Uncategorizedअध्यात्मधर्म-अध्यात्म

भोजन और उसके विविध रूप

धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे (सत्तरहवां अध्याय-04)

(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)

रामायण अगर हमारे जीवन में मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो श्रीमद् भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। द्वापर युग के महायुद्ध में जब महाधनुर्धर अर्जुन मोहग्रस्त हो गये, तब उनके सारथी बने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध मैदान के बीचोबीच रथ खड़ाकर उपदेश देकर अपने मित्र अर्जुन का मोह दूर किया और कर्तव्य का पथ दिखाया। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक सशक्त और अविभाज्य राष्ट्र बनाया था। गीता में गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनकी विशद व्याख्या की जा सकती है। श्री जयदयाल गोयन्दका ने यह जनोपयोगी कार्य किया। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता के कुछ गूढ़ शब्दों को जन सामान्य की भाषा में समझाने का प्रयास किया है ताकि गीता को जन सामान्य भी अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सके।-प्रधान सम्पादक

प्रश्न-वे आहार कैसे होते हैं?
उत्तर-‘रस्याः’, óिग्धाः’, स्थिराः’ और ‘हृद्याः’ इन पदों से भगवान् ने यही बात समझायी है।
(1) दूध, चीनी आदि रस युक्त पदार्थों को ‘रस्याः’ कहते हंै।
(2) मक्खन, घी तथा सात्त्विक पदार्थों से निकाले हुये तैल आदि स्नेह युक्त पदार्थों को ‘स्निग्धाः’ कहते हैं।
(3) जिन पदार्थों का सार बहुत काल तक शरीर में स्थिर रह सकता है, ऐसे ओज उत्पन्न करने वाले पदार्थों को ‘स्थिराः’ कहते हैं।
(4) जो गंदे और अपवित्र नहीं हैं तथा देखते ही मन में सात्त्विक रुचि उत्पन्न करने वाले हैं, ऐसे पदार्थों को ‘हृद्याः कहते हैं।
प्रश्न-‘आहाराः’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-भक्ष्य, भोज्य, लेहा और चोष्य-इन चार प्रकार के खाने योग्य पदार्थों को आहार कहते हैं। इसकी व्याख्या पंद्रहवें अध्याय के चैदहवें श्लोक में देखनी चाहिये। वहाँ चतुर्विध अन्न के नाम से इसका वर्णन हुआ है।
प्रश्न-भगवान् ने पूर्व के श्लोक में आहार के तीन भेद सुनने को कहा था, परन्तु यहाँ ‘सात्त्विक प्रियाः’ से आहार करने वाले पुरुषों की बात कैसे कही?
उत्तर-जो पुरुष जिस गुण वाला है, उसको उसी गुण वाला आहार प्रिय होता है। अतएव पुरुषों की बात कहने से आहार की बात आप ही आ गयी। मनुष्य की भोजन विषयक प्रियता के सम्बन्ध से उसकी पहचान बताने के उद्देश्य से ऐसा प्रयोग किया गया है।
कट्बम्ललवणात्युष्ण तीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।। 9।।
प्रश्न-कड़वे, खट्टे, लवण युक्त, बहुत गरम, तीखे, रूखे और दाहकारक कैसे आहार को कहते हैं?
उत्तर-नीम, करेला आदि पदार्थ कड़वे हैं, कुछ लोग काली मिर्च आदि चरपरे पदार्थों को कड़वे मानते हैं। किंतु इस वर्णन में तीक्ष्ण शब्द अलग आया है, ‘कटु’ शब्द का तिक्त अर्थ मानकर उसका अर्थ ‘कड़वा’ किया गया है। इमली आदि खट्टे हैं, क्षार तथा विविध भाँति के नमक नमकीन हैं, बहुत गरम-गरम वस्तुएँ अति उष्ण हैं, लाल मिर्च आदि तीखे हैं, भाड़ में भूजे हुए अन्नादि रूखे हैं और राई आदि पदार्थ दाह कारक हैं।
प्रश्न-‘दुःखशोकामयप्रदाः’ का क्या भाव है?
