जिसकी लाठी, उसकी भैंस

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हमारे देश मंे कहावतें बड़ी प्रासंगिक हैं। ये अनुभव से रची गयीं, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन सभ्यता के विकसित होने के बावजूद कभी न कभी उनके उदाहरण दिखाई पड़ जाते हैं। अभी गत 8 जून को देश की राजधानी दिल्ली मंे वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर और मुख्यमंत्री के बीच एक विश्वविद्यालय के कैम्पस का उद्घाटन करने के दौरान जिस तरह विवाद हुआ, उससे साबित हुआ कि जिसके पास लाठी है, उसी को भैंस मिलेगी। दिल्ली राज्य की शिक्षा मंत्री आतिशी ने तीन दिन पहले ही पत्रकार वार्ता मंे यह घोषणा कर दी थी कि नये कैम्पस का उद्घाटन मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल करेंगे लेकिन उपराज्यपाल निवास की तरफ से एक प्रेस नोट जारी किया गया जिसमंे कहा गया कि उद्घाटन उपराज्यपाल को ही करना है। इस कार्यक्रम की तारीख पहले 23 मई 2023 तय थी लेकिन मुख्यमंत्री के कहने पर उद्घाटन की तारीफ 8 जून तय की गयी। उद्घाटन करने के लिए दोनों अतिथि पहुंचे लेकिन फीता काटा उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने। लाठी उनके हाथ मंे है, इसलिए भैंस उनको ही मिली। अब आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक और मंत्री सौरभ भारद्वाज दलील दे रहे हैं कि पुलिस, लैण्ड और पब्लिक आर्डर उपराज्यपाल के अधीन हैं। एलजी को चाहिए कि पुलिस थानों का उद्घाटन करें। एजूकेशन और हायर एजूकेशन तो स्टेट के सब्जेक्ट हैं…। सबसे मजेदार तर्क तो एलजी वीके सक्सेना का है। उन्होंने कहा ‘मुझे अधिकारियों ने कहा है, आप उद्घाटन करें। इसलिए मैंने उद्घाटन कर दिया।
दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने 8 जून को गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी (आईपी यूनिवर्सिटी) के ईस्ट दिल्ली कैंपस का उद्घाटन किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मौजूद थे। मुख्य कार्यक्रम स्थल पर पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो लगी थी। वहीं उपराज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री की भी छोटी फोटो लगी थी। मुख्य कार्यक्रम स्थल पर उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को मुख्य अतिथि लिखा था, जबकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गेस्ट ऑफ ऑनर लिखा था। दरअसल उपराज्यपाल और दिल्ली की केजरीवाल सरकार में उद्घाटन को लेकर विवाद था। शिक्षा मंत्री आतिशी ने कहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री इसका उद्घाटन करेंगे। वहीं उपराज्यपाल दफ्तर का दावा था कि दिल्ली के एलजी को ही उद्घाटन करना था। उपराज्यपाल दफ्तर के मुताबिक दिल्ली के मुख्यमंत्री को पता था कि उद्घाटन उपराज्यपाल को करना था और उन्होंने ही 23 मई की तारीख बदलवा कर 8 जून रखवाई थी। दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा था कि पुलिस, लैंड और पब्लिक ऑर्डर उपराज्यपाल के अधीन आते हैं। एलजी को चाहिए कि पुलिस थानों का उद्घाटन करें, पुलिस हेडक्वाटर का उद्घाटन करें, स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का उद्घाटन करें, एजुकेशन और हायर एजुकेशन तो स्टेट सब्जेक्ट हैं और यह काम चुनी हुई सरकार का है। एलजी इसका उद्घाटन क्यों करना चाह रहे हैं। यह कैम्पस तब बनना शुरू हुआ था, जब ये (वीके सक्सेना) यहां एलजी नहीं थे।
5 जून को दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस नवनिर्मित कैंपस का उद्घाटन करेंगे लेकिन उपराज्यपाल निवास ने इस पर आपत्ति जाहिर की थी। उपराज्यपाल निवास की तरफ से जारी एक नोट में कहा गया कि यह पहले ही तय था कि उद्घाटन उपराज्यपाल को करना है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी पता था कि उद्घाटन उपराज्यपाल को करना है। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को गेस्ट ऑफ ऑनर और शिक्षा मंत्री को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित होना था। मनीष सिसोदिया ने इसके काम की शुरुआत की और चुनी हुई सरकार ने आगे इसके लिए काम किया। अब एलजी का यह कहना अजीब है कि मुझे अधिकारियों ने कहा है आप उद्घाटन करें। ऐसे तो एलजी कल अधिकारियों से कह सकते हैं कि सौरभ भारद्वाज के ऑफिस का उद्घाटन मैं करूंगा।
बहरहाल, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की अदावत काफी पुरानी है, जहां अधिकारों को लेकर लगातार जंग छिड़ी रहती है। केंद्र सरकार की तरफ से नियुक्त उपराज्यपाल और चुनी हुई दिल्ली सरकार के बीच इस लड़ाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला आया, जिसमें दिल्ली सरकार को ही दिल्ली का असली बॉस बताया गया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि चुनी हुई सरकार को ही फैसले लेने का अधिकार होना चाहिए। इस फैसले के बाद दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इसे अपनी जीत बताया और अधिकारियों के तबादले शुरू कर दिये। इसी के बाद केन्द्र सरकार ने अध्यादेश लाकर अधिकार छीन लिये। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि संबंधित सेवाओं को छोड़कर बाकी अधिकार दिल्ली सरकार को दिए जाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की सीमाओं के तहत एक लोकतांत्रिक सरकार में, प्रशासन की वास्तविक शक्ति निर्वाचित सरकार के हाथों में होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ये साफ हो गया कि दिल्ली में सीएम ही असली बॉस होंगे, वहीं एलजी को सरकार की सलाह से ही काम करना होगा लेकिन अध्यादेश ने सब कुछ बदल दिया।
दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन बाकी केंद्र शासित प्रदेशों से यहां कुछ नियम अलग हैं। साल 1991 में संविधान में संशोधन किया गया था, जिसके बाद अनुच्छेद 239एए और 239एबी प्रभाव में आए। दिल्ली में इन दोनों के तहत की कामकाज होता है। बाकी केंद्र शासित प्रदेशों में अनुच्छेद 239 लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार की तरफ से अध्यादेश लाया गया। जिसमें एलजी और
दिल्ली सरकार की शक्तियों को परिभाषित किया गया। इस बिल में साफतौर पर कहा गया था कि
दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है। (हिफी)