चुनावी महासमर-2024

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज इस बात पर मंथन कर रहे हैं कि कथित विपक्षी एकता क्या मोदी की सरकार को चुनौती दे सकती है? विपक्षी एकता अगर कांग्रेस के नेतृत्व मंे बनती है तो 2019 का तजुर्बा भाजपा के पक्ष मंे ही है। उस साल भाजपा और कांग्रेस के बीच 190 सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ था। इनमंे से भाजपा ने 175 सीटों पर विजय हासिल की थी जबकि कांग्रेस सिर्फ 15 सीटें जीत पायी थी। अब बिहार के पटना मंे 23 जून को विपक्षी दलों की महत्वपूर्ण बैठक में अगर 2024 के चुनावी महासमर में मुकाबला नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी होने के आसार बनते हैं तो इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। एक दूसरा समीकरण गैर कांग्रेसी दलों की एकता का है। इन दलों के खिलाफ भाजपा को सीधे मुकाबले मंे उतनी सफलता नहीं मिल पायी। भाजपा का 185 सीटों पर इस तरह का मुकाबला हुआ था जिनमें गैर कांग्रेसी दलों ने 57 सीटों पर जीत दर्ज की थी। संभवतः यही कारण है कि भाजपा गैर कांग्रेस दलों के साथ तालमेल बैठाने का प्रयास कर रही है। बिहार मंे ही जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के साथ भाजपा का गइबंधन स्पष्ट दिख रहा है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश मंे ओमप्रकाश राजभर की सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), कर्नाटक मंे जनता दल एस और आंध्र प्रदेश मंे चंद्रबाबू नायडू की तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) से सीटों को लेकर तालमेल हो सकता है। ये सभी दो-दो, चार-चार सांसद पाकर भी संतुष्ट हो जाएंगे।
बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को विपक्षी नेताओं की बैठक होगी, जो लोकसभा चुनाव 2024 के संदर्भ में बेहद अहम है, क्योंकि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे, सीपीआई सचिव डी. राजा, सीपीएम सचिव सीताराम येचुरी, सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हो सकते हैं। यह विपक्ष की बड़ी बैठक होगी, जिसमें लोकसभा चुनाव 2024 के रोडमैप पर बातचीत होगी। विपक्ष की भूमिका पर पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके हैं कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए, तो भाजपा 100 सीटों के भीतर सिमट जाएगी। लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला कुल 190 सीटों पर था, जिनमें से 175 पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी और कांग्रेस मात्र 15 सीटें हासिल कर पाई थी। इन सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा का स्ट्राइक रेट 92 प्रतिशत रहा था, यानी भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा तब होगा, जब कांग्रेस से उसका सीधा मुकाबला हो। इसी वजह से ज्यादातर समय भाजपा की यही कोशिश रहती है कि चुनाव राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी बने, ताकि उसे चुनाव में फायदा हो सके। भाजपा का जो स्ट्राइक रेट कांग्रेस के खिलाफ 92 प्रतिशत रहा, वहीं आंकड़ा गैर-कांग्रेस पार्टियों के खिलाफ 69 प्रतिशत रह गया। लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों को देखें, तो गैर-कांग्रेस पार्टियों के खिलाफ भाजपा का कुल 185 सीटों पर सीधा मुकाबला था, जिनमें से 128 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की और अन्य दलों को 57 सीटों पर जीत हासिल हुई। दूसरी ओर, भाजपा के साथ सीधे मुकाबले वाली सीटों पर जहां कांग्रेस का स्ट्राइक रेट मात्र 8 प्रतिशत है, वहीं अन्य दलों के खिलाफ उसका स्ट्राइक रेट 52 प्रतिशत रहा। लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस और अन्य दलों के बीच कुल 71 सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ था, जिनमें से 37 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, और अन्य दलों ने 34 सीटें जीती थीं। सपा, बसपा और आरएलडी का गठबंधन जाति और धर्म के हिसाब से भाजपा के खिलाफ काफी मजबूत था, लेकिन चुनाव परिणाम में तीनों पार्टियों को झटका लगा। परिणामों में भाजपा गठबंधन ने कुल 80 सीटों में से 64 पर जीत हासिल की, वहीं उसका वोट शेयर भी लगभग 50 प्रतिशत रहा। सपा और बसपा गठबंधन को सिर्फ 15 सीटों से संतोष करना पड़ा।
इसी तरह कर्नाटक का परिणाम भी हमारे सामने है, जहां 2019 में जेडीएस और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे, लेकिन 28 में से सिर्फ दो सीटें ही उनके खाते में आई थीं, और भाजपा राज्य की 25 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
अब अगर बात करें मौजूदा समय की, तो अभी बन रहे संभावित विपक्षी गठबंधन के घटक दलों के खिलाफ भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2019 में कुल 257 सीटों पर जीत दर्ज की थी, यानी 257 सीटों पर विपक्षी गठबंधन के संभावित दल भाजपा के मुकाबले दूसरे स्थान पर रहे थे। वैसे, देशभर में भाजपा ने कुल 303 सीटों पर जीत हासिल की थी।
बहरहाल मिशन 2024 की तैयारी तेज हो गई है। भारतीय जनता पार्टी किसी भी हाल में पकड़ ढीली नहीं रखना चाहती है। कई तरह के राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं। एनडीए को मजबूत और बड़ा बनाने के लिए बीजेपी की कोशिश ज्यादा से ज्यादा दलों को इसमें लाने की है। इसके तहत उन दलों को टारगेट किया जा रहा जिनकी अलग-अलग कारणों से कांग्रेस से नहीं बनती है। बीजेपी एक नहीं कई मोर्चों पर काम रही है। इस स्ट्रैटेजी में सबसे अहम है एनडीए से बिदके दलों को दोबारा अपने खेमे में लाना। शिरोमणि अकाली दल, तेलुगु देशम पार्टी, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा ऐसी कुछ पार्टियां हैं जिनकी दोबारा एनडीए से जुड़ने में दिलचस्पी दिख रही है। स्ट्रैटेजी का दूसरा पार्ट नए दलों को एनडीए में शामिल करना होगा। मसलन, जनता दल (जेडीएस) सरीखे दलों को जोड़कर खेमे को मजबूत किया जाएगा। उनका रवैया भी बीजेपी के लिए नरम दिख रहा है। इस बात को हाल की मेल-मुलाकातों से समझने की कोशिश करते हैं। गुजरे 3 जून को तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया एन चंद्रबाबू नायडू की गृहमंत्री अमित शाह से राजधानी में मुलाकात हुई थी। इसके बाद बीजेपी और टीडीपी में गठबंधन की अटकलें तेज हो गईं। माना जा रहा है कि 2024 से पहले दोनों के बीच गठबंधन पर मुहर लग सकती है। 2018 में टीडीपी ने एनडीए से रास्ते अलग कर लिए थे। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर टीपीडी-बीजेपी गठबंधन टूटा था।
बीजेपी का पुराना सहयोगी अकाली दल भी एनडीए में शामिल होने को इच्छुक है। अकाली दल के नेता महेशिंदर सिंह ग्रेवाल ने कह दिया है कि पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी। ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर अकाली नेता ने यह ऐलान किया। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि अगर बीजेपी अपने सहयोगी दलों को उचित सम्मान देती है तो कुछ भी संभव है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद से ही बीजेपी से पार्टी की नजदीकी बढ़ने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह समेत कई बीजेपी के दिग्गज बादल को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। पीएम ने प्रकाश सिंह बादल को पिता तुल्य बताया था। एचडी देवेगौड़ा की जेडीएस का रुख भी बीजेपी के लिए पॉजिटिव दिख रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने ओडिशा ट्रेन हादसे पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का सपोर्ट किया। (हिफी)