेरिका में राहुल ने अपनी चिर परिचित शैली में नरेंद्र मोदी पर हमले किए। उनके अनुसार कुछ लोगों का ग्रुप है, जो यह मानते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है। उन्हें लगता है कि वह भगवान से भी ज्यादा जानते हैं। वह भगवान के साथ बैठकर उन्हें बता सकते हैं कि क्या चल रहा है। हमारे प्रधानमंत्री ऐसा ही एक उदाहरण हैं। अगर मोदीजी को भगवान के बगल बैठा दिया जाए तो वह भगवान को बताना शुरू कर देंगे कि दुनिया कैसे चलती है। भगवान भी चकित हो जाएंगे कि ये मैंने क्या बना दिया। गुस्से, घृणा और घमंड में भरोसा करने वालों को भाजपा की मीटिंग में बैठना चाहिए। राहुल यही नहीं रुकते। कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय और सभी माइनॉरिटियों के बीच आज भारत में भेदभाव हो रहा है। अल्पसंख्यक गरीबी में धंसता जा रहा है। राहुल की बात पर विश्वास करें तो मानना होगा कि कांग्रेस के राज्य में दंगे नहीं हुए, और नौ वर्ष पहले तक अल्पसंख्यक अमीर हुआ करते थे। राहुल कहते हैं कि भारत में बेरोजगारी, महंगाई, नफरत,शिक्षा संस्थानों में है। यदि यह सच मान लें तो राहुल को यह बताना चाहिए कि क्या अमेरिका और ब्रिटेन को भारत की इन समस्याओं का समाधान करना चाहिए। क्या इसे भारत में विदेशी हस्तक्षेप के लिए राहुल का आमन्त्रण माना जाए।
राहुल गांधी को विदेश में देश की संस्कृति का मजाक बनाने में भी कोई संकोच नहीं होता। वह साष्टांग प्रणाम का मखौल उड़ाते हैं। राहुल गांधी देश के स्वाभिमान की प्रतीक बनी नई संसद का विदेश में मजाक उड़ाते है। राहुल की इस बात पर देश में कौन विश्वास करेगा कि भारत में अब राजनीति के सामान्य टूल, मसलन जनसभा, रैली आदि काम नहीं कर रहे। (हिफी)

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