उत्तर-खाने के समय गले आदि में जो तकलीफ होती है तथा जीभ, तालू आदि का जलना, दाँतों का खट्टा जाना, चबाने में दिक्कत होना, आँखों और नाकों में पानी आ जाना, हिचकी आना आदि जो कष्ट होते हैं- उन्हें दुःख कहते हैं। खाने के बाद जो पश्चाताप होता है, उसे ‘शोक’ कहते हैं और खाने से जो रोग उत्पन्न होते हैं, उन्हे ‘आमय’ कहते हैं। उपर्युक्त कड़वे, खट्टे आदि पदार्थों के खाने से ये दुःख शोकामयप्रदौः’ कहा है। अतएव इनका त्याग करना उचित है।
प्रश्न-ये राजस पुरुष को प्रिय हैं, इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर-इससे यह भाव दिखलाया है कि उपर्युक्त आहार राजस है, अतः जिनको इस प्रकार का आहार प्रिय यानी रुचिकर है, उनको रजोगुणी समझना चाहिये।
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।। 10।।
प्रश्न-‘याम’ प्रहर को कहते हैं, अतएव ‘यातयामम्’ का अर्थ जिस भोजन को तैयार हुए एक प्रहर बीत चुका हो ऐसा न मानकर अधपका क्यों माना गया है? और अधपका भेाजन कैसे भोजने को कहते हैं?
उत्तर-इसी श्लोक में ‘पर्युषितम्’ या बासी अन्न को तामस बतलाया गया है। ‘यातयामम्’ का अर्थ एक प्रहर पहले का बना भोजन मान लेने से ‘बासी’ भोजन को तामस बतलाने की कोई सार्थकता नहीं रह जाती क्योंकि जब एक ही प्रहर पहले बना हुआ भोजन भी तामस है, तब एक रात पहले बने भोजन का तामस होना तो यों ही सिद्ध हो जाता है, उसे अलग तामस बतलाने की क्या आवश्यकता है। यह सोचकर यहाँ ‘यामयामम्’ का अर्थ ‘अधपका’ किया गया है।
अधपका उन फलों अथवा उन खाद्य पदार्थों को समझना चाहिये जो पूरी तरह से पके न हों, अथवा जिनके सिद्ध होने में (सीझने में) कमी रह गयी हो।
प्रश्न-‘गतरसम्’ पद कैसे भोजन का वाचक है?
उत्तर-अग्नि आदि के संयोग से, हवा से अथवा मौसम बीत जाने आदि के कारणों से जिन रस युक्त पदार्थों का रस सूख गया हो जैसे संतरे, ऊंख आदि का रस सूख जाया करता है। उनको ‘गतरस’ कहते हैं।
प्रश्न-‘पूति’ पद किस प्रकार के भोजन का वाचक है?
उत्तर-खाने की जो वस्तुएँ स्वभाव से ही दुर्गन्ध युक्त हों (जैसे प्याज, लहसुन आदि) अथवा जिनमें किसी क्रिया से दुर्गन्ध उत्पन्न कर दी गयी हो, उन वस्तुओं को ‘पूति’ कहते हैं।
प्रश्न-‘पर्युषितम्’ पद कैसे भोजन का वाचक है?
उत्तर-पहले दिन के बनाये हुए भोजन को ‘पर्युषित’ या बासी कहते हैं। रात बीत जाने से ऐसे खाद्य पदार्थों में विकृति उत्पन्न हो जाती है और उनके खाने से नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। उन फलों को भी बासी समझना चाहिये, जिनमें पेड़ से तोड़े बहुत समय बीत जाने के कारण विकार उत्पन्न हो गया हो।
प्रश्न-‘उच्छिष्ट’ कैसे भोजन का वाचक है?
उत्तर-अपने या दूसरे के भोजन कर लेने पर बची हुई जूठी चीजों को ‘उच्छिष्ट कहते हैं।
प्रश्न-‘अमेध्यम्’ पद कैसे भोजन का वाचक है?
उत्तर-मांस, अण्डे आदि हिंसामय और शराब-ताड़ी आदि निषिद्ध मादक वस्तुएँ जो स्वभाव से ही अपवित्र हैं अथवा जिनमें किसी प्रकार के संग दोष से, किसी अपवित्र वस्तु, स्थान, पात्र या व्यक्ति के संयोग से या
अन्याय और अधर्म से उपार्जित असत् धन के द्वारा प्राप्त होने के कारण अपवित्रता आ गयी हो-उन सब वस्तुओं को ‘अमेध्य’ कहते हैं। ऐसे पदार्थ देव-पूजन में भी निषिद्ध माने गये हैं।
प्रश्न-‘च’ और ‘अपि’ इन अव्ययों का प्रयोग करके क्या भाव दिखलाया गया है?
उत्तर-इनके प्रयोग से यह भाव दिखलाया गया है कि जिन वस्तुओं में उपर्युक्त दोष थोड़े या अधिक हों, वे सब वस्तुएँ तो तामस हैं ही उनके सिवा गाँजा, भाँग, अफीम, तम्बाकू, सिगरेट, बीड़ी, अर्क, आसव और अपवित्र दवाइयाँ आदि तमोगुण उत्पन्न करने वाली जितनी भी खान-पान की वस्तुएँ हैं-सभी तामस हैं।-क्रमशः (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button