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यूपी की सियासत की बानगी है घोसी!

 

देश को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश मंे 2024 के लोकसभा चुनाव मंे इस बार सियासत बदली हुई नजर आएगी। कर्नाटक मेें बेंगलुरु मंे 26 दलों के विपक्षी गठबंधन का एक घटक समाजवादी पार्टी (सपा) है। इस गठबंधन मंे कांग्रेस भी शामिल है लेकिन मायावती की बहुजन समाज पार्टी शामिल नहीं है। बसपा की रणनीति क्या रहेगी, यह स्पष्ट नहीं है। इसीलिए लोकसभा चुनाव से पहले घोसी विधानसभा उपचुनाव को राजनीति की बानगी कहा जा रहा है। सपा विधायक रहे दारा सिंह चैहान ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। इसी के चलते यहां उपचुनाव हो रहा है। भाजपा ने दारा सिंह चैहान जो कि दलित समुदाय से आते हैं, को ही अपना उम्मीदवार बनाया जबकि सपा ने सवर्ण मतदाताओं, विशेष रूप से ठाकुरों को प्राथमिकता देते हुए सुधाकर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। यह राजनीति की उलटबांसी ही है कि भाजपा जिसे सवर्णों की पार्टी कहा जाता है, उसने दलित समुदाय के व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया है जबकि सपा ने पीडीए अर्थात् पिछड़े-दलित और आदिवासी का नारा दे रखा है लेकिन घोसी मंे क्षत्रिय समाज के सुधाकर ंिसह को प्रत्याशी बनाया। इसके अलावा एक उलझन भरा समीकरण यह भी है कि घोसी में भाजपा और सपा के बीच ही सीधा मुकाबला हो रहा है। यहां कांग्रेस और बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारे। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस और बसपा ने सपा प्रत्याशी के समर्थन की भी घोषणा नहीं की है। इससे राजनीतिक पंडित यह अनुमान लगा रहे हैं कि बसपा ने दलित वोट बैंक को भाजपा के लिए छोड़ दिया है जो दलितों को आकर्षित करने का अर्सें से प्रयास कर रही है। ऐसा माना जाता है कि घोसी मंे दलित मतदाता ही निर्णायक साबित होंगे लेकिन यह भी तय है कि मुस्लिम वोट एकजुट होकर सपा के प्रत्याशी को मिल सकता है।
घोसी उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने समाजवादी पार्टी (सपा) के बागी नेता और निवर्तमान विधायक दारा सिंह चैहान को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस सीट के लिये आगामी पांच सितंबर को मतदान होगा। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर घोसी सीट से ही जीते चैहान पिछले महीने भाजपा में शामिल हो गए थे। यह सीट उनके विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दिये जाने के कारण रिक्त हुई है। उपचुनाव को मोटे तौर पर सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल सपा के बीच सीधे मुकाबले के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि इस उपचुनाव के परिणाम का उत्तर प्रदेश विधानसभा में कोई खास असर नहीं पड़ेगा लेकिन भाजपा अगले लोकसभा चुनाव से पहले गैर-यादव अन्य पिछड़े वर्गों के बीच अपनी लोकप्रियता साबित करने के लिए घोसी सीट को सपा से छीनने की हर मुमकिन कोशिश करेगी। दूसरी ओर, सपा लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को झटका देने की कोशिश करेगी और राज्य में अपने मूल मतदाताओं को एक मजबूत संदेश भेजने का प्रयास करेगी। प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 255 विधायक हैं, जबकि उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी के क्रमशः 13 विधायक और छह विधायक हैं। भाजपा के नए सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधानसभा में छह विधायक हैं। सपा के पास 108 विधायक हैं जबकि उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के पास नौ विधायक हैं। कांग्रेस और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के पास 2-2 विधायक हैं, जबकि बसपा का एक विधायक है। विधानसभा में एक सीट (घोसी) खाली है।
पूर्वांचल की घोसी विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव विपक्षी गठबंधन इंडिया के गठन और पूर्वांचल में असरदार मानी जाने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल होने के बाद राज्य में होने वाला पहला चुनाव है। सपा ने उपचुनाव के लिये राजपूत सुधाकर सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। उसके अगले ही दिन भाजपा ने दारा सिंह चैहान को मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया।
हालात तनावपूर्ण है। उपचुनाव के लिए प्रचार करने आए भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दारा सिंह चैहान पर 20 अगस्त को स्याही फेंकी गई। अपर पुलिस अधीक्षक महेश सिंह अत्री ने बताया कि चैहान कोपागंज ब्लाक में स्थित एक कॉलेज में जन चैपाल समाप्त होने के बाद दूसरे कार्यक्रम में जा रहे थे। महेश सिंह अत्री ने बताया कि चैहान अदरी चट्टी पर पहुंचे और वहां मौजूद भाजपा कार्यकर्ताओं को देखकर अपनी कार से बाहर निकले, उसी दौरान मोनू यादव नामक युवक ने उनके ऊपर काली स्याही फेंक दी। दारा सिंह चैहान 2022 में घोसी सीट से ही समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चुने गए थे, मगर पिछले महीने वह विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए।
घोसी विधानसभा क्षेत्र में कुल 4,30,452 मतदाता हैं। इनमें लगभग 65 हजार दलित और 60 हजार मुसलमान मतदाता हैं। इसके अलावा 40 हजार यादव, 40 हजार राजभर, 36 हजार लोनिया चैहान हैं। घोसी उपचुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी इस चुनावी मैदान से बाहर दिखाई दे रही है।
बीएसपी की पकड़ ज्यादातर दलित और कुछ मुस्लिम वोटरों पर हैं। ऐसे में मायावती के उम्मीदवार नहीं उतारने से ये वोटर सपा के साथ शिफ्ट हो सकते हैं। वहीं ज्यादातर यादव और मुस्लिम के वोट एक तरीके से सपा के साथ हैं। सपा के ठाकुर उम्मीदवार उतारने से सवर्ण समाज के कुछ वोटर भी उनके साथ जुड़ सकते हैं। इसका मतलब है कि सपा के खाते में अच्छी संख्या में दलित, यादव और मुस्लिम वोट पड़ सकते हैं, जो निर्णायक साबित हो सकते हैं। साथ ही 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा ने बीएसपी के मैदान में रहते हुए भी बीजेपी को हराया था। यही वजह है कि मायावती के फैसले से सपा, बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है। सपा के सामने संकट यह है कि बीएसपी के प्रत्याशी नहीं उतारने की वजह से दलित वोट बीजेपी के साथ भी जा सकता है। वहीं बीजेपी के ओबीसी पर दांव की वजह से दूसरी पिछड़ी जातियों का वोट भी उन्हें मिल सकता है। इसके अलावा ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में शामिल होने का लाभ भी बीजेपी को मिल सकता है। इस सीट पर लगभग 40 हजार राजभर वोट हैं, जो ज्यादातर बीजेपी के पाले में जा सकता है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चैहान ही सपा की टिकट पर यहां से विधायक बने थे। वहीं सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह यहां से 2017 और 2019 के उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी से हार चुके हैं। सुधाकर सिंह 1996 में नत्थूपुर और परिसीमन के बाद घोसी विधानसभा क्षेत्र से 2012 में विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। ऐसे में इन जातियों के मत कमल पर पड़ने के बाद सपा के उम्मीदवार के लिए समस्या खड़ी हो सकती है।
विपक्षी दलों के बने इंडिया गठबंधन का भी घोसी विधानसभा चुनाव में परीक्षा होेगी। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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