राहुल की आदिवासी राजनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
इसी साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए राजनीतिक दल कोई भी मुद्दा सामने आते ही उसे लपक लेते हैं। एक आदिवासी युवक के साथ कथित भाजपा नेता के दुव्र्यवहार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उठाया तो जाहिर है कि इसके पीछे आदिवासी राजनीति है। राज्य में 2018 मंे कांग्रेस ने सरकार बना ली थी लेकिन आपस की कलह ने पार्टी के दो टुकड़े कर दिये। ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के साथ चले गये और केन्द्र सरकार मंे मंत्री बने जबकि शिवराज सिंह चैहान ने कमलनाथ के हटते ही उनकी कुर्सी पर कब्जा कर लिया। इस बार ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस ने कोई बड़ी तैयारी कर ली है लेकिन भाजपा में भी सब कुछ ठीक नहीं है। भाजपा हाईकमान पहले शिवराज सिंह चैहान को हटाकर नये चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहता था लेकिन कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को हटाने का नतीजा देख मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुराने चेहरे को सामने लाने की योजना बनायी है। इसलिए शिवराज सिंह चैहान भी चैंकन्ने रहते हैं। आदिवासी युवक का मामला सामने आते ही उनकी सरकार ने ऐक्शन शुरू कर दिया। एक तरफ आरोपित को गिरफ्तार कर उसके घर पर बुलडोजर चलवाया गया तो दूसरी तरफ पीड़ित ने यहंा तक बयान दिया कि उसके साथ कुछ हुआ ही नहीं है। इस प्रकार राहुल गांधी एक सामान्य मामले मंे आदिवासी समुदाय की सहानुभूति अर्जित करने मंे कितना सफल रहते हैं, यह देखना होगा। राज्य में आदिवासियों के वोट बैंक को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
मध्य प्रदेश के सीधी में आदिवासी युवक पर पेशाब करने वाले बीजेपी नेता प्रवेश शुक्ला को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। अब इस पूरे मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा,’ भाजपा राज में आदिवासी भाइयों और बहनों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में एक भाजपा नेता के अमानवीय अपराध से सारी इंसानियत शर्मसार हुई है। यह भाजपा का आदिवासियों और दलितों के प्रति नफरत का घिनौना चेहरा और असली चरित्र है।’ कांग्रेसी नेता कांतिलाल भूरिया ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और पीड़ित परिवार को 2 करोड़ का मुआवजा देने की मांग है। सीधी की घटना को लेकर कांग्रेस पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन भी करेगी।
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के वोटों के कारण ही कांग्रेस सत्ता हासिल कर पायी थी। कांग्रेस को 47 में से 30 सीटें मिली थीं। प्रदेश में आदिवासियों की बड़ी आबादी होने से 230 विधानसभा में से 84 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है। प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के खाते में 15 सीट आयी थीं लेकिन 2018 के चुनाव में सीन एकदम उल्टा हो गया। आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 पर ही जीत दर्ज कर सकी। कांग्रेस ने 30 सीटें जीत ली थीं। भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी। बहरहाल देखना होगा कि 2023 के चुनावों में आदिवासी समाज किस दल को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाता है। बताया जा रहा है प्रवेश शुक्ला बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला का पूर्व विधायक प्रतिनिधि है। उसका यह वीडियो 9 दिन पुराना बताया जा रहा है। वीडियो सीधी जिले के कुबरी बाजार का है। यहां मानसिक रूप से विक्षिप्त आदिवासी युवक बैठा था। प्रवेश शुक्ला ने नशे की हालत में उसके ऊपर पेशाब कर दी। किसी ने इसका वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर डाल दिया। सीधी की घटना पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने नाराजगी जताई। उसके घर पर बुलडोजर चला दिया गया।
आरोपी प्रवेश शुक्ला के खिलाफ एनएसए लगा दिया गया है। प्रवेश शुक्ला भारतीय युवा मोर्चा का उपाध्यक्ष भी बताया गया है। वहीं प्रवेश शुक्ला बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला का प्रतिनिधि भी बताया गया है। हालांकि केदारनाथ शुक्ला ने प्रवेश शुक्ला के प्रतिनिधि होने की खबरों का खंडन किया है।
प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्घ्या 153.16 लाख (जनगणना 2011 के अनुसार) जो कि राज्य की कुल जनसंख्घ्या का 21.10 प्रतिशत है, इस प्रकार मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य है, जहाँ हर पांचवा व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग का है।देश की कुल आदिवासी आबादी का 14.70 प्रतिशत प्रदेश में निवास करती हैआबादी के लिहाज से मध्यप्रदेश को आदिवासी राज्य कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रदेश में देश की सबसे अधिक जनजातीय जनसंख्या है। सामान्य तौर पर जनजातीय समुदाय जंगलों में निवास करते हैं, मगर अब स्थितियां बदल रही हैं। आदिवासी मैदानी इलाकों और शहरी क्षेत्र में भी बसने लगे हैं।अनुसू चित जनजातियों की सूची संशोधन (1976) में 46 समुदायों के तहत मध्यप्रदेश को अधिसूचित किया गया। वर्ष 2003 में जारी अधिसूचना में कीर, मीना और पारधी जनजातियों को विलोपित कर दिया गया। ऐसे में अब कुल 43 अनुसूचित जनजाति समूह मध्यप्रदेश में अधिसूचित हैं।
मध्य क्षेत्र के तहत नर्मदापुरम, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रायसेन आदि जिल हैं। इनमें गौंड, बैगा, कोल, कोरकू परधान, भारिया और मुरिया निवास करते हैं। पश्चिम क्षेत्र के तहत झाबुआ, आलीराजपुर, धार, खरगोन, बड़वानी और रतलाम जिलों से यह क्षेत्र पहचाना जाता है। इसमें भील, भिलाला, परितबा, बारेला और तड़नी आदिवासी रहते हैं। चंबल क्षेत्र के तहत श्योपुर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, गुना, दतिया, ग्वालियर आदि जिलों में सहरिया जनजाति का बसेरा है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के सियासी समीकरण आदिवासी वोट बैंक पर टिके हुए हैं। प्रदेश में विधानसभा की 230 सीट में से 47 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा भी कई सीटों पर आदिवासी वोटरों का खासा दखल है। प्रदेश में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 2 करोड़ से भी अधिक है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल इस वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक ओर भाजपा सरकार ने योजनाओं की बौछार कर दी है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने आदिवासियों को साधने के लिए विशेष प्लान तैयार किया है। मध्य प्रदेश की सियासत आदिवासियों के इर्द-गिर्द चलती हुई नजर आ रही है। बीजेपी कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दे रही है कि वो आदिवासियों के बीच जाकर पार्टी की बात रखें।वहीं पीसीसी चीफ कमलनाथ ने आदिवासी नेताओं और विधायकों को ट्राइबल बेल्ट का दौरा करने और आदिवासियों के साथ संवाद स्थापित करने के निर्देश दे दिए हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस ने अगले 6 महीने के लिए प्लान ऑफ एक्शन भी तैयार कर लिया है। इसके तहत पार्टी लगातार इन सीटों पर मेहनत मशक्कत करेगी। कांग्रेस सभी प्रमुख आदिवासी संगठनों को पार्टी के साथ जोड़ने के प्लान पर काम कर रही है। ताकि भाजपा से वो अपना पुराना वोट बैंक वापिस खींच सके। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 47 में से 30 आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी। (हिफी)