पाठ्य पुस्तकों पर राजनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पूर्व माध्यमिक से माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा हमारे आंतरिक व्यक्तित्व पर सबसे ज्यादा असर डालती है। इसलिए कक्षा 9 से 12 तक पाठ्यक्रम का निर्धारण बहुत महत्व रखता है। दुर्भाग्य से हमारे देश मंे राजनीति अब शिक्षा पर भी अपना प्रभाव डालने लगी है। इसीलिए राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को पाठ्यक्रम निर्धारित करते समय राजनीति को किनारे रख देना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। पाठ्य प्रस्तकों में सब्जेक्ट को मनचाहे रूप से बदला जा रहा हैं। ताजा मामला कर्नाटक राज्य का है जहां अभी हाल ही कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली है। कर्नाटक में पाठ्य प्रस्तकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघस की स्थापना करने वाले हेडगेवार का पाठ हटाने पर विचार किया जा रहा है। इससे पहले एनसीआरटीसी की 12वीं कक्षा में राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक में महात्मा गांधी की मौत का देश मंे साम्प्रदायिक स्थिति पर प्रभाव, गांधी की हिन्दू-मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिन्दू कट्टरपंथियों को उकसाया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर प्रतिबंध के पाठ्यक्रमों को हटा दिया गया था। इसका भी विरोध हुआ। सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव 9वीं से 12वीं कक्षा के लिए राजनीतिक विज्ञान की मूल पुस्तकों के मुख्य सलाहकार हैं। ये दोनों लोग चाहते हैं कि मुख्य सलाहकार के पद से उन्हें हटा दिया जाए।
राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पाठ्य पुस्तकों में ‘एकतरफा और अतार्किक’ काट-छांट करने से क्षुब्ध सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव ने परिषद को पत्र लिखकर कहा है कि राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में उनका नाम हटा दिया जाए। उन्होंने कहा कि पाठ्य पुस्तकों को युक्ति संगत बनाने की कवायद में इन्हें विकृत कर दिया गया है और अकादमिक रूप से बेकार बना दिया गया है। एनसीईआरटी ने हालांकि, कहा है कि किसी की सम्बद्धता को वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि स्कूली स्तर पर पाठ्यपुस्तकें किसी दिए गए विषय पर ज्ञान और समझ के आधार पर विकसित की जाती हैं और किसी भी स्तर पर व्यक्तिगत लेखन का दावा नहीं किया जाता है। सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव नौंवी से 12वीं कक्षा के लिए राजनीतिक विज्ञान की मूल पुस्तकों के मुख्य सलाहकार हैं। इन्होंने अपने पत्र में लिखा, युक्तिसंगत बनाने के नाम पर बदलाव को उचित ठहराया गया है, लेकिन हम इसके पीछे का तर्क समझ नहीं पा रहे हैं। हम पाते हैं कि पुस्तकों को विकृत कर दिया गया है। इसमें बहुत अधिक और अतार्किक काट-छांट की गई है और काफी बातें हटाई गई हैं लेकिन इसके कारण उत्पन्न कमी को पूरा करने का प्रयास नहीं किया गया है। एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, हमसे इन बदलावों के बारे में कोई सम्पर्क नहीं किया गया। अगर एनसीईआरटी ने दूसरे विशेषज्ञों से काट छांट को लेकर कोई चर्चा नहीं की, तब हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम इससे पूरी तरह से असहमत हैं। इसमें कहा गया है कि, हमारा मानना है कि ऐसी एकतरफा काट छांट से पाठ्य पुस्तक की भावना का उल्लंघन होता है।
पाठ्यपुस्तकों को पूरी तरह से दलगत भावना के अनुरूप आकार नहीं दिया जा सकता और ऐसा करना भी नहीं चाहिए। हमारे लिये शर्मिंदगी की बात है कि ऐसी विकृत और अकादमिक रूप से बेकार पाठ्यपुस्तकों के मुख्य सलाहकार के रूप में हमारे नाम का उल्लेख किया गया है। पत्र में कहा गया है, हम दोनों इन पाठ्यपुस्तकों से अपना नाम अलग रखना चाहते हैं और आग्रह करते हैं कि एनसीईआरटी हमारे नाम हटा दे। हम चाहते हैं कि यह तत्काल प्रभाव से हो और हमारे नाम का उपयोग नहीं किया जाए।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने नये शैक्षणिक सत्र के लिए 12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में ‘महात्मा गांधी की मौत का देश में साम्प्रदायिक स्थिति पर प्रभाव, गांधी की हिन्दू मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिन्दू कट्टरपंथियों को उकसाया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध सहित कई पाठ्य अंशों को हाल ही में हटा दिया था। वहीं, 11वीं कक्षा के सामाज शास्त्र की पुस्तक से गुजरात दंगों के अंश को भी हटा दिया गया है। एनसीईआरटी ने हालांकि कहा था कि पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की कवायद पिछले वर्ष की गई और इस वर्ष जो कुछ हुआ है, वह नया नहीं है।
उधर, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव की तैयारी कर रही है, जिसको लेकर विवाद खड़ा हो सकता है। भाजपा ने चेतावनी दी है कि अगर बदलाव किया गया तो वो चुप नहीं बैठेगी। हालांकि, सरकार ने साफ किया है कि छपी हुई किताबें वापस नहीं ली जाएंगी, बल्कि अलग से एक पुस्तिका सभी स्कूलों को भेजी जाएगी। इस पुस्तिका में दिशानिर्देश के साथ-साथ नए चैप्टर्स भी शामिल हो सकते हैं। साल 2022 में बोम्मई सरकार ने कक्षा 1 से लेकर 10 तक के पाठ्यक्रम में कुल 8 बदलाव किए थे, जिनकी समीक्षा कांग्रेस की सिद्धरमैय्या सरकार कर रही है। बीजेपी बदलाव के पक्ष में नहीं है। भारतीय जनता पार्टी को आशंका है कि वीर सावरकर और संघ के संस्थापक हेडगेवार से जुड़े चैप्टर्स हटाए जा सकते हैं।
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने कहा, उम्मीद है कि इस महीने के आखिर तक बदलाव कर लिए जाएंगे। मैं बच्चों के हित में यह कर रहा हूं, किस पार्टी ने क्या किया और क्या सोचा। यह सब मैं नहीं सोचता। सरकार की ओर से स्कूलों को जारी होने वाली दिशानिर्देश पुस्तिका में बताया जाएगा कि पहले से प्रकाशित किताबों में किन चैप्टर को पढ़ाया जाए और किसे नहीं। इसके अलावा अगर नए चैप्टर्स जोड़े जाएंगे तो वो भी इसमें शामिल होंगे। तकनीकी समिति पाठयक्रम की समीक्षा कर रही है, समिति की सिफारिश इस महीने कैबिनेट के सामने रखी जाएगी। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद ही दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर पहले भी कई बार विवाद हुआ है। जब बीजेपी की बोम्मई सरकार ने कक्षा 8 के कन्नड़ भाषा की किताब के एक चैप्टर में जोड़ा था कि वीर सावरकर अंडमान निकोबार की जेल से बुलबुल पक्षी के पंखों पर बैठकर देश का जाएजा लेने आया करते थे। आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के भाषण को एक अध्याय के तौर पर शामिल करने पर भी विवाद हुआ था। इसके अलावा टीपू सुलतान और समाझ सुधारक पेरियार से जुड़े चैप्टर्स के साथ छेड़छाड़ की गई थी। (हिफी)