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पवार परिवार की कूटनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) मंे 10 जून को हुआ संगठनात्मक परिवर्तन बड़ी कूटनीति बताया जा रहा है। इस समय सत्ता से जुड़ा रहना सबसे सफल राजनीति माना जाता है। महाराष्ट्र मंे शरद पवार ने बहुत ही तिकड़म करने के बाद भाजपा को सत्ता से बेदखल कर और शिवसेना का सहारा लेकर सत्ता पर कब्जा किया था। उद्धव ठाकरे सत्ता को संभाल नहीं पाये और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व मंे शिवसेना के विधायक अलग हो गये। भाजपा तो जैसे इसी अवसर की तलाश में थी। उसने शिंदे को इसीलिए मुख्यमंत्री बनाया ताकि शिवसेना कहीं फिर एक न हो जाए। इस घटना से सबसे ज्यादा सबक राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी एनसीपी ने लिया है। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित करके अपने भतीजे अजित पवार को एक तरह से हाशिए पर कर दिया है। प्रफुल्ल पटेल को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाने से एनसीपी के टूटने का खतरा कम हो गया है। इसीलिए भतीजे अजित पवार भी खुलकर नाराजगी नहीं जता पा रहे हैं।
10 जून को एनसीपी स्थापना दिवस पर, पार्टी प्रमुख शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले और वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया। अध्यक्ष के रूप में काम करने के अलावा, सुश्री सुले को महाराष्ट्र का प्रभारी भी बनाया गया है, जिसे अजीत पवार संभाल रहे थे। इससे साफ संकेत हैं कि दिग्गज नेता अपनी पार्टी को एकजुट रखने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं और उन्होंने न सिर्फ पार्टी की उत्तराधिकार योजना को अमली जामा पहनाया है, बल्कि महाराष्ट्र में पार्टी की संभावनाओं को भी मजबूत किया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया। यह घोषणा शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता अजीत पवार की उपस्थिति में की गई। कुछ लोगों की सोच से उलट, इस कदम से अजीत पवार के हाशिये पर चले जाने की संभावना नहीं है, क्योंकि जमीन से जुड़े, स्थानीय प्रशासनिक मामलों पर पकड़ रखने वाले, और पश्चिमी महाराष्ट्र की गन्ना बेल्ट में पार्टी की रग-रग से वाकिफ अजीत के पास महाराष्ट्र में पार्टी के कामकाज पर पूरी स्वायत्तता रहने की संभावना है। कुछ ही हफ्ते पहले शरद पवार ने पार्टी प्रमुख पद से इस्तीफा दिया था, और समर्थकों के दुःखी हो जाने पर सिर्फ तीन दिन में उसे वापस ले लिया था। इस कदम से साफ है कि दिग्गज राजनेता को आगामी चुनाव में अपनी पार्टी के अवसर बढ़ने के आसार नजर आ रहे हैं और आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वह खुद को बिखरे विपक्ष की धुरी के तौर पर बड़ी भूमिका के लिए भी तैयार कर रहे हैं। राज्य में अब भी शरद पवार के बाद अजीत पवार ही निर्विवाद रूप से पार्टी के नेता हैं, लेकिन यह भी साफ है कि शरद पवार के इस्तीफे और उसके बाद पार्टी द्वारा दिए गए समर्थन की बदौलत उन्हें अपने दो विश्वस्तों- सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए नियुक्त करने का भावनात्मक जोश हासिल हुआ।
शरद पवार के फैसले के पीछे महाराष्ट्र के राजनैतिक हालात और महाविकास अघाड़ी में एनसीपी की भूमिका का अहम रोल है। एक ओर जहां महाराष्ट्र में सत्ता के शीर्ष पर विराजे देवेंद्र फडणवीस-एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले भाजपा-शिवसेना गठबंधन को उद्धव ठाकरे-अजीत पवार के गठजोड़ द्वारा कड़ी टक्कर दिए जाने की संभावना है, वहीं यह भी साफ है कि एकनाथ शिंदे द्वारा मराठा वोटों को चैनलाइज करने, शिवसैनिकों का समर्थन हासिल करने और मराठी मानुस के गौरव के मुद्दे को अपने पक्ष में करने में कामयाब होने को लेकर भाजपा नेतृत्व की बेचैनी को शरद पवार पहचानते हैं।
शरद पवार को यहां न केवल एक मौका नजर आ रहा है, बल्कि उन्हें जीत के आसार भी दिखाई दे रहे हैं। इसी वजह से वह हर किसी को कोई न कोई भूमिका देकर पार्टी को एकजुट रखने के मुद्दे पर बिल्कुल स्पष्ट हैं। कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी सुप्रिया ही ज्यादा सही हैं, क्योंकि 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन की नाकाम कोशिश करने वाले अजीत पवार से सीनियर कई नेता पार्टी में मौजूद हैं। शरद पवार की कार्यशैली की समझ रखने वाले उदाहरण देते हैं कि कैसे उन्होंने अलग-अलग वक्त पर छगन भुजबल, आर.आर. पाटिल और जयंत पाटिल जैसे नेताओं को राज्य का डिप्टी सीएम बनाया था और पार्टी को एकजुट रखने के लिए जिम्मेदारियों की भूमिका पर जोर दिया था। इसलिए यह सबसे अच्छा कदम था, जो पवार उठा सकते थे, ताकि न केवल अपनी पार्टी के भविष्य के लिए गेम प्लान बना सकें, बल्कि अपने समर्थकों को 2024 से शुरू होने जा रही असली चुनावी जंगों के लिए अवसर दे सकें।
शरद पवार द्वारा उठाए गए कदमों को समझना हमेशा मुश्किल रहा है, लेकिन उनमें से कई बहुत सोचे-समझे और राजनीतिक रूप से सही साबित हुए हैं। भले ही वह कदम 1999 में कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने और चुनाव-बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का रहा हो, जिससे वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बने रहे, और भाजपा के लिए कार्यकाल पूरा करना भी मुश्किल बना दिया, जबकि दूसरी ओर भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ भी अच्छे समीकरण बने रहे। शरद पवार के नए ऐलान से सुप्रिया सुले के राजनीतिक करियर को लेकर छाई अनिश्चितता भी दूर हो गई। लगातार सक्रिय रहने वाली सांसदों में शुमार बारामती की 53-वर्षीय सांसद सुप्रिया ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में वित्तीय साक्षरता शामिल करने, डेटा गोपनीयता से लेकर ऊर्जा तक, और जैविक कचरे से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य तक जैसे बहुत-से अहम मुद्दों पर सवाल उठाए हैं। महिलाओं को दो साल का मातृत्व अवकाश दिए जाने पर सुप्रिया ने ही जोर दिया।
अजित पवार भविष्य में पार्टी द्वारा लिए जाने वाले फैसलों से अलग-थलग नजर आएंगे। इसी वजह से उन्होंने चतुराई से एक योजना का खाका तैयार कर दिया। सुप्रिया सुले ने कहा, कौन कहता है कि वह (अजीत पवार) खुश नहीं हैं, क्या किसी ने उनसे पूछा है? ये खबरें अफवाह हैं। इससे पहले दिन में सुप्रिया सुले ने पुणे का दौरा किया और पार्टी के कई कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। कार्यकर्ताओं ने उनका अभिनंदन भी किया। अजित पवार ने भी अपने असंतोष की खबरों को खारिज करते हुए कहा था कि वह पार्टी के फैसले से खुश हैं। अजित पवार ने कहा, कुछ मीडिया चैनल ने ऐसी खबरें चलाईं कि अजित पवार को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मेरे पास महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि वह स्वेच्छा से राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं। महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, पिछले कई वर्षों से, सुप्रिया दिल्ली में हैं। मैं राज्य की राजनीति में सक्रिय हूं। मेरे पास राज्य की जिम्मेदारी है, क्योंकि मैं यहां का विपक्ष का नेता हूं। अजित पवार का यह कहना उनकी मजबूरी भी हो सकता है। (हिफी)

